बलिया :कार्तिक महोत्सव के पूर्व आयोजित हुई संगोष्ठी ,कार्तिक महोत्सव का "लोगो" हुआ सार्वजनिक ,बलिया की पौराणिक धरोहर को बचाने संवारने की युवा भाजपा नेता साकेत सिंह सोनू ने चलाई है मुहिम
कार्तिक महोत्सव के पूर्व आयोजित हुई संगोष्ठी
कार्तिक महोत्सव का "लोगो" हुआ सार्वजनिक
बलिया की पौराणिक धरोहर को बचाने संवारने की युवा भाजपा नेता साकेत सिंह सोनू ने चलाई है मुहिम
मधुसूदन सिंह
बलिया 16 नवम्बर 2018 ।। बलिया के ऐतिहासिक ददरी मेला और कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान के महत्व को जन जन तक पहुंचाने और विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रहे बलिया की ऐतिहासिक , पैराणिक ,धार्मिक और गंगा जमुनी तहजीब के वाहक ददरी मेले की पुरानी समृद्धशाली गौरव और इतिहास को पुनर्जीवित करने के लिये भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता साकेत सिंह सोनू ने एक मुहिम पिछले साल से चलाई हुई है । कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर इस वर्ष 22/23 नवम्बर को जनपद बलिया के शिवरामपुर घाट पर श्री सोनू के सौजन्य से संत समागम , भजन संध्या और गंगा आरती का भव्य आयोजन बलिया की गौरवमयी पुरातन परंपरा को पुर्नस्थापित करने का एक प्रयास है । 22/23 नवम्बर को भव्यता के साथ आयोजित होने वाले कार्तिक महोत्सव को जनजन तक प्रचारित करने के लिये बलिया के वौद्धिक जनों , नेताओ , और बलिया की पौराणिक परम्पराओ के प्रति सजग नागरिको की एक संगोष्ठी जिला पंचायत बलिया के आचार्य नरेंद्र देव सभागार में आयोजित हुई । इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रदेश सरकार के मंत्री उपेंद्र तिवारी ने कार्तिक महोत्सव का प्रतीक चिन्ह "लोगो" को लांच किया ।
अपने संबोधन में श्री तिवारी ने बलिया के गौरवमयी इतिहास को विस्तार से जहां रखा वही बलिया की पौराणिक , धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान ददरी मेला के अस्तित्व पर आये संकट पर गहरी चिंता व्यक्त की । श्री तिवारी ने कहा कि अपनी विरासत को बचाना हम सबका दायित्व है । इसको बचाने के लिये सोनू जी जो प्रयास कर रहे है उसका मेरे द्वारा पुरजोर समर्थन है और मेला बीत जाने के बाद एक विचार गोष्ठी जो सभा के रूप में न हो , बुलाई जाय और कैसे इस मेले को पुराने स्वर्णिम काल जैसे किया जाय , उसपर ठोस रणनीति बने । मेले के सिकुड़ते क्षेत्रफल के सवाल पर श्री तिवारी ने कहा कि हम लोग स्वयं इसके जिम्मेदार है , जिन लोगो ने जमीन को बेचा , जिन लोगो ने खरीदकर घर बनाया सभी जिम्मेदार है क्योकि हम लोगो ने बलिया के ऐतिहासिक , पौराणिक, सांस्कृतिक , धार्मिक धरोहर को बचाने की जगह अपने स्वार्थ को पूरा करना ज्यादे महत्वपूर्ण लगा । ददरी मेला से बलिया की पहचान पूरे विश्व मे है । अगर इसको हम नही बचा पाये तो आने वाली पीढ़ियों को क्या जबाब देंगे । साकेत सिंह सोनू के इस प्रयास की जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी , इनके इस कार्य मे मैं हमेशा सहयोगी के रूप में खड़ा मिलूंगा । इससे पहले श्री तिवारी के सभागार में पहुँचने पर फूल माला पहनाकर जोरदार स्वागत किया गया । भाजपा युवा मोर्चा के नेताओ द्वारा मुख्य अतिथि , साकेत सिंह सोनू, बीजेपी जिलाध्यक्ष विजय शंकर दुबे , वरिष्ठ साहित्यकार शिवकुमार कौशिकेय , आचार्य वृजेन्द्र चौबे , प्रो केपी श्रीवास्तव , भोला प्रसाद आग्नेय , वरिष्ठ रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी आदि को बैज लगाया गया ।
भृगु क्षेत्र और ददरी मेले के इतिहास पर चर्चा की शुरुआत आशीष त्रिवेदी द्वारा की गयी । श्री त्रिवेदी ने ददरी मेले के इतिहास पर चर्चा करते हुए भारतेंदु कला मंच की चर्चा की और इस मंच पर भारतेन्दु हरिश्चंद द्वारा विश्व प्रसिद्ध संवाद "भारत वर्षोँन्ति कैसे हो सकती है " दिया गया था , को विस्तार से बताया । साथ ही यह भी बताया कि स्वयं भारतेन्दु जी राजा हरिश्चंद बनकर, राजा हरिश्चंद नामक नाटक का मंचन 1884 में किया था , तभी से यह मंच भारतेन्दु मंच के नाम से जाना जाता है । इस मंच पर भिखारी ठाकुर जैसे दिग्गज कलाकार ने बिदेशिया नामक नाटक का मंचन किया था ।
भोला प्रसाद आग्नेय ने मनु शतरूपा के यज्ञ में ब्रह्मा विष्णु महेश में कौन श्रेष्ठ है के परीक्षक महर्षि भृगु की कथा बताई ।
शिवकुमार कौशिकेय ने बताया कि कैसे ब्रह्मा को राजसी गुण से युक्त देव बताकर अपूज्य देव घोषित किया । कैसे भगवान शंकर की परीक्षा लेने गए भृगु मुनि के साथ शिव के गणों द्वारा घोर अपमान किया गया , भगवान शिव भी क्रोध में थे इसलिये इनको तामसी देव घोषित किया ।विष्णु भगवान को चरण प्रहार के वावजूद भृगु जी का चरण पकड़ना और क्षमा याचना के कारण पालक देव घोषित किया गया आदि घटनाओ को विस्तार से बताया । अयोध्या से तमसा को लाकर गंगा में संगम कराने और घाघरा नामकरण की घटना को भी विस्तार से बताया । भृगु संहिता की रचना और इसके उपलक्ष्य हुई संत समागम के रूप में ददरी मेले की परंपरा की शुरूआत कैसे हुई इस पर भी प्रकाश डाला। वही भृगु मुनि के ईरान से आने के ऐतिहासिक दस्तावेजो के सम्बंध में बताया और इसके प्रमाण के रूप में सिकन्दरपुर के देवकली में बूट पहने मूर्ति को ईरानी स्थापत्यकला को दर्शाने वाला बताकर साबित करने का प्रयास किया कि भृगु मुनि ईरान से आये थे। भरौली के पास अमांव गांव का बुढ़वा शिवालय बौद्ध काल के प्रमाण बताया । तो कारो स्थित कामेश्वर धाम को कामदेव को जहां शिव ने भस्म किया था वह स्थान बताया , साथ ही तड़का बध के लिये बक्सर जाते समय ऋषि विश्वामित्र के साथ भगवान राम और लक्षण ठहरे थे वह पौराणिक स्थान बताया ।बताया कि शरद पूर्णिमा के दूसरे दिन संत समाज द्वारा गंगा घाट पर ध्वज पूजन से ददरी मेले की शुरुआत होती थी जो आज भी है । संतो द्वारा कल्पवास एक माह तक भृगुक्षेत्र के गंगा तट पर करके जप तप किया जाता है वही अपने शिविर में आये हुए भक्तो को पुण्य कर्म करने की प्रेरणा दे कर सद्कर्म में लगाने का कार्य करते है । लोक चर्चा है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो स्नान करता है सभी पाप से मुक्त हो जाता है । साथ ही श्री कौशिकेय ने विलुप्त हो रही ददरी की पौराणिक परम्परा को बचाने की गुहार लगाई । साथ ही ददरी मेला को राजकीय मेला घोषित करने की भी मांग उठाई । कहा कि ददरी मेले के लिये जमीन खरीदकर मेले को बचाया जा सकता है।
प्रो केपी श्रीवास्तव - कुछ बात है कि हस्ती मिटती नही हमारी ... से जहां बलिया के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया वही विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके ददरी मेले के लिये जन समाज को जिम्मेदार ठहराते हुए चेताया भी की --तुम्हारी दास्तान भी न होगी दास्तान वालो । छठ पर्व की पूजा को वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा से प्रेरित बताया । मंजिले उन्ही को मिलती है जिनके हौसलों में जान होती है , पंखों से कुछ नही होता हौसलों से उड़ान होती है के द्वारा साकेत सिंह सोनू का हौसला आफजाई की ।
पंडित ध्रुव जी ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के महत्व को बताते हुए कहा कि इस दिन सिर्फ मनुष्य ही नही विमुक्त क्षेत्र भृगु क्षेत्र में स्वर्ग से देवता भी स्नान करने आते है । बाणभट्ट की लिखी बात को बताया कि सत रज और तमो गुण जब मिल जाते है तो सृष्टि की रचना होती है ।मेला मिलन से होता है जबकि आज हम अपने परिवार से ही नही मिल पा रहे है , एक साथ बैठकर भी मोबाइल के चलते दूर दूर होते है । संसार ही दुख है और इच्छाएं ही दुख की कारण । जब मनुष्य अपने इंद्रियों को वश में करके तप करेगा तो दुख दूर होता है । जबकि चारित्रिक सचरितता से सबसे मुक्ति मिलती है ।
साकेत सिंह सोनू ने कार्तिक महोत्सव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऋषि मुनियों ने दीप प्रज्वलित कर मिलन का संदेश दिया था, राजा महाराजाओं को सम्मिलित करके मेले का स्वरूप दिया । लेकिन हम लोगो ने अपने स्वार्थ के चलते ददरी मेले के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया है । बलिया के इतिहास को संरक्षित करने के लिये प्रयास करना आज हम सबका दायित्व बन गया है । इसी ध्येय के साथ कार्तिक महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है । कार्यक्रम की अध्यक्षता गायत्री शक्तिपीठ के