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शिक्षक दिवस पर भारत के इस नेता को थैंक्यू कहें, जिसने भारत को दिया 'शिक्षा का अधिकार

 भारत के इस नेता को थैंक्यू कहें, जिसने भारत को दिया 'शिक्षा का अधिकार'

    5 सितंबर 2018 ।।
    सन् 2001 में एक फिल्म आई थी लगान, इस फिल्म में एक भारतीय गांव के खिलाड़ी अंग्रेजो के साथ क्रिकेट खेलते हैं. और उन्हें उन्हीं के खेल में हराते हैं. भारतीय गांव की इस टीम का नायक होता है 'भुवन'. जिसका किरदार निभाया है आमिर खान ने. लेकिन इस फिल्म के रिलीज होने से ठीक 100 साल पहले वाकई एक भारतीय अंग्रेजों को उन्हीं के खेल में मात देने की तैयारी कर रहा था. ये खिलाड़ी थे गोपालकृष्ण गोखले. जिन्होंने अंग्रेजी संसदीय प्रणाली के दांवपेंचों को बखूबी समझ लिया था. और कुछ ही दिनों में इतने पॉपुलर हो गये थे कि 20 दिसंबर, 1901 को उन्हें गवर्नर जनरल की इंपीरियल काउंसिल के लिए चुन लिया गया ।

    गोखले विधानसभा में इतना बढ़िया भाषण देते थे कि अंग्रेजों में उनकी धाक जम गई थी. आलम ये था कि 1910 में ब्रिटिश वित्त-सचिव सर एडवर्ड-लॉ ने भरे सदन में गोखले के भाषण से पहले कहा कि, 'जब गोखले अपनी बात रखने के लिए खड़े होते हैं तो ऐसा लगता है कि हजारों सालों के अभ्यास के बाद एक मातम मनाने वाला अपना प्रदर्शन करने के लिए तैयार है. वो ऐसा कारुणिक रुदन करते हैं कि लगता है ये न्यायप्रिय सरकार गरीबों के हित के लिए कुछ नहीं कर रही है ।

    शिक्षा का अधिकार कानून की नींव यूं पड़ी
    गोखले का मानना था कि भारतीयों को पहले शिक्षित होने की आवश्यकता है. तभी वह नागरिक के तौर पर अपना हक यानी आजादी हासिल कर पाएंगे. गोखले किसी भी राष्ट्र की तरक्की के लिए शिक्षा के महत्व को बखूबी समझते थे.

    गोखले ने अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का अपना फॉर्मूला साल 1910 में 'प्राथमिक शिक्षा बिल' के रूप में रखा.

    उस समय गोखले ने इसके पक्ष में ढेरों तर्क दिए पर जब अंग्रेजों को इससे कोई फायदा ही नहीं हो रहा था तो अंग्रेज ऐसा क्यों करते? इसलिए उस वक्त तो ये बिल पास नहीं हो सका. पर एक शताब्दी बाद यही बिल देश की जनता के सामने शिक्षा का अधिकार के रूप में आया. माना जा सकता है कि गोखले का वो कदम भारत में शिक्षा के अधिकार की नींव थी. गोखले की ही संस्था 'सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी' ने शिक्षा के प्रसार के लिए स्कूल बनवाए. रात में पढ़ाई के लिए फ्री-क्लासें लीं और एक मोबाइल लाइब्रेरी की भी व्यवस्था की ।

    वक्त से पहले ही हो गई मौत
    प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने गोपालकृष्ण गोखले के बारे में कहा है, "गोखले को जिन पांच कारणों के की वजह से हमेशा याद किया जाएगा वो हैं- 'हिंदू-मुस्लिम संबंध, दलितों के अधिकार, महिलाओं के अधिकारों का समर्थन, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की वकालत और आखिरी पर सबसे महत्वपूर्ण देशसेवा की सच्ची भावना."

    गोखले ने संसदीय प्रणाली जैसी व्यवस्था का पालन करते हुए जिन महत्वपूर्ण विषयों पर बहस छेड़ी. वे विषय आजादी के बाद भी प्रासंगिक रहे और आगे चलकर उनपर अच्छे कानून इसीलिए बनाए जा सके क्योंकि गोपालकृष्ण गोखले ने ऐसी बहसों को भारत में जन्म दे दिया था. भले ही गोखले आजादी से बहुत पहले 19 फरवरी 1915 को मात्र 49 साल की उम्र में डायबिटीज और कार्डिएक अस्थमा की शिकायत के चलते देह छोड़ कर चले गए. लेकिन गोखले को हमेशा नए भारत के निर्माता के तौर पर याद किया जायेगा ।
    (साभार न्यूज18)