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प्रतीक हाजेला : जिनकी मेहनत ने आखिर जारी कर ही दी असम की एनआरसी ड्राफ्ट



    1 अगस्त 2018 ।।
    असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी)1951को अपडेट करने जैसे मुश्किल काम को अंजाम देने का श्रेय राज्य के प्रिंसिपल सेक्रेट्री (होम) प्रतीक हालेजा को दिया जा रहा है. प्रतीक इस बेहद मुश्किल काम के लिए स्टेट कॉर्डिनेटर की भूमिका में हैं और इसका पहला ड्राफ्ट 31 दिसंबर 2017 को जारी किया गया था जिसमें 3.29 करोड़ लोगों में केवल 1.9 करोड़ को भारत का वैध नागरिक माना गया था ।
    30 जुलाई 2018 को जारी दूसरे और आखिरी ड्राफ्ट में 3.29 करोड़ आवेदकों में 2.90 करोड़ को वैध नागरिक पाया गया. इसका मतलब हुआ कि इस फाइनल ड्राफ्ट में करीब 40 लाख लोगों के नाम नहीं है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जिन 40 लाख से अधिक लोगों के नाम शामिल नहीं हैं, उनके खिलाफ प्राधिकार कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकते हैं क्योंकि अभी यह महज एक मसौदा भर है ।
    कौन हैं प्रतीक हाजेला
    48 साल के प्रतीक हजेला 1995 बैच के एक IAS अफसर हैं और मूल रूप से मध्यप्रदेश के भोपाल के रहने वाले हैं. हजेला का परिवार भोपाल का एक प्रतिष्ठित परिवार है. उनके पिता एसपी हजेला मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के अफसर थे और उनके छोटे भाई अनूप हजेला भोपाल के एक प्रतिष्ठित डॉक्टर हैं. हजेला के चाचा पीडी हजेला चर्चित अर्थशास्त्री थे और वे प्रतिष्ठित इलाहाबाद और सागर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रहे ।

    हजेला असम-मेघालय कैडर के अधिकारी हैं. उन्होंने आइआइटी दिल्ली से 1992 में इलेक्ट्रानिक्स में बी-टेक किया है. असम जैसे सीमाई राज्य में उनकी तैनाती मुख्य रूप से गृह मंत्रालय में ही रही है. उन्होंने गृह आयुक्त के रूप में काम किया. उन्होंने स्पेशल कमिश्नर नियुक्त कर इमरजेंसी ऑपरेशन की ड्यूटी पर तैनात किया गया. बेहद पारदर्शी ढंग से 5000 सिपाहियों की भर्ती के लिए उन्हें मुख्यमंत्री द्वारा सम्मान भी मिला. UPA-2 के दौरान 5 सितंबर, 2013 को उन्हें एनआरसी अपडेटिंग का प्रभार दिया गया था ।

    कैसे पूरा हुआ इतना मुश्किल काम
    प्रतीक हजेला का कहना है कि हमने सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइंस पर काम कर वांछित दस्तावेजों के आधार पर ही लिस्ट तैयार की है. इसमें कहीं भी अनियमितता की गुंजाइश नहीं है. लेकिन इसमें गड़बड़ियों के आरोप लगातार सामने आए हैं. बहुत से सही लोगों के नाम भी इस सूची से गायब हैं. पहली शर्त ये थी कि उसे असम और देश का वाजिब नागरिक तभी माना जाएगा, अगर वो 31 जुलाई 1971 से असम में रह रहा हो, इसके लिए उसे 14 तरह के प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने थे. हजारों राज्य सरकार के कर्मचारियों-अधिकारियों ने घर-घर जाकर रिकार्ड्स चेक किए. वंशावली को आधार बनाकर जांच की गई. NRC अपडेशन के आधार मुख्य तौर पर तीन डी हैं - डिटेक्शन (पता लगाना), डिलीशन (नाम हटाना) और डिपोर्टेशन (वापस भेजना).



    हजेला के नेतृत्व में इसके अपडेटिंग का एक अपना मॉडल तैयार किया गया, क्योंकि ऐसा भारत में कही और हो नहीं रहा था. उन्होंने डेटा अपडेट के लिए कुछ मानक निर्धारित किये, जिस पर किसी को आपत्ति का मौका नहीं मिले. इसके लिए ढाई हजार नागरिक सेवा केंद्र तैयार किये गये और राज्य के 68 हजार कर्मचारियों को इसमें लगाया गया. एक सितंबर, 2015 से नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया शुरू होने से पहले इस एक्सरसाइज में दो साल का वक्त लग गया. इस पूरी प्रक्रिया के लिए 8000 कर्मचारी कॉन्ट्रेक्ट पर रखे गए जबकि 15000 से भी ज्यादा जिला स्तर पर NRC से जोड़े गए. बता दें कि असम देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसका एनआरसी है. एनआरसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत अप्रत्यक्ष रूप से देश में गैरकानूनी तौर पर रह विदेशी नागरिकों को खोजने की कोशिश की जाती है. अगर आप असम के नागरिक हैं और देश के दूसरे हिस्से में रह रहे हैं या काम कर रहे हैं, तो आपको एनआरसी में अपना नाम दर्ज कराने की जरूरत है ।

    प्रतीक के काम पर सवाल भी उठे!
    प्रतीक की इस काम के लिए जितनी तारीफ की गई उतनी ही आलोचनाओं का भी भी उन्हें सामना करना पड़ा. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि NRC के जरिए बंगालियों और असमियों के बीच भेदभाव पैदा किया जा रहा है. गौरतलब है कि बीजेपी ने 2014 में इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया. चुनावी प्रचार में बांग्लादेशियों को वापस भेजने की बातें कही गई थीं. 2016 में असम में बीजेपी की पहली सरकार बनी और अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों को वापस भेजने की प्रक्रिया फिर तेज हो गई. राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो बीजेपी के लिए अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा सबसे बड़ा रहा. प्रतीक पर आरोप लगा कि वो केंद्र सरकार के चुनावी वादों के मद्देनज़र एजेंट कि तरह काम कर रहे हैं ।

    1 मई को प्रतीक के नेतृत्व में काम कर रही NRC टीम ने नोटिस जारी कर कोर्ट एफिडेविट, गांव के मुखिया का प्रमाणपत्र और देर से बनवाए गए जन्म प्रमाण पत्रों को रजिस्ट्रेशन के लिए गैरकानूनी घोषित कर दिया. कई मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि इस प्रक्रिया के जरिए केवल बंगाली बोलने वाले मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है. हालांकि बंगाली भाषी हिंदुओं की एक बड़ी संख्या पर भी पर गाज गिरी है. लेकिन केंद्र में मौजूदा सत्तारूढ़ बीजेपी ने पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की भारतीय नागरिकता को सुविधाजनक बनाने का एक बिल पेश करने का प्रस्ताव देकर जटिलता को और बढ़ा दिया है. इसका मतलब है कि असम में रहने वाले बंगाली बोलने वाले हिंदू अवैध आप्रवासी अपनी नागरिकता बचा सकेंगे.

    उधर प्रतीक का कहना है कि जिन लोगों का नाम फिलहाल लिस्ट में नहीं आया है सरकार इन्हें एक मौका और देने जा रही है. हालांकि उसकी कसौटियों पर उतरना आसान नहीं होगा. जिन लोगों के नाम दूसरे और आखिरी एनसीआर ड्राफ्ट में नहीं आ पाए हैं. उन्हें असम के संबंधित सेवा केंद्रों में जाकर एक फॉर्म भरना होगा. ये फॉर्म सात अगस्त से 28 सितंबर तक उपलब्ध रहेगा. इस फार्म को जमा करने के बाद अधिकारी उन्हें बताएंगे कि उनका नाम क्यों सूची में नहीं आ पाया. इसके आधार पर उन्हें फिर एक और फॉर्म भरना होगा, जो 30 अगस्त से 28 सितंबर तक भरा जाएगा. हालांकि ये पूरी प्रक्रिया ऐसी है कि बहुत कम लोगों को इसमें हरी झंडी मिल पाएगी ।