SIR ड्यूटी के दबाव में टूटा एक घर : देवरिया में लेखपाल की मौत पर रो पड़ीं SDM दिशा श्रीवास्तव
देवरिया।। जिले के सलेमपुर तहसील में तैनात लेखपाल आशीष कुमार की अचानक हुई मौत ने पूरे क्षेत्र को झकझोर दिया। आशीष इन दिनों SIR-मतदाता सूची पुनरीक्षण की ड्यूटी में लगातार लगे हुए थे। परिवार और साथियों के अनुसार वे कई दिनों से इस कार्य के दबाव और लगातार बढ़ते लक्ष्यों को लेकर तनाव में थे। शुक्रवार को ड्यूटी के दौरान ही उनकी तबीयत बिगड़ गई। पहले उन्हें सलेमपुर के स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, फिर देवरिया और अंत में गोरखपुर के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। प्रशासन का कहना है कि उनके किडनी में पथरी थी, जबकि परिवार का आरोप है कि अत्यधिक ड्यूटी-दबाव ने उनकी हालत खराब की और इसी कारण उनकी जान चली गई। यही विवाद बाद में गांव में हंगामे का कारण बना, क्योंकि परिवार ने बिना सहायता और स्पष्ट जवाब के अंतिम संस्कार करने से भी इनकार कर दिया था।
देवरिया के सलेमपुर क्षेत्र में जब लेखपाल आशीष कुमार का शव उनके गांव पहुंचा, तो पूरा माहौल रो-रोकर मानो कांप उठा। गांव की गलियों में जब अर्थी का शोर उठा, उसी के साथ बच्चों की चीखें, बूढ़ी मां का विलाप और पत्नी का बेसुध होकर गिर पड़ना—इन सबने हवा को भारी कर दिया। आशीष उन कर्मचारियों में थे जो सरकारी दायित्वों के बोझ तले चुपचाप अपना दिन-रात खपा देते हैं। SIR की ड्यूटी पर लगातार काम करते हुए उनकी तबीयत बिगड़ी और अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। यह खबर जब गांव पहुंची, तब से घर में जो सन्नाटा पसरा, वह किसी भी शब्द में बांधा नहीं जा सकता।
शव के गांव पहुंचने पर परिजनों का दुख और अधिक बढ़ गया। मां ने बेटे के चेहरे को छूते ही चीख मारी, पत्नी बिलख-बिलखकर गिरती रहीं और बच्चों को समझाने वाला कोई नहीं बचा। इस बीच प्रशासनिक अधिकारी भी पहुंचे, लेकिन सबसे अधिक ध्यान खींचने वाला दृश्य था—SDM दिशा श्रीवास्तव का। वे परिवार को ढांढस बंधाने पहुंची थीं, लेकिन जैसे ही उन्होंने आशीष की मां और पत्नी को रोते देखा, उनकी अपनी आंखें भी भर आईं। कई पल तक वे खुद को संभाल नहीं पाईं। काम की कठोरता के बीच मानवीय भावनाओं का यह दृश्य वहां मौजूद हर व्यक्ति को भीतर से हिला गया।
परिवार का दर्द सिर्फ एक बेटे, पति या पिता की मौत तक सीमित नहीं है। वे इस बात का दर्द भी लिए हुए हैं कि आशीष लगातार ड्यूटी के दबाव में थे। परिजन और साथी कर्मचारी मानते हैं कि लगातार काम, तनाव और बोझ ने उनकी सेहत पर असर डाला था। दूसरी ओर प्रशासन अपनी औपचारिक प्रक्रिया में लगा है, लेकिन गांव में हर कोई यही सवाल पूछ रहा है कि ड्यूटी अधिक महत्वपूर्ण है या ड्यूटी निभाने वाला कर्मचारी?
गांव में अभी भी माहौल भारी है। लोग बताते हैं कि आशीष बेहद शांत, सरल और मिलनसार थे। हमेशा दूसरों का काम करने को तैयार रहते थे, लेकिन अपनी तबीयत की परवाह तक नहीं करते थे। परिवार के मुताबिक, उन्होंने कई बार इस बात का इशारा किया था कि दबाव बढ़ता जा रहा है, लेकिन सरकारी कामकाज में शिकायत करने वालों की सुनी कब जाती है?
अंतिम संस्कार को लेकर भी परिजन कुछ समय तक अडिग रहे। उनका कहना था कि जब तक यह स्वीकार नहीं किया जाएगा कि उनके बेटे की मौत ड्यूटी-दबाव से जुड़ी है, और जब तक परिवार की वास्तविक मदद सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक वे चुप नहीं बैठेंगे। गांव वाले, सहकर्मी और स्थानीय लोग भी परिवार के साथ खड़े दिखाई दिए। इससे साफ था कि यह सिर्फ एक परिजन का दुख नहीं, बल्कि पूरे गांव की तकलीफ बन चुका है।
इस पूरी घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा किया है कि सरकारी सेवा में लगे कर्मचारियों के लिए सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य-दबाव को लेकर क्या व्यवस्थाएं हैं? क्या ड्यूटी और लक्ष्य पूरे होते-होते कर्मचारियों की जिंदगी को अनदेखा किया जा रहा है? और सबसे बड़ा सवाल—क्या किसी कर्मचारी की मौत के बाद ही सिस्टम जागता है?
लेखपाल आशीष कुमार अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके परिवार की चीखें, गांव का दर्द और SDM का वह भावुक क्षण—यह सब एक कटु सच्चाई का आईना है। यह कहानी किसी “सरकारी कर्मचारी” की नहीं, बल्कि एक बेटे, एक पति और एक पिता की है… जिसके कंधों पर सिर्फ फाइलें नहीं, बल्कि एक पूरा परिवार टिका था।


