बिहार में बीजेपी का उभार, जातीय राजनीति से आगे हिन्दुत्व का वोट बैंक तैयार
संजय सक्सेना,लखनऊ
इस बदलाव के पीछे प्रधानमंत्री मोदी की छवि सबसे बड़ा कारक है। बिहार जैसे राज्य, जहां नौकरी, गरीबी और पलायन लंबे समय से चुनावी मुद्दे रहे हैं, वहां मोदी का सबका साथ, सबका विकास का नारा लोगों को आकर्षित करता है। यह नारा जातीय दायरों से परे जाकर एक नई राजनीतिक सोच को जन्म देता है जहां नेता की पहचान उसके काम, योजनाओं और राष्ट्रवादी अपील से तय होती है। यही कारण है कि मोदी का मैजिक आज भी बिहार में उतनी ही जोर से काम कर रहा है जितना 2014 या 2019 में था।
संगठनात्मक रूप से भी बीजेपी ने राज्य में जबरदस्त पैठ बनाई है। बूथ-स्तर तक कैडर वाले ढांचे ने पार्टी को निचले स्तर पर मजबूत किया। आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों की सक्रियता ने गांव-गांव तक वैचारिक अभियान चलाया। इसके साथ ही बीजेपी ने अपने पारंपरिक वोट बैंक ऊंची जातियों और शहरी वर्गों के अलावा ओबीसी और महासमुदाय के मतदाताओं में भी भरोसा बनाने की कोशिश की। इससे पार्टी का सामाजिक आधार अब पहले से कहीं ज्यादा व्यापक हो गया है। 2020 के विधानसभा चुनाव में हालांकि एनडीए को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, लेकिन तब भी बीजेपी जेडीयू से आगे निकल गई थी। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव ने इस प्रवृत्ति को और भी पुख्ता किया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी ने बिहार के अधिकांश हिस्सों में मजबूत प्रदर्शन दर्ज किया। इसका बड़ा कारण विपक्ष का बिखराव और विपक्षी गठबंधन में अंदरूनी मतभेद भी रहा। आरजेडी जैसी पार्टी, जो कभी मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण पर भरोसा करती थी, अब उस वर्ग में भी अपनी पकड़ कमजोर होते देख रही है।
बीजेपी की रणनीति स्पष्ट है जातीय समीकरणों को नकारे बिना, लेकिन उससे ऊपर उठकर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की नई पहचान को स्थायी बनाना। स्थानीय नेतृत्व के रूप में पार्टी ने कई पिछड़े और दलित चेहरों को आगे लाकर यह संदेश दिया कि वह सबको साथ लेने के अपने सिद्धांत पर टिके रहना चाहती है। यही प्रयोग भविष्य में भी उसके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। 2029 के लोकसभा चुनाव की दृष्टि से देखें तो बिहार में बीजेपी की मौजूदा स्थिति उसके लिए मजबूत जमीन तैयार कर चुकी है। राज्य की 40 लोकसभा सीटों में यदि पार्टी अकेले सबसे बड़ी ताकत बनी रहती है, तो यह न केवल बिहार बल्कि पूरे पूर्वी भारत में भाजपा के लिए निर्णायक प्रभाव डाल सकती है। भाजपा अब बिहार को राजनीतिक रूप से सहयोगी राज्य नहीं बल्कि मुख्य फ्रंटलाइन के रूप में देख रही है। मोदी की लोकप्रियता और संगठन की एकजुटता के साथ, बिहार में पार्टी का प्रदर्शन 2029 में और बेहतर होने की संभावना है।
इसके अलावा, केंद्र सरकार की योजनाओं जैसे पीएम आवास योजना, उज्ज्वला, आयुष्मान भारत, और मुफ्त राशन वितरण योजनाओं का प्रभाव उन ग्रामीण वोटरों पर पड़ा है जो पहले विपक्ष के प्रति झुकाव रखते थे। यह वर्ग अब बीजेपी को सुविधा देने वाली सरकार के रूप में देखने लगा है। ऐसे वोटरों का झुकाव पार्टी को दीर्घकालिक लाभ पहुंचाता है, क्योंकि ये वही घर-घर के मतदाता हैं जो स्थानीय चुनावों में भी वातावरण बनाते हैं।
मोदी के मैजिक की सफलता का एक और पहलू है उनकी संवाद क्षमता। चाहे मन की बात के माध्यम से संवाद हो या सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत जुड़ाव का प्रयास, मोदी ने अपने संदेश को इतना गहराई से फैलाया है कि ग्रामीण मतदाता भी खुद को सीधे प्रधानमंत्री से जुड़ा महसूस करता है। इस मनोवैज्ञानिक जुड़ाव ने भाजपा के लिए बिहार जैसे राज्य में लोकप्रियता का स्थायी आधार तैयार कर दिया है।
कुल मिलाकर, बिहार में बीजेपी का नंबर वन पार्टी बनना सिर्फ एक राजनीतिक उपलब्धि नहीं बल्कि एक वैचारिक पुनर्संरचना का प्रतीक है। यह दिखाता है कि पार्टी ने अपनी जमीनी ताकत और नेतृत्व की छवि, दोनों को एक साथ मजबूत किया है। अगर विपक्ष आने वाले वर्षों में कोई ठोस वैकल्पिक नैरेटिव नहीं गढ़ सका, तो 2029 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए बिहार में अब तक का सबसे मजबूत प्रदर्शन वाला चुनाव साबित हो सकता है। मोदी का करिश्मा, संगठन की गहराई और केंद्र सरकार की योजनाओं की पहुंच ये तीनों मिलकर बीजेपी को आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति का स्थायी केंद्र बना रहे हैं।
बिहार में बीजेपी का उभार, जातीय राजनीति से आगे हिन्दुत्व का वोट बैंक तैयार
Reviewed by Ballia Express
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November 15, 2025
Rating: 5
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