महामहिम राष्ट्रपति से आरक्षण छोड़ने की स्वैच्छिक घोषणा कर नजीर पेश करने की जन उद्घोष सेवा संस्थान ने पत्र भेजकर की मांग
क्या महामहिम राष्ट्रपति महोदया आरक्षण छोड़ने की स्वैच्छिक घोषणा कर पाएंगी?
सामाजिक समानता एवं आत्मनिर्भरता की दिशा में जातिगत आरक्षण त्याग की प्रेरणा संबंधी विनम्र निवेदन
लखनऊ।। जिस तरह से पीएम मोदी ने समर्थ लोगों से घरेलू गैस सिलिंडर से सब्सिडी को छोड़ने का निवेदन करने से करोड़ों लोगों ने छोड़कर नजीर पैदा कर दी। उसी तरह से आरक्षण का लाभ लेकर सर्वोच्च पदों पर या सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचने वालों के दिलों मे भी अन्य जरूरत मंद व्यक्तियों के लिये आरक्षण छोड़ने की भावना को जागृत करने के लिये जन उद्घोष संस्थान के कुलदीप तिवारी ने महामहिम राष्ट्रपति को सामाजिक समानता एवं आत्मनिर्भरता की दिशा में जातिगत आरक्षण त्याग की प्रेरणा संबंधी विनम्र निवेदन का एक पत्र भेजा है।
इस पत्र के माध्यम से श्री तिवारी ने महामहिम राष्ट्रपति से स्वैच्छिक रूप से जातिगत आरक्षण छोड़कर एक नजीर पेश करने का निवेदन किया है। अब देखना है कि महामहिम इस पत्र की प्राप्ति के बाद क्या निर्णय करतीं है।
सूच्य हो कि देश मे आज भी आरक्षित वर्ग समाज की मुख्यधारा के साथ जुड़ने के लिये जद्दोजहद कर रहा है। वही इसी वर्ग के लोग आरक्षण का लाभ लेकर उच्च पदों पर पहुंच कर ऐशो आराम की जिंदगी जीने के बाद भी स्वयं एवं अपने बच्चों को आरक्षण का लाभ लेने से नही रोकते है। जिससे ऐसे आरक्षित वर्ग के लोगों के बच्चे सुविधा सम्पन्न होने के चलते सुविधाहीन बच्चों से परीक्षाओ मे आगे निकल कर वास्तविक हकदारों का हक मारकर आगे बढ़ जाते है। जिससे आज भी वास्तविक हकदार दरदर की ठोकरें खा रहें है। इसी असमानता को दूर करने के लिये महामहिम से नजीर पेश करने की विनती की गयी है।
राष्ट्रपति महोदया को भेजे गये पत्र का हिन्दी अनुवाद
सेवा में,
महामहिम
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी
माननीय राष्ट्रपति, भारत सरकार,
राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली – 110004।
विषय: सामाजिक समानता एवं आत्मनिर्भरता की दिशा में जातिगत आरक्षण त्याग की प्रेरणा संबंधी विनम्र निवेदन।
महोदया,
सविनय निवेदन है कि जन उद्घोष सेवा संस्थान एक सामाजिक सेवा एवं जनजागरण हेतु कार्यरत पंजीकृत संस्था है। हमारा उद्देश्य समाज में समानता, समरसता, आत्मनिर्भरता तथा राष्ट्रीय एकता की भावना का संवर्धन करना है।
महोदया, आपका जीवनवृत्त एवं संघर्ष प्रत्येक भारतीय के लिए प्रेरणादायक है। आपने अत्यंत सामान्य पृष्ठभूमि से उठकर आज राष्ट्र के सर्वोच्च संवैधानिक पद को सुशोभित किया है। यह न केवल नारी शक्ति एवं जनजातीय समाज के लिए, बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष के लिए गौरव की बात है।
हमारा विनम्र प्रश्न एवं निवेदन यह है कि —
आपके रूप में जब कोई व्यक्ति समाज के प्रत्येक स्तर पर उत्कृष्ट सफलता प्राप्त कर लेता है, तथा लंबे समय तक अनेक सरकारी एवं सामाजिक दायित्वों का निर्वहन कर चुका होता है, तो क्या ऐसे में वह स्वयं को अब भी “वंचित” या “पिछड़ा वर्ग” के रूप में देखता है, अथवा एक “समान भारतीय नागरिक” के रूप में अनुभव करता है?
यदि आप ऐसा मानती हों कि आप तथा आपका परिवार अब सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से पूर्णतः आत्मनिर्भर हैं, तो क्या आप स्वेच्छा से यह घोषणा करने का विचार रखती हैं कि — अब आप एवं आपका परिवार किसी भी प्रकार की जातिगत या आरक्षण आधारित सुविधा का लाभ नहीं लेंगे, और अपने को सामान्य भारतीय नागरिक के रूप में ही मानेंगे।
महोदया, आपकी ओर से यदि ऐसी घोषणा या संदेश समाज के समक्ष आता है, तो यह पूरे राष्ट्र के लिए एक ऐतिहासिक एवं प्रेरणादायक उदाहरण सिद्ध होगा। इससे समाज में यह भाव सुदृढ़ होगा कि आरक्षण की व्यवस्था वास्तव में केवल उन लोगों के लिए है, जिन्हें इसकी वास्तविक आवश्यकता है, और जो सशक्त हैं, वे स्वयं त्याग का उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।
हमारा यह निवेदन पूर्णतः सामाजिक एवं नैतिक दृष्टिकोण से प्रेरित है। इसमें किसी प्रकार की आलोचना या राजनैतिक दृष्टि नहीं है, अपितु एक रचनात्मक विचार-विमर्श की भावना निहित है।
आपका सप्रेम संदेश या मार्गदर्शन इस विषय पर समस्त नागरिकों के लिए दिशा-सूचक सिद्ध होगा।
आपकी कृपादृष्टि की प्रतीक्षा में।
सादर,
भवदीय,
- कुलदीप तिवारी




