ददरी मेला विवाद प्रकरण : आखिर नई परम्परा शुरू करने पर क्यों आमादा है जिला प्रशासन? जाने पूरी हकीकत
मधुसूदन सिंह
बलिया।। ज्यों ज्यों कार्तिक पूर्णिमा का स्नान नजदीक आता जा रहा है ददरी मेला का विवाद और गहराता जा रहा है। एक तरफ जिला प्रशासन हर हाल मे अपने नेतृत्व मे मेला लगाने को कटिबद्ध दिखायी दे रहा है, तो वही नगर पालिका अध्यक्ष संतकुमार मिठाईलाल इसको लगाने का अधिकार नगर पालिका को पूर्ण रूप से मिले इसके लिये अपने सभासदों संग जन मानस के बीच माहौल अपने पक्ष मे करने मे लगे हुए है। वही नगर विधायक व परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह अपनी बिहार की चुनावी व्यस्तता के बाद भी बीच का रास्ता निकालने मे लगे हुए है। आइये जानते है कि आखिर मेला लगाने का वास्तविक हक किसका है...
जिला प्रशासन के नेतृत्व मे पिछले साल लगा था मेला
वर्ष 2024 मे वर्ष 2023 के ददरी मेला मे कुछ ठेकेदारों का कार्य करने के बाद भी भुगतान के कागजो पर तत्कालीन उप जिलाधिकारी सदर (जिनके पास अधिशाषी अधिकारी का भी चार्ज था,)अत्रेय मिश्र द्वारा हस्ताक्षर नही करने से नाराज होकर अध्यक्ष संत कुमार मिठाई लाल ने जिला प्रशासन से मेला नही लगाने की बात कह दी थी। जिसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी ने अपनी देखरेख मे मेला लगवाया। इस मेले मे पहली बार झूला चरखी से 82 लाख की आय हुई। जिला प्रशासन ने मेला समाप्ति पर लगभग 56 लाख से अधिक के मुनाफे की घोषणा की, जबकि 2023 मे संतकुमार मिठाई लाल द्वारा लगाये गये मेले मे 9500 का घाटा दर्शाया गया। 2024 के मुनाफे और 2023 व इससे पूर्व के घाटे को आधार बना कर जिला प्रशासन अब खुद मेला लगाने पर अड़ा हुआ है। इसी को आधार बनाकर अध्यक्ष के वित्तीय पॉवर को सीज करने की तैयारी के रूप मे कारण बताओ नोटिस जारी की गयी है।
जबकि इसके पूर्व के वर्ष मे मेला समाप्त होने के बाद शासन से स्वीकृति हासिल की गयी थी। वर्तमान जिला प्रशासन का यह कहना कि अध्यक्ष के बिना हस्ताक्षर के मेला नही लग पाता, कही से भी उचित प्रतीत नही होता है। भूमि अधिग्रहण की फाइल जिलाधिकारी के हस्ताक्षर से शासन को जाती है। नीचे के पत्र को देखिये और खुद निर्णय कीजिये.....
मेला कमाने का नही आस्था का, नगर पालिका को ही लगाने का संवैधानिक अधिकार : संत कुमार मिठाईलाल
नगर पालिका परिषद बलिया के अध्यक्ष संतकुमार मिठाईलाल ने कहा हस कि ददरी मेला पैसा कमाने के लिये नगर पालिका परिषद नही लगाती है। यह बलिया का सैकड़ो साल पुराना धार्मिक ऐतिहासिक व आस्था से जुड़ा मेला है। इस मेले मे गरीब 200 रूपये लेकर भी लोग अपने बच्चों को घुमाने आते है और इसी पैसे मे चरखी झूला पर झूलाकर और जलेबी खिलाकर घर जाते रहे है। पिछले साल से झूला चरखी पर गरीबों को अपने बच्चों को झूलाना टेढ़ी खीर हो गया है। जिला प्रशासन इस मेले के स्वरुप को धार्मिक से व्यवसायिक रूप मे बदलना चाह रहा है।
कहा है कि मेरी यह लड़ाई पैसा कमाने के लिये नही बल्कि अधिकार की है, टाइटल की है, मेला के स्वरुप को बचाने की है। कहा कि मै मेले से आमदनी 5 करोड़ कर दूंगा लेकिन तब इस मेले मे जो दुकानदार रेट तय करेंगे, वह गरीबों की पहुंच से दूर हो जायेगा। कहा कि 500 करोड़ का टेंडर लोक निर्माण विभाग के ही कैंपस मे, 100 करोड़ से अधिक का टेंडर जिला पंचायत के कैंपस मे होता है तब जिला प्रशासन हस्तक्षेप नही करता है लेकिन 1 करोड़ से भी कम के टेंडर को नगर पालिका परिसर मे क्यों नही कराया जा रहा है?
कहा है कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो, यह मै भी चाहता हूं लेकिन वह मेरे नेतृत्व मे हो। घर मेरा और दूसरा मालिक बन जाये यह स्वीकार नही है। इनका कहना है कि माननीय परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह जी ने जब 15 सूत्रीय मांग पत्र पर जिला प्रशासन को सहमत कर लिया था, तो फिर जिला प्रशासन उसी आधार पर क्यों नही चल रहा है। जब आयोजक नगर पालिका परिषद है तो जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाली आयोजन समिति का क्या औचित्य है? यह क्यों नही भंग हो रही है। कहा कि वर्तमान जिलाधिकारी के पूर्व के जिलाधिकारियों ने (वर्ष 2024 को छोड़कर इस वर्ष मेला जिला प्रशासन ने लगाया था, अध्यक्ष ने मेला लगवाने से इंकार कर दिया था )हमेशा ददरी मेला के लिये नोडल अधिकारी नियुक्त किया था, खुद को आयोजन समिति का अध्यक्ष कभी नही घोषित किया था। आखिर जिलाधिकारी क्यों नही अपनी अध्यक्षता वाली आयोजन समिति भंग कर रहे है?
सबसे बड़ा खलनायक अधिशाषी अधिकारी
ददरी मेला विवाद प्रकरण मे अगर कोई अधिकारी सबसे बड़ा खलनायक है तो वह है नगर पालिका परिषद बलिया के अधिशाषी अधिकारी सुभाष कुमार। इनका काम होता है नगर पालिका परिषद व जिला प्रशासन के बीच समन्वय बनाना लेकिन इन्होने तो जन प्रतिनिधियों को ताक पर रखकर खुद नगर पालिका परिषद का सर्वेसर्वा बनने की इच्छा थी, जो इन्होने अध्यक्ष व जिला प्रशासन के बीच थोड़ी सी गलतफहमी होते ही अपनी रोटी सेंक ली और अपने एकल हस्ताक्षर से नगर पालिका चलाने लगे।
क्या है विवाद की जड़
दरअसल पूरे विवाद की जड़ मे जिला प्रशासन द्वारा बार बार 2024 के ददरी मेले मे बतायी जा रही 56 लाख रूपये की आय है। चेयरमैन समेत सभी सभासद बार बार यह मांग करते रहें है कि 2024 मे कितनी आय हुई और कितना खर्च हुआ, इसका पूरा विवरण सार्वजनिक किया जाय। लेकिन अधिशाषी अधिकारी द्वारा इसको बताने मे लगातार टाल मटोल किया जाता रहा है। वर्तमान विवाद की जड़ तब पड़ गयी जब कुछ ठेकेदार चेयरमैन के पास 2024 मे किये गये कार्यों के भुगतान के लिये दबाव बनाने लगे।जमीन मुआवजे की फाइल जब अधिशाषी अधिकारी चेयरमैन के पास हस्ताक्षर के लिये ले गये तो चेयरमैन ने कहा कि बोर्ड फंड मे पैसा है ही पिछले साल ददरी मेला मे काम करने वाले जिन ठेकेदारों का भुगतान अभी तक नही हुआ है, उनकी भी फाइल ले आइये उनका भी भुगतान अभी कर दिया जाय। जब ईओ ने ठेकेदारों की फाइल का भुगतान बाद मे करने की बात कही गयी तो चेयरमैन ने जमीन मुआवजा की फाइल पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। इसी के बाद विवाद बढ़ता गया। ईओ ने उच्चाधिकारीयों को यह बताया कि चेयरमैन हस्ताक्षर नही कर रहे है, यह नही बताया कि क्यों नही कर रहे है।
प्रशासन क्यों हुआ एक्टिव?
सूच्य हो कि ददरी मेला लगने के एक माह पूर्व नगर पालिका परिषद की तरफ से जिलाधिकारी के माध्यम से शासन को जमीन अधिग्रहण के लिये पत्र भेजा जाता है। इस पत्र पर अध्यक्ष व ईओ के हस्ताक्षर होते है। जब 16 अक्टूबर तक अध्यक्ष द्वारा इस फाइल पर हस्ताक्षर नही किया गया तो जिलाधिकारी के माध्यम से शासन को पत्र भेजकर मेला लगाने मे आ रही अडचनों से अवगत कराया गया। जिसपर शासन ने 28 अक्टूबर को कारण बताओ नोटिस चेयरमैन को जारी किया जो इनके घर पर चस्पा कर दी गयी। लेकिन 16 अक्टूबर के बाद 23 अक्टूबर को परिवहन मंत्री के प्रयास से चेयरमैन व जिला प्रशासन मे समझौता हो गया। इसके बावजूद जब चेयरमैन ने हस्ताक्षर नही किया तो प्रशासन ने मेला समय से लगे, इसके लिये शासन से अनुमति हासिल कर ली। अगर ऐसा नही होता तो ददरी मेला के लगने पर ही संकट खड़ा हो जाता।
मंत्री व चेयरमैन मे संवादहीनता से बढ़ा विवाद
नगर विधायक व परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह को पार्टी ने बिहार चुनाव मे 48 विधानसभाओ का कोऑर्डिनेटर बनाया है। इस बड़ी जिम्मेदारी को निभाने के लिये श्री सिंह लगातार बिहार मे ही प्रवास कर रहे है। विवाद जब बढ़ा तो दो दिन बलिया रह कर समझौता कराकर वापस बिहार चले गये। इसके बाद पुनः विवाद बढ़ गया और चेयरमैन के घर पर कारण बताओ नोटिस जो शासन ने भेजा है चस्पा कर दी गयी ।
इस संबंध मे जब परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने बात की गयी तो उनका कहना था कि मैंने तो चेयरमैन साहब ने जो 15 सूत्रीय मांग रखी थी उस पर जिला प्रशासन को सहमत करा लिया था, चेयरमैन साहब भी सहमत हो गये थे। चेयरमैन साहब ने स्वयं प्रेस वार्ता करके इस बात को स्वीकार भी किया। लेकिन बाद मे फिर पलट गये। कहा कि अगर जिला प्रशासन समझौते से हट रहा था तो चेयरमैन साहब को मुझे बताना चाहिये था, मै हटने नही देता। लेकिन चेयरमैन साहब ने मुझको बताने से महत्वपूर्ण विरोध का स्वर बुलंद करना समझा। कहा कि मै इस प्रकरण मे मध्यस्थ था लेकिन लोग मुझे विलेन बनाना चाह रहे है।श्री सिंह ने कहा कि जब ईओ चेयरमैन साहब की बात नही मान रहा था तो उन्हें मुझको सीधे बताना चाहिये था, सभी फाइल चेयरमैन साहब के सामने आ जाती।मैंने कुछ दिन पहले ही कहा था कि बलिया का विकास जिस तेजी से मेरे प्रयास से हो रहा है, वह स्थानीय नेताओं को पच नही रहा है। पहले लोग विरोध कर रहे थे अब साजिश कर रहे है। कहा कि लोग साजिश करते रहे, इससे कोई फर्क नही पड़ेगा, बलिया का विकास मै कराता रहूंगा।समय से मेला लगे, यही हम सबका प्रयास होना चाहिये।





