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हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष :प्रयागराज की हिंदी पत्रकारिता के दो सौ अड़तालीस वर्ष




हिंदी पत्रकारिता  के विकास में प्रयागराज का महत्वपूर्ण योगदान  

आज  भी कई पत्रिकाएं निर्लिप्त भाव से कर रही हैं हिंदी की सेवा  

  डॉ० भगवान प्रसाद उपाध्याय 

प्रयागराज।। ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की महानगरी प्रयागराज  ( पूर्व नाम इलाहाबाद  ) की हिंदी साहित्य की पत्रकारिता का   दो सौ  अड़तालीस वर्ष पूरा होने जा रहा है।  हिंदी साहित्य  के  समग्र  उत्थान  में इस महानगर का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है।हिंदी की अनेक ख्यातिलब्ध पत्रिकाओं ने हिंदी का विकास करने में अपनी   महती भूमिका निभाई है।  आज भी अनेक लघु पत्रिकाएं हिंदी की सेवा निर्लिप्त भाव से कर रही हैं। संसाधन के अभाव में भी जो लोग यहां से पत्रिकाओं का संचालन संपादन कर रहे हैं, उनके प्रति हिंदी प्रेमियों को कृतज्ञ होना चाहिए। प्रयागराज की हिंदी पत्रकारिता की सेवा के इतिहास पर यदि हम प्रकाश डालते हैं तो कई उत्कृष्ट पत्रिकाओं के नाम आते हैं। यह महानगर शुरू से ही  हिंदी साहित्य का प्रमुख केंद्र रहा है और यहां हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत पंडित बालकृष्ण भट्ट ने 18 77 में *हिंदी प्रदीप* नामक पत्रिका से किया इसके पश्चात उन्नीस सौ ईसवी में *सरस्वती* पत्रिका का प्रादुर्भाव हुआ। वह 1902 तक काशी से प्रकाशित होती रही। चिंतामणि घोष और बाबू श्यामसुंदर दास में इसका श्रीगणेश किया था और 1903 में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन इंडियन प्रेस से पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन में सुचारू रूप से शुरू हुआ।इस पत्रिका ने कई ख्यातिलब्ध साहित्यकार और कवियों की रचनात्मक प्रतिभा में निखार लाने का सराहनीय काम किया।



सरस्वती पत्रिका ने  पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी,  पंडित सुमित्रानंदन पंत  जैसे स्वनामधन्य  साहित्यकारों की साहित्यिक प्रतिभा को निखारा।सन उन्नीस सौ सात में पंडित मदन मोहन मालवीय ने  *अभ्युदय* नामक पत्र निकाला। 1909  में  *मर्यादा*  पत्र का प्रकाशन कृष्णकांत मालवीय और संपूर्णानंद के संपादन में शुरू  हुआ था।इसके संपादक मंडल में मुंशी प्रेमचंद भी  शामिल रहे। इसी के बाद *चांद*  पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ, जिसमें महादेवी वर्मा का उल्लेखनीय योगदान रहा। *चांद* हिंदी मासिक पत्रिका अपने युग की बहुत चर्चित पत्रिका रही और कई लेखकों ने इसमें अपनी रचनाओं के प्रकाशन को अपना सौभाग्य माना। इसी महानगर से लोकप्रिय हिंदी दैनिक *भारत*   समाचार पत्र  निकला  जिसके   स्थापना काल से ही संपादन की जिम्मेदारी पंडित नंददुलारे वाजपेई को मिली। इसी के बाद हिंदी समाचार पत्रों का विकास हुआ 1938 में पंडित सुमित्रानंदन पंत और नरेंद्र शर्मा जी ने  *रूपाभ*  नामक मासिक पत्रिका का श्रीगणेश किया। 1947 में अज्ञेय जी ने  *प्रतीक* त्रैमासिक पत्रिका शुरू की, जिसने हिंदी साहित्यकारों का अच्छा मार्गदर्शन किया।1953 में रामस्वरूप चतुर्वेदी तथा लक्ष्मीकांत वर्मा जी के संपादन में *नए पत्ते* तथा 1954 में रामस्वरूप चतुर्वेदी एवं डॉक्टर जगदीश गुप्त के संपादन में *नई कविता* पत्रिका निकाली गई।1956 में धर्मवीर भारती और लक्ष्मीकांत वर्मा जी के कुशल कुशल संपादन में *निकष* नाम की पत्रिका निकली।1963 में  डा. रघुवंश जी  लक्ष्मीकांत वर्मा जी और रामस्वरूप चतुर्वेदी जी के संपादन में  *क  ख  ग* नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। बाद में लक्ष्मीकांत वर्मा जी लखनऊ में दारुल शफा में रहने लगे  वहां से भी उन्होंने इस पत्रिका के संपादन का कार्य निष्ठा पूर्वक निभाया।

हिंदी साहित्य सम्मेलन से *सम्मेलन पत्रिका* और *राष्ट्रभाषा सन्देश*  का प्रकाशन अत्यंत महत्वपूर्ण रहा  है। *राष्ट्रभाषा संदेश* की  प्रतियां आज भी  सुदूर हिंदी प्रांतों में  भेजी जाती हैं और  यह पत्र  बहुत ही  ख्याति प्राप्त है। इसी प्रकार हिंदुस्तानी एकेडमी की पत्रिका *हिंदुस्तानी* भी बहुत महत्वपूर्ण पत्रिका है। *हिंदुस्तानी* के कई विशेषांक बहुत ही चर्चित रहे। विज्ञान परिषद से प्रकाशित होने वाली हिंदी की सर्वश्रेष्ठ विज्ञान पत्रिका के रूप में *विज्ञान* का निरंतर प्रकाशन अपने आप में एक महत्वपूर्ण बात है। वर्तमान में डॉ शिव गोपाल मिश्र के संपादन में   *विज्ञान* पत्रिका पूरे देश में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है।आजादी के बाद महाविद्यालयों और इंटरमीडिएट कॉलेजों की वार्षिक पत्रिकाओं ने भी हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया  है।हिंदी के क्षेत्र में यहां अनेक ख्याति लब्ध साहित्यकार हुए और उन्होंने अपने अपने समय में किसी न किसी हिंदी पत्रिका को महत्वपूर्ण बनाया।पंडित देवी दत्त शुक्ल के संपादन में निकलने वाली *चंडी* पत्रिका ने भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया।बाद में वहां से *संपादक की वाणी* नामक पत्रिका कई वर्षों तक निकलती रही  ,जिसका संपादन पंडित रमादत्त शुक्ला ने  पूरी निष्ठा और लगन से  जीवन पर्यंत किया।धार्मिक साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रिकाओं में यहां अच्छी खासी संख्या में अपना योगदान दिया। श्री देवरहा बाबा सेवाश्रम  प्रयागराज  से   स्वामी सर्वेश्वर प्रपन्नाचार्य   महाराज के सम्पादन में  निकलने  वाली मासिक पत्रिका  *तीर्थराज सुसन्देश* ने  बहुत ख्याति  अर्जित की थी।दयाशंकर सिंह के संपादन में *संकट मोचन कृपानिधान* त्रैमासिक पत्रिका भी बहुत दिनों तक निकाली। सुप्रसिद्ध साहित्यकार   भैरव प्रसाद गुप्त के संपादन में *कहानीकार* पत्रिका निकली।बच्चों की भी अनेक पत्रिकाओं ने यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।*अच्छे भैया*  और  *नन्हें मुन्नों का अखबार*  ने  अपनी खूब पहचान  बनाई।यूं तो हिंदी की अनेक पत्रिकाओं ने यहां कालांतर में हिंदी साहित्य के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया।महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और  वरिष्ठ  पत्रकार ठाकुर श्रीनाथ सिंह ने  *दीदी* और  *बालसखा* नामक पत्रिका का संपादन किया  जो वे प्रखर पत्रकार थे। आजादी के पूर्व हिंदी साहित्य की जो पत्रिकाएं निकलती थी उसमें अनेक पत्रिकाओं ने हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।आजादी के बाद भी यहां के  ख्यातिलब्ध कई साहित्यकारों ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करके हिंदी को आगे बढ़ाया। डॉ रामकुमार वर्मा जी के संपादन में  *अनुपमा*  नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ था जिसमें डॉक्टर नरेश कुमार गौड़ अशोक भी संपादक मंडल में  शामिल थे। औद्योगिक क्षेत्र नैनी से *सरे आम* साप्ताहिक समाचार पत्र ने मजदूरों की आवाज बनकर अपनी ख्याति अर्जित की।आंचलिक क्षेत्र में हिंदी की पहली पत्रिका *साहित्यांजलि* 1981 से निकली जिसके संपादक भगवान प्रसाद उपाध्याय  रहे। बाद में यह पत्रिका  *साहित्यांजलि प्रभा* के नाम से 1986 से मासिक पत्रिका के रूप में अब तक प्रकाशित हो रही है। इस पत्रिका का लोकार्पण विख्यात साहित्यकार नर्मदेश्वर चतुर्वेदी जी ने 15 जुलाई 1986 को जानसेन गंज में पंडित ओंकारनाथ त्रिपाठी के चित्रकला भवन में किया था, जिसकी अध्यक्षता श्रीमती शकुंतला सिरोठिया ने की थी और अंजनी कुमार  दृगेश,  डॉक्टर संतकुमार, बृजमोहन श्रीवास्तव चंचल , श्री प्रेम नारायण गौड़  आदि उपस्थित थे।  प्रारंभ में जब यह पत्रिका 1981 में त्रैमासिक  पत्रिका के रूप में शुरू हुई थी तो  इसका लोकार्पण तत्कालीन लोकप्रिय राजनेता पंडित के०  पी०  तिवारी ने मकर संक्रांति के मनैया   मेले में किया था।इस पत्रिका का   निबंध विशेषांक और  पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी स्मृति अंक  बहुत ही चर्चित रहा। इसके स्थापना काल से ही  डॉक्टर नरेश कुमार गौड़ अशोक और  अजीत  कुमार  साहिल  का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता  *साहित्यांजलि  प्रभा* को  श्रीमती महादेवी वर्मा, डॉ रामकुमार वर्मा ,डॉक्टर जगदीश गुप्त  डॉक्टर किशोरीलाल ,डॉक्टर संतकुमार टंडन रसिक  , कैलाश कल्पित, केशव चंद्र वर्मा , श्रीमती शकुंतला सिरोठिया ,प्रेम नारायण गौड़, नर्मदेश्वर चतुर्वेदी ,ठाकुर श्री नाथ सिंह , वीरेंद्र बालूपुरी , डॉ तिलक राज गोस्वामी, अंजनी कुमार दृगेश , डॉ प्रभात शास्त्री , डॉ मोहन अवस्थी , डॉक्टर हरदेव बाहरी,  डॉ नरेश कुमार गौड़ अशोक, कैलाश गौतम   , पंडित हरिमोहन मालवीय   , पंडित रमादत्त शुक्ला , डॉक्टर संत कुमार कृष्णेश्वर  डींगर  , स्वामी नीलमणि दास  , पंडित हेरंब मिश्र  , डॉ बालकृष्ण पांडेय ( हिंदी साहित्य सम्मेलन) , श्याम मोहन अवस्थी , डॉक्टर दूधनाथ सिंह  , महावीर प्रसाद मिश्र  सुरभि  , अरुण कुमार अग्रवाल ,पंडित विद्याधर शुक्ला ,  जैसे  अनेक   विद्वानों का आशीर्वाद प्राप्त हो चुका है।

  इसी प्रकार 1984 में *वर्तमान साहित्य* नामक पत्रिका निकली और उसने एक नया कीर्तिमान बनाया। इसी दौर में *अनुगमन*   त्रैमासिक हिंदी पत्रिका श्री हरिशंकर द्विवेदी अज्ञान के संपादन में निकली।

इसी कालखंड में हिंदी की मासिक पत्रिका *पहचान* तथा *उदीयमान* नामक पत्रिका  ने   भी हिंदी की सेवा में अपनी महती भूमिका का निर्वाह किया ।श्री श्याम कुमार के संपादन में *जन संसद* समाचार पत्र भी चर्चित रहा।1983 से साप्ताहिक *नवांक*  ने भी नवोदित लेखकों को बहुत प्रोत्साहित किया। टी के  भार्गव   का    साप्ताहिक  समाचार पत्र   *टी के  टाइम्स* भी  बहुत दिनों तक निकला । प्रभाकर भट्ट  के सम्पादन में   *महागुरू*    साप्ताहिक समाचार पत्र ने खूब   धूम   मचाई   तो  अरुण कुमार अग्रवाल के  सम्पादन में   *अन्तर्राष्ट्रीय श्रोता समाचार*   ने   पत्रकारिता जगत में एक मील का पत्थर स्थापित किया। इन्हीं  दिनों *तीर्थराज टाईम्स* ने   भी  नए लोगों को खूब  महत्व दिया। गांधी भवन से प्रकाशित होने वाला *नगर स्वराज* नामक समाचार पत्र पंडित बनवारी लाल शर्मा के संपादन में बहुत लोकप्रिय रहा।कालांतर में यहां हिंदी के कई महत्वपूर्ण समाचार पत्र और पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ जिसमें *गंगा यमुना* का नाम उल्लेखनीय है। कुछ  दिनों तक  *संगम सीन*   साप्ताहिक समाचार पत्र भी  निकला। 1990 के दशक में खेल पर आधारित *खेल भारत टाइम्स*  समाचार पत्र का प्रकाशन श्यामेंद्र कुशवाहा के संपादन में शुरू हुआ था। 

   *प्रयाग समाचार*  , *प्रयाग दर्पण*  ,  *प्रयाग प्रताप*  , *इलाहाबाद केसरी* , *मेलजोल*  , *देशदूत* आदि पत्र पत्रिकाएं  भी  महत्वपूर्ण रहीं। प्रयाग से कई प्रतियोगी पत्रिकाओं का भी प्रकाशन  और संपादन  महत्वपूर्ण  रहा   जिसमें रतन कुमार दीक्षित के संपादन में *प्रगति मंजूषा* अपने समय की बहुत सफल पत्रिका मानी जाती थी बाद में कई अन्य प्रतियोगी पत्रिकाएं भी निकली दिन में *घटना चक्र* आज भी प्रकाशित हो रही है।

 दैनिक समाचार पत्रों के  साप्ताहिक परिशिष्ट  पहले  पूरी निष्ठा और लगन के साथ निकलते थे   जिसमें नवोदित एवं स्थापित साहित्यकारों को पर्याप्त सम्मान दिया जाता था ।संगीत नाटक अकादमी की त्रैमासिक पत्रिका *छायानट* का संपादन  हुआ  जो प्रयागराज से ही हो रहा था ।1980 से लेकर 1990 तक का जो दशक था वह हिंदी पत्रिकाओं का  स्वर्णिम काल था। सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार श्रीमती शकुंतला सिरोठिया के संपादन में  हिंदी साहित्यकारों के लिए समर्पित त्रैमासिक पत्रिका *अभिषेक श्री*  का प्रकाशन भी 1984 से शुरू हुआ था कई वर्षों तक यह साहित्यकारों को प्रोत्साहित करती रही। प्रयाग की साहित्य पत्रिकाओं की यात्रा बहुत उर्वर है। यहां से पिछले तीस  वर्षों से   *गांव की नई आवाज* पत्रिका का निरंतर प्रकाशन विजय चितौरी के संपादन में हो रहा है।वर्तमान में  हिंदी साप्ताहिक *शहर समता* ने अपने कई महत्वपूर्ण विशेषांक निकालकर हिंदी के साहित्यकारों को प्रोत्साहित किया।आज भी यह निरंतर प्रकाशित हो रहा है  और  अनेक समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं हिंदी के उन्नयन में लगी हुई हैं।  प्रयागराज से वर्तमान दशक में हिंदी के कई दैनिक समाचार पत्र भी पूरी निष्ठा के साथ प्रकाशित किया जा रहे हैं। हिंदी प्रेमियों और समर्थकों की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे हिंदी की लघु पत्र-पत्रिकाओं को आर्थिक संबल दे कर उन्हें जीवन  भर बनाए रखें और इस महानगर की विरासत बचाने में अपनी भूमिका निभाएं ।


निवास :--

*पत्रकार भवन*  गंधियांव  , 

करछना, प्रयागराज  उ० प्र०, 

पिनकोड      212301

मोबाइल   9935205341

वाट्सएप  8299280381