Breaking News

आज आमने सामने हो सकते है हड़ताली विद्युत कर्मचारी और उपभोक्ता, संघर्ष के पूरे आसार



मधुसूदन सिंह

बलिया।। बिजली विभाग के कर्मचारियों की हड़ताल और सरकार की चुप्पी से आम लोगों मे आक्रोश बढ़ने लगा है। चार दिनों से चल रही हड़ताल और वार्ता की कोशिश भी न होना, यह सरकार और कर्मचारियों के अड़ियल रुख को दर्शा रहा है। इन दोनों के संघर्ष के चलते आम लोगों की परेशानी बढ़ गयी है। दो दिनों से लोगों के घरों मे पानी नही है, बिजली न होने से अंधेरा फैला हुआ है, लेकिन इसको देखने और समझने वाला कोई नही है। लोग पानी के लिये बिलबिला रहे है लेकिन न तो बिजली कर्मचारियों, न तो प्रशासनिक अधिकारियों को यह दिख रहा है। इन लोगों के घरों मे सरकारी पैसे से चलने वाले जेनरेटर इनको रौशनी जो दे रहे है।

बलिया मे जिला प्रशासन ने भागदौड़ करके देर शाम सिविल लाइन फीडर को चालू करके अपने घरों मे बिजली आपूर्ति तो शुरू करा दी लेकिन अन्य फीडरों को चालू नही करा पाये, इससे आम जन मे और आक्रोश भड़काया है। शुक्रवार की देर शाम बिजली के लिये ही कुंवर सिंह चौराहे को छात्रों द्वारा जाम किया गया था जिसको खुलवाने मे प्रशासन को जाड़े मे पसीने छूट गये। छात्रों ने साफ चेताया था कि अगर आज बिजली शुरू नही हुई तो कल हड़ताली कर्मचारियों संग हमारी टकराहट भी संभव है।



मानवीय संवेदना भूलने से टकराहट के आसार

आम लोगों का कहना है कि बिजली विभाग के कर्मचारी मानवीय संवेदना भी भूल गये है, जिससे इनकी मांगो को आमजन से समर्थन मिलने की बजाय टकराहट होने की संभावना बढ़ती जा रही है। लोगों ने कहा कि अस्पताल और बिजली आज जीवन के लिये अपरिहार्य हो गये है। ऐसे मे बिजली विभाग के कर्मचारियों को चिकित्सकों की तरह हड़ताल करनी चाहिये थी, जिसमे आपातकालीन सेवा बंद नही होती है। बिजली कर्मचारियों को भी सुबह शाम लोगों को परेशानी न हो इसके लिये बिजली आपूर्ति चालू रखनी थी, लेकिन इन लोगों ने सरकार के साथ साथ आमजन को भी परेशान करने के सरकार को झुकाने की जो नीति अपनायी है, यह ठीक नही है। संभावना यह है कि अगर सुबह दश बजे तक बिजली आपूर्ति शुरू नही हुई तो आम उपभोक्ता धरना स्थल पर पहुंच कर बवाल कर सकता है।










सभी समस्या का समाधान प्राइवेटाइजेशन नही 

सरकारी कर्मचारियों की मांगो से परेशान सरकार, सरकारी विभागों को प्राइवेट उद्योगपतियों के हाथों मे सौपने की योजना पर काम करती हुई दिख रही है। सरकार की नीति न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाली लग रही है। न सरकारी विभाग रहेगा और न हड़ताल की नौबत आएगी, इसी सोच पर संभवतः कार्य चल रहा है। लेकिन यह सोच जिसने भी सरकार को सुझायी है ठीक नही है। पिछले दिनों करोना काल ने हमको सीख दे दी है, फिर भी अगर हम अनजान बन रहे है तो यह भविष्य के लिये ठीक नही है।

करोना महामारी मे चाहे अम्बानी हो या अडानी, किसी ने भी अपने उन कर्मचारियों को जो अपना खून पसीना बहाकर इनकी तिजोरी भरते है, एक दो माह तक खाना ही दे दे, नही दिया था, इनकी कंपनियों और अन्य से लोग पैदल ही भूखे प्यासे अपने घरों के लिए पैदल ही निकले थे। तब ऐसे लोगों के लिए चाहे सरकारी डॉक्टर हो, पुलिस के लोग हो, प्रशासन के लोग हो, रोडवेज के कर्मचारी हो, सफाई कर्मचारी हो, सभी ने अपनी जान को जोखिम मे डालकर ऐसे लोगों की मदद की थी। बिजली विभाग के कर्मचारियों ने भी तब विद्युत आपूर्ति को निरंतर चालू रखा था। उस समय न तो कोई प्राइवेट अस्पताल खुला था, न ही कोई प्राइवेट चिकित्सक इलाज कर रहा था। जब ऑक्सीजन की सप्लाई की बात आयी तो भी किसी प्राइवेट कम्पनी ने नही दिया बल्कि उस सरकारी कम्पनी ने दिया जो बेचे जाने वाली कंपनियों की सूची मे टॉप मे थी।



अधिकारियों की टीम की जगह मंत्रियों की बने सलाहकार टीम

पिछले आठ सालों से एक नया ट्रेंड चला है जिसमे सरकार को सलाह देने के लिये जो टीम बनायीं जा रही है वह वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों की बन रही है जबकि इससे पहले ऐसी टीम वरिष्ठ मंत्रियो की बनायीं जाती थी। मंत्रियो को आम लोगों की परेशानी ज्ञात रहती है, क्योंकि इनका छोटे से लेकर बड़े लोगों तक सीधे जुड़ाव रहता है। लेकिन वातानुकूलित कमरों ने बैठ कर योजना बनाने वाले वरिष्ठ आइएएस अधिकारियों का जुड़ाव सिर्फ बड़ो से होता है, आमजन तो इनके पास भी नही फटक सकता है। ऐसे मे इनकी सोच मे कभी भी आमजन की भलाई की बातें उतनी नही हो सकती है जितनी नेताओं की सोच मे होती है। यही सोच है कि जिले के आला अधिकारियों ने अपने घरों मे बिजली आपूर्ति पहुंचा ली और आमजन को पानी के लिये तड़पने को छोड़ दिया। एक आइएएस अधिकारी की वजह से पूरे प्रदेश के लोग पानी के लिये तरस रहे है और शासन प्रशासन लाचार है, यह दर्शाने के लिये काफी है कि सरकार पर आइएएस अधिकारियों का शिकंजा कितना कड़ा है।







प्रशासन