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नियम विरुद्ध चहेती फर्मो को जेम पोर्टल के माध्यम से आर्डर देने की जिलाधिकारी से शिकायत, स्वास्थ्य विभाग मे लगभग 2.4 करोड़ के लैपटॉप डेस्कटॉप खरीदने के लिये आर्डर देने का मामला

 


मधुसूदन सिंह

बलिया।। मुख्यचिकित्साधिकारी बलिया डॉ जयंत कुमार के अति करीबी अधिकारी अपर मुख्य चिकित्साधिकारी (नोडल स्टोर ) डॉ वीरेंद्र कुमार और इनके सहयोगी स्टोर कीपर पारस राम की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। इन दोनों लोगों के खिलाफ अजीत सिंह नामक एक शिकायतकर्ता ने जिलाधिकारी बलिया से लिखित शिकायत कर लैपटॉप व डेस्कटॉप खरीदने के लिये जेम पोर्टल के माध्यम से अपने चहेतो को नियम विरुद्ध तरीके से आर्डर देने के प्रयास के मामले को उजागर किया है। सूत्रों की माने तो जिलाधिकारी ने इस प्रकरण पर जांच बैठा दी है।

प्रकरण के संबंध मे मिली जानकारी के अनुसार शिकायतकर्ता अजीत सिंह ने कहा है कि स्वास्थ्य विभाग मे 143 लैपटॉप और 78 डेस्कटॉप (कुल कीमत लगभग 2.4 करोड़ रूपये ) के लिये स्वास्थ्य विभाग बलिया द्वारा जेम पोर्टल के माध्यम से टेंडर निकाला गया। कई फर्मो ने इसके लिए जेम के माध्यम से निविदा डाली। लेकिन स्टोर प्रभारी डॉ वीरेंद्र कुमार ने सिर्फ अपनी तीन फर्मो को ही टेक्निकल रूप से टेंडर के अनुरूप पाते हुए शेष फर्मो को डिस क्वालीफाई कर दिया। चुंकि यह टेंडर समय सीमा से बंधित था और 30 दिनों मे इसके फाइनेंसियल बिड के आधार पर तीन फर्मो मे से एक फर्म का चयन करना था लेकिन इन लोगों द्वारा ऐसा नही किया गया।



शिकायतकर्ता के अनुसार इन लोगों ने नियम विरुद्ध तरीके से 30 दिन की सीमा की बजाय इस सीमा के बीत जाने के बाद लगभग 3 माह मे फाइनेंसियल बिड का सेलेक्शन कर सरकारी धन का बंदरबाँट करने का प्रयास किया। जिसकी भनक लगते ही शिकायतकर्ता ने शिकायत करके इनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है। अब यह प्रकरण जिलाधिकारी बलिया के यहां जांच के अधीन है।



वैसे ऐसा नही है कि डॉ वीरेंद्र कुमार और पारस राम के द्वारा किया जाने वाला यह पहला प्रयास है। अगर इन दोनों लोगों के कार्यकालों मे जेम पोर्टल के माध्यम से हुई खरीद प्रक्रिया की जांच करा दी जाय तो इससे भी बड़े बड़े कारनामें सामने आ सकते है। एनएचएम  के बजट को सुरक्षित और निर्धारित लक्ष्य के सापेक्ष खर्च हो, इसकी निगरानी के लिए डीपीएम की नियुक्ति है। लेकिन इस तरह की अनियमितता को मुकदर्शक बनकर देखने वाले डीपीएम की भूमिका की भी जांच होनी चाहिये कि क्या इस प्रकरण मे इनकी भी मौन स्वीकृति है या इनको इसकी भनक भी नही लगी है। अगर भनक भी नही लगी है तो यह भी चिंता का विषय हो सकता है क्योंकि यह उस कहावत को चरितार्थ कर देती है कि -- भीलों ने बाँट लिए जंगल, राजा को खबर ही नही।

सूत्रों से मिली खबर के अनुसार स्टोर कीपर पारस राम का पुराना इतिहास भी काफ़ी स्याह रहा है। इनके पूर्व तैनाती का ऐसा कोई जनपद नही था जहां इसको वित्तीय अनियमितता मे निलंबित न किया गया हो। बलिया के पूर्व मुख्यचिकित्साधिकारी डॉ नीरज पांडेय के कार्यकाल मे इसी कारण इसको कोई भी कार्य नही दिया गया था।