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कोरोना के चलते बच्चो में घर कर गयी है HALT नामक बीमारी,दूर भगाना जरूरी : सलोनी प्रिया








मधुसूदन सिंह

बलिया ।। पिछले 2 सालों से कोरोना महामारी ने जहां एक तरफ आर्थिक व सामाजिक दोनों क्षेत्रों में गिरावट लायी है ,तो वही इसके चलते स्कूलों के बन्द रहने से छोटे बच्चों की चाहे शारीरिक विकास हो या शैक्षणिक दोनों को ही प्रभावित किया है । खास कर 3 साल से 10 साल के बच्चों पर इसका खासा असर देखने को मिल रहा है । कोरोना काल के बाद जब बच्चो के स्कूल खुल गये है तो बच्चो में कई तरह की कमियां देखने को मिल रही है । किसी बच्चे को स्कूल की सीढ़ियों पर चढ़ने में दिक्कत हो रही है, तो कोई फिजिकल एक्सरसाइज में थक जा रहे है,कितने बच्चो को अपने क्लास के अन्य बच्चों से कनेक्ट होने में दिक्कत आ रही है । ऐसे में अब सरकार हो या स्कूल कोरोना के प्रभाव से बच्चो को कैसे मुक्त किया जाय, इसके लिये सेमिनार/कार्यशालाओं का आयोजन कर रहे है ।




बलिया जनपद का सीबीएसई पैटर्न से संचालित सुप्रसिद्ध सनबीम स्कूल अगरसंडा के द्वारा 26 मार्च को देश व विदेशों में सुविख्यात बाल मनोवैज्ञानिक सलोनी प्रिया को अपने यहां आमंत्रित करके बच्चो और अभिभावकों शिक्षकों के लिये अलग अलग कार्यशालाओं का आयोजन किया गया । 

कार्यशाला स्थल तक एनसीसी के छात्रों द्वारा पायलेटिंग करते हुए भारत की सुप्रसिद्ध बाल मनोवैज्ञानिक सलोनी प्रिया को लाया गया । विद्यालय के उपाध्यक्ष दयाशंकर वर्मा,सचिव अरुण सिंह ,डायरेक्टर डॉ कुंवर अरुण सिंह द्वारा श्रीमती सलोनी प्रिया को मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया ।प्रधानाचार्य अर्पिता सिंह द्वारा अंगवस्त्रम से सम्मानित किया गया ।स्टेज पर पहुंचने के बाद सलोनी प्रिया ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की ।

सलोनी प्रिया ने पहले सेमिनार में बच्चो को असफल होने के डर को बाहर निकाल कर कैसे सफलता प्राप्त की जा सकती है,को समझाया और उनके विभिन्न सवालों का तार्किक जबाब से समाधान किया ।




दूसरे सत्र में शाम 5 बजे से अभिभावकों और शिक्षकों के लिये आयोजित कार्यशाला में सैकड़ो अभिभावकों,शिक्षकों ने प्रतिभाग किया । इस कार्यशाला में सलोनी प्रिया ने बच्चो की परवरिश में आने वाली दिक्कतों को कैसे दूर किया जा सकता है, को जहां विस्तार से समझाया , तो वही अभिभावकों को बच्चो की हर छोटी बड़ी जिद को मानने से भविष्य में आने वाली समस्याओं के प्रति आगाह भी किया ।



कहा कि बच्चे सबसे पहले अपने घर के माहौल को ही अब्जॉर्ब करते है,माता पिता के व्यवहार को देखकर सीखते है । इस लिये जरूरी है कि बच्चो को घर के अंदर संस्कार डालने की कोशिश की जानी चाहिये, न कि स्कूल के भरोसे छोड़ देना चाहिये । बच्चे की हर ख्वाहिश जो सही हो पूरी करें लेकिन उसकी जिद को प्यार के साथ ठुकराये, डांट कर नही , नही तो उसमें कुंठा भर जायेगी । बच्चे की बात को क्यो ठुकराया जा रहा है इसको तार्किक तरीके से समझाना जरूरी है जिससे बच्चा भविष्य में ऐसी जिद दुबारा करने के विषय मे स्वयं ही कोशिश न करें ।





देश विदेश के तमाम कार्यशालाओं में अभिभावकों की ओर से आयी बच्चो की परवरिश की समस्याओं को बताते हुए सलोनी प्रिया ने कहा कि परवरिश का कोई ऐसा नियम नही है,किसी विश्वविद्यालय में डिग्री कोर्स नही है जो बता दिया जाय और आप परफेक्ट तरीके से अपने बच्चों की परवरिश कर ले । सरल भाषा मे कहे तो परवरिश कला और मनोविज्ञान है  । यह भावनात्मक रूप से जुड़ाव है । यही नही परवरिश का तरीका समय के साथ बदलता रहता है ।आप अपने बच्चों से जितना भावनात्मक रूप से जुड़ेंगे, बच्चे का विकास उतना ही परफेक्ट होगा।परवरिश में आने वाली तमाम परेशानियों को उद्धरित करने के बाद सलोनी प्रिया ने कोरोना के चलते परवरिश में आ रही दिक्कतों को कैसे दूर किया जा सकता है, को उदाहरणों के जरिये बखूबी समझाया ।




कहा कि हाल्ट (HALT) बीमारी को बच्चो के जीवन से दूर भगाना है । कहा कि HALT का मतलब है - H-hungri, A-angree, L-lonely और T-tiered । कोरोना काल मे बच्चे एक घर या एक कमरे की चहारदीवारी के अंदर कैद रहे है । फिजिकल एक्सरसाइज हुआ ही नही है,चाहे लैपटॉप हो या मोबाइल हो या अन्य गैजेट के सहारे पढ़ाई किये है । ऐसे में बच्चों में अकेले रहने और थकान की  समस्या घर कर रही है । ऐसे में बच्चो के अंदर कोरोना के चलते जो हाल्ट नामक बीमारी आयी है, उसको दूर भगाना है ।




कहा कि कोरोना में जो वर्चुअल रूप से एक दूसरे से जुड़ा गया, उसको अब वर्चुअल से रियल यानी वास्तविक रूप में लाना है । जैसे कोरोना काल मे ऑनलाईन क्लासेस हुई जो वर्चुअल थी, अब ऑफ लाइन शुरू हो गयी है, जो वास्तविक है  । वही कोरोना में सेल्फ यानी स्वयं के बचाव के प्रति जो सोच पनपी, उसको सोसाइटी की तरफ ले जानी आवश्यक है । बच्चे को घर की चहारदीवारी से निकाल कर बाहर के समाज से मेलमिलाप कराना बहुत जरूरी हो गया है ।



कहा कि बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिये जरूरी है कि बच्चे का परिवार स्वास्थ्य रहे । इसके लिये पूरी फैमिली को सुबह सुबह फिजिकल एक्सरसाइज करना चाहिये,टहलना चाहिये, बच्चे के साथ कूदना,दौड़ना भागना आदि खेल खेलना चाहिये, जिससे बच्चा जहां आपके साथ निर्भयता के साथ आपके साथ समय गुजार सके, आपको अपना दोस्त समझ सके, तो दूसरी तरफ इससे उसका शारीरिक विकास भी हो सके ।



बच्चो की परवरिश में माता पिता दोनों को कुम्हार बनना पड़ेगा । जिस तरह कुम्हार मिट्टी के  लोने से जब वर्तन बनाता है तो कभी उसको प्यार से छूता है, कभी सुंदर आकृति देने के लिये वर्तन के अंदर हाथ रखकर बाहर से चोट भी मारता है,तब जाकर एक मनचाहा वर्तन बना पाता है । परवरिश भी कुम्हार की तरह ही है । आपको अपने बच्चे को सहलाना भी है, तो जरूरत के अनुसार उसको चोट देकर सुंदर भी बनाना है ,साथ ही यह भी देखना है कि चोट लगने से बच्चे के दिमाग ने कोई गलत धारणा न बने इसके लिये उसके दिल मे यह सोच डालनी होगी कि यह उसी के भले के लिये किया गया है ।





कहा कि बच्चो के द्वारा पूंछे गये सवालों से न तो आप झुंझलाये न ही बच्चे को डांटे बल्कि उसका तार्किक उत्तर देकर उसकी जिज्ञासा को शांत करें । ऐसा करने से जहां उसका आपसे जुड़ाव और गहरा होगा, वही वह अपनी हर बात आपसे छुपायेगा नही बल्कि शेयर करेगा । बच्चे को पढ़ना जरूरी है लेकिन हर वक्त वह पढ़े यह सोच सही नही है । बच्चे को किताबो की दुनिया से अलग की दुनिया ने भी जीना जरूरी है । बच्चे को माता पिता दोनों के साथ समय बिताना अच्छा लगता है, यह बच्चो का अधिकार भी है । इस लिये बच्चो को समय देना बहुत जरूरी है । चाहे कामकाजी माता पिता हो या अन्य सभी को घर मे एक समय निर्धारित करना चाहिये जो बच्चो के साथ बिताने का हो, इस दरम्यान कोई अन्य कार्य न हो , मोबाइल लैपटॉप का प्रयोग तो एकदम न हो ।

कहा कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जहां हमारी जिंदगी को आसान बना देते है तो वही इनके अत्यधिक प्रयोग हमारी खुशहाल जीवन को नरक भी बना देते है । सलोनी प्रिया ने कहा कि जिस तरह किचेन में रखा चाकू सब्जी सलाद काटता है,तो असावधानी में हमारा हाथ भी काट सकता है, किसी का गला भी काट सकता है । बस आवश्यकता है हमे सावधानी के साथ प्रयोग करने की । इलेक्ट्रॉनिक गैजेट भी ऐसे ही है । इनका संतुलित उपयोग जिंदगी बदल सकता है तो अत्यधिक प्रयोग जिंदगी को जहन्नुम भी बना सकता है ।

सलोनी प्रिया ने अभिभावकों व शिक्षकों को चेतावनी भरे शब्दो मे समझाया कि बच्चो से भूलकर भी झूठ मत बोलियेगा । झूठ की बुनियाद पर खड़ी इमारत की उम्र लम्बी नही होती है । बच्चे की ख्वाहिश पूरी करना आपके वश में नही है, आर्थिक हालात साथ नही दे रहे है तो बच्चे को बताइये कि क्यो हम आपकी ख्वाहिश पूरी नही कर पा रहे है,बच्चे बहुत समझदार होते है,अगर आपका और उनका भावनात्मक स्तर पर सच्चा जुड़ाव है तो वह आपके इंकार से कभी नाराज नही होगा । परवरिश भावनात्मक जुड़ाव का अद्भुत सेतु है, जो अगर विश्वास सच और प्यार से बना है तो यह आजीवन चलता है, इसके ऊपर किसी भी तूफान भूकंप का कोई असर नही पड़ता है ।

इस अवसर पर एडमिन संतोष कुमार चतुर्वेदी , हेडमिस्ट्रेस ज्योत्सना तिवारी, कोआर्डिनेटर डॉ आर बी दुबे, स्नेहा सिंह ,शहर बानो ,नीतू पांडे , निधि सिंह व शिक्षक गण मिथिलेश पांडे ,पंकज सिंह ,विशाखा सिंह , डॉ नवचंद्र तिवारी ,मोनिका दुबे, अनूप गुप्ता, राजेश विक्रम सिंह ,सुनील सिंह, स्वाति सिंह, फजलुर्रहमान ,जयप्रकाश यादव आदि थे। एनसीसी के छात्र भी व्यवस्था को सफल बनाने में लगे रहे। संचालन श्रेया चतुर्वेदी व अंशिता पांडे ने  किया ।