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परमप्रज्ञ साहित्यसाधक ,नये पत्रकारों के प्रशिक्षक है डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय

 


दिनांक 1 जनवरी 2022 को 67 वें जन्मदिन पर विशेष

भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक है डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय

 डॉक्टर  त्रिलोकी सिंह 

प्रयागराज ।। ख्यातिप्राप्त  साहित्यकार, पत्रकार एवं समीक्षक डॉ०भगवान प्रसाद  उपाध्याय के आकर्षक व्यक्तित्व एवं प्रभावशाली कृतित्व का निरूपण करने के पूर्व यह अवगत कराना समीचीन होगा कि वे मेरे अभिन्न सहपाठी रहे हैं और जीवन की बाल्यावस्था से ही उनके मन में साहित्य के प्रति अत्यन्त अभिरुचि जागरित  हो गई थी। अपनी इसी अभिरुचि के कारण तत्समय वे न केवल ख्यातिलब्ध साहित्यकारों की कृतियों का अध्ययन करते अपितु स्वयं भी गीत-कविताओं के प्रणयन  में तत्पर हो जाते। अपनी इसी विशिष्ट प्रतिभा के फलस्वरूप स्नातक की शिक्षा प्राप्त करते-करते उन्होंने लगभग डेढ़-दो सौ कविताओं की रचना कर डाली थी। इतना ही नहीं , साहित्य के प्रति उनका प्रेम व समर्पण-भाव इस सीमा तक बढ़ गया कि उन्होंने वर्ष  19 81 में एक साहित्यिक पत्रिका  "साहित्यांजलि"  के सम्पादन व प्रकाशन का दृढ़ निर्णय कर लिया जो अपनी    परिपक्वावस्था में आज भी प्रतिमाह प्रकाशित होकर न केवल प्रयागराज जनपदान्तर्गत यमुनापार की एक विशिष्ट पत्रिका के रूप में लोकप्रिय हुई है वरन् देश की शीर्षस्थ साहित्यिक पत्रिकाओं की दीर्घ श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देश के कोने-कोने में साहित्यानुरागियों द्वारा पढ़ी जा रही है।

 यद्यपि इस पत्रिका के प्रकाशन में कभी-कभार छोटी-मोटी समस्याएँ अवश्य आईं पर मेरे अग्रज सहपाठी डॉ० उपाध्याय जी के अडिग निर्णय के सामने वे टिक न सकीं और पत्रिका का समयबद्ध प्रकाशन निर्बाध रूप से होता रहा है जिससे असंख्य पाठक सुपरिचित हैं ।पत्रिका-प्रकाशन के गुरुतर दायित्व का निर्वहन करने के साथ-साथ डॉ०उपाध्याय जी ने 1000 से अधिक कविताओं और लगभग 800 से ऊपर गद्य विधा की स्तरीय रचनाओं का लेखन किया जिनमें अधिकांश का प्रकाशन  देश की विभिन्न छोटी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों के रूप में हो चुका है और गद्य-पद्य की लगभग पंच   शताधिक रचनाएँ प्रकाशनोन्मुख हैं। साहित्य के प्रति अपने इसी समर्पण - भाव एवं अटूट लगाव के कारण ही वे "साहित्यांजलि प्रभा" अब मासिक पत्रिका के नियमित प्रकाशन की व्यस्तता में भी कहानी,लेख,लघुकथा एवं  गीतों  के लेखन में सतत सक्रिय रहते हैं ।  

       पत्रकारिता के क्षेत्र में भी डॉ० उपाध्याय जी की भूमिका महत्वपूर्ण तो है ही सर्वविदित भी है कि वे प्रदेश की कई पत्र-पत्रिकाओं से सम्बद्ध रहे और हिन्दी भाषा के अभ्युत्थान  में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । उन्होंने अथक परिश्रम के द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और प्रबुद्ध पत्रकारों को अपने साथ जोड़कर उनका पथ -प्रदर्शन किया। भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के रूप में एक ऐसा वट वृक्ष रोपित किया है जो 21 साल का युवा और 19 प्रान्तों में पत्रकारों की आवाज बन गया है । वर्तमान में ये इसके राष्ट्रीय संयोजक है । 

इतना ही नहीं,उन्होंने नए पत्रकारों को पत्रकारिता के उद्देश्य से अवगत कराकर उनका कर्तव्य- बोध कराते हुए सार्थक पत्रकारिता करने की प्रेरणा दी। यही कारण है कि उनके कुशल निर्देशन में पुष्पित- पल्लवित अनेक पत्रकार विभिन्न पत्रों से जुड़कर पत्रकारिता की एक अभिनव दिशा के संवाहक बनकर समाज में क्रियाशील हैं। इस दृष्टि से यदि उपाध्याय जी को छोटे-छोटे पत्रकारों के प्रशिक्षक की संज्ञा से अभिहित किया जाए तो अतिशयोक्ति   ना होगा। डॉ० उपाध्याय जी साहित्यकारों के मध्य एक वरिष्ठ समीक्षक के रूप में भी जाने जाते हैं। साहित्य की गद्य-पद्य दोनों विधा की कृतियों और रचनाओं की समीक्षा करने में भी वे सिद्धहस्त हैं। विषय वस्तु के चयन से लेकर विचारों के प्रस्तुतीकरण का सार्थक मूल्यांकन करना उनका स्वभाव रहा है। इसी श्रृंखला में उन्होंने अब तक शताधिक पुस्तकों की समीक्षा का गुरुतर कार्य किया है,जिसमें बहुधा समीक्षाएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं ।

डॉ उपाध्याय स्वयं की संपादित एवं प्रकाशित पत्रिका "साहित्यांजलि  प्रभा" के अंकों में भी देश के कोने-कोने से प्राप्त अनेक उच्च स्तरीय कृतियों की संक्षिप्त व तथ्यपरक समीक्षाएँ प्रकाशित होती रहती हैं,जिनसे नवोदित साहित्य- प्रेमियों का सफल मार्गदर्शन होता रहता है। साहित्यिक गतिविधियों में अहर्निशि सक्रियता की व्यस्तता के फलस्वरूप अभी डॉक्टर उपाध्याय जी समय-समय पर छोटी-बड़ी हर प्रकार की साहित्यिक एवं आध्यात्मिक गोष्ठियों का आयोजन विगत लगभग 40 वर्षों से करते आ रहे हैं। अपनी सहज और औदार्य-  वृत्ति के कारण ही वे लेखकों,कवियों, पत्रकारों एवं समाजसेवियों को सम्मानित कर उनका उत्साहवर्धन तो करते ही हैं,उन्हें साहित्यिक एवं सामाजिक सेवा के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। इतना ही नहीं देश की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं एवं समाजसेवी संगठनों के सादर आमंत्रण पर विगत लगभग 35 वर्षों से वे विभिन्न आयोजनों एवं कार्यक्रमों में प्रतिभाग करते आ रहे हैं। ऐसे आयोजनों में अध्यक्ष,मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि एवं प्रमुख वक्ता के रूप में उनकी भूमिका अत्यन्त सराहनीय रही है। प्रयोजनानुकूल उनका सारगर्भित एवं प्रभावशाली व्याख्यान जन-जन के लिए प्रेरणादायक रहा है।





अपने इन्हीं तमाम  वैशिष्ट्य  के कारण डॉ० उपाध्याय जी देश की लगभग दो सौ साहित्यिक संस्थाओं,सामाजिक संगठनों,कवि सम्मेलनों एवं कवि मंचों द्वारा स्तरीय काव्यपाठ करने के साथ ही अध्यक्ष, मुख्य अतिथि,विशिष्ट अतिथि का दायित्व-निर्वहन करने पर विशिष्ट सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। यह क्रम आज भी अनवरत चल रहा है। वह यमुनापार के पहले स्वर्णपदक प्राप्त पत्रकार हैं। उन्होंने अब तक स्वयं लगभग 2000 से अधिक पत्रकारों,साहित्यकारों,कवियों और लेखकों को सम्मानित किया है।हिंदी जगत के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ० उपाध्याय जी का साहित्य-सर्जन  का पक्ष जितना व्यापक और मूल्यवान है, उतना ही सफल और व्यापक उनके जीवन का व्यावहारिक पक्ष भी है। असाधारण विद्वत्ता के साथ-साथ उनकी व्यवहार कुशलता,सदाशयता   औदार्यवृत्ति एवं बिना किसी भी भेद  भाव  के सबके साथ घुलमिल जाने की सहजता उनके स्वभाव का एक विशिष्ट एवं अनुकरणीय पक्ष है। उनके आकर्षक व्यक्तित्व एवं हँसमुख स्वभाव के आगे उनके गंभीर चिंतन- पक्ष का सहसा अनुमान लगाना कठिन हो जाता है।नित्य ब्रह्म मुहूर्त में जग जाना,आवश्यक कृत्यादि से निवृत्त होकर कम से कम आधा घंटा टहलना,शारीरिक श्रम करना, गोसेवा , योगासन एवं स्नान के उपरांत पूजा-पाठ एवं ध्यान करना तदुपरांत अपने घरेलू कार्यों को सम्पन्न कर साहित्य-साधना में तत्पर हो जाना उनके नित्य के कृत्य हैं, जिन्हें वे अपनी बाल्यावस्था से आज तक बखूबी करते आ रहे हैं। 

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि शिक्षा जगत की अनेक उपाधियों और सम्मान से विभूषित परमप्रज्ञ साहित्य- साधक डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय एक वरिष्ठ गीतकार,वरिष्ठ कथाकार,वरिष्ठ आलोचक,वरिष्ठ पत्रकार एवं यशस्वी संपादक के रूप में हिंदी साहित्य के संवर्धन एवं समाज-सेवा में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान करते आ रहे हैं। हमें आशा ही नहीं,अपितु पूर्ण प्रतीति है कि वह जीवनपर्यन्त साहित्य-साधना में तत्पर रहकर लोकोपकार करते रहेंगे। किं बहुना,अंत में हम श्रद्धा- भाव से परमपिता परमात्मा से उनके स्वास्थ्य एवं दीर्घायु की कामना करते हैं, ताकि हमें दीर्घकाल तक उनका सान्निध्य प्राप्त होता रहे और हिन्दी साहित्य कोश में भी अप्रत्याशित अभिवृद्धि होती रहे। उनके 67 वें  जन्मदिन पर हम उन्हें कम से कम शतायु होने की कामना करते हैं । 

                   


 

         डॉक्टर त्रिलोकी सिंह 

        साहित्यकार एवं समीक्षक

       ग्राम-हिन्दूपुर,पोस्ट-करछना,

        जिला - प्रयागराज(उ०प्र०)

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