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धूमधाम से मनाया गया वन महोत्सव सप्ताह






डॉ सुनील ओझा

बलिया ।। नागा जी सरस्वती विद्या इण्टर कालेज जीराबस्ती, बलिया में वन महोत्सव सप्ताह धूम- धाम से मनाया गया,जिसके तहत विविध प्रकार के 60 पौधों का रोपण किया गया। पूरे सप्ताह में 201 पौधों की लगाने का लक्ष्य रखा गया था। आज वन सप्ताह समापन समारोह के मुख्य अतिथि रहे भाजपा के जिला अध्यक्ष श्री जय प्रकाश साहू, जबकि विशिष्ट अतिथि रहे हनुमानगंज विकासखण्ड के विकासखण्ड अधिकारी श्री डी०पी० यादव। कार्यक्रम की अध्यक्षता किए अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक। इस अवसर पर पटखौली ग्रामप्रधान श्री रामायण यादव सहित क्षेत्र के गणमान्य पर्यावरण प्रेमियों सहित विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री नागेन्द्र पाण्डेय के नेतृत्व में विद्यालय के सभी शिक्षक एवं कर्मचारी  वृक्षारोपण कार्यक्रम को सफल बनाने में लगे रहे। 

          इस अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य श्री नागेन्द्र पाण्डेय ने समारोह को संबोधित करते हुए पर्यावरण संरक्षण में वृक्षों की भूमिका पर विस्तृत प्रकाश डाला। अपने आध्यक्षीय उद्बोधन में पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने कहा कि यद्यपि कि अपने देश में वन महैत्सव की शुरूआत सन् 1950 में भारत सरकार के तत्कालीन कृषि मंत्री के०-एम० मुशी द्वारा किया गया किंतु वन महोत्सव हमारे भारतीय संस्कृति में प्रचीन काल से मनायी जाती रही है। पर्यावरण संरक्षण हेतु वृक्ष लगाने की संकल्पना हमारे वेदों, पुराणों,रामायण एवं महाभारत सहित अन्य ग्रंथों में वर्णित है। वृक्ष काटने पर दण्ड देने का भी विधान बनाया गया था। एक वृक्ष लगाने का महत्व 10 पुत्र उत्पन्न करने कज बराबर माना गया है। "वृक्ष देवो भव"की संकल्पना के साथ ही सभी महत्वपूर्ण वृक्षों एवं पशु- पक्षियों को देवी- देवताओं का वाहन बनाकर एवं उनके पूजा का विधान बनाकर उनके संरक्षण की संकल्पना को साकार रूप दिया गया है। किंतु आज हम इन सभी संकल्पनाओं को भुलकर वनों का विनाश करते जा रहे हैं। 


      डा० पाठक ने बताया कि अगर हम पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के मानदण्डों के अनुसार 33 प्रतिशत भूमि को वनों से आच्छादित कर दें सारी समस्याओं का समाधन हो जायेगा। वैश्विक तापन,ग्रीन हाउस प्रभाव एवं जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न अधिकांश समस्याओं का समाधन धरती को हरा - भरा करके ही किया जा सकता है। किंतु विडम्बना यह है कि सरकारी आँकड़ों के अनुसार अपने देश के मात्र 23 प्रतिशत भूमि ही वनों से आच्छादित है। बलिया सहित पूर्वानचल की स्थिति को बेहद बराब है। बलिया में तो प्राकृतिक वनों की स्थिति शून्य है और रोपित वृक्ष भी एक से दो प्रतिशत के मध्य है,जिससे पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र बेहद असंतुलित अवस्था में है ,जिसका दुष्परिणाम हमें प्राकृतिक आपदाओं के रूपमें झेलना पड़ रहा है। कृषि एवं स्वास्थ्य सहित जल संसाधन पर संकट गहराता जा रहा है, जिसका एक मात्र उपाय अधिक से अधिक वृक्षों लगाना है और सिर्फ लगाना ही नहीं है, बल्कि उसे अपने छोटे सच्चे की तरह पालध- पोषण करके सुरक्षित एवं संरक्षित रखते हुए एक बड़े वृक्ष के रूप में साकार करना है। इसके लिए हमें अधिक से अधिक जनजागरूकता फैलान होगा और जन- जन को सहभागी बनाना होगा।