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मंत्रोच्चार के बीच अमेरनाथ शिंगदेवा जी का हुआ सिंहासनाभिषेक

 

 




दिल्ली ।।  वसंत विहार इलाका में शुक्रवार को सुबह 9 बजे से ही मन्त्रोंचार की गूँज उठ रही थी। मौका था अखिल भारतीय मठ  मंदिर समन्वय समिति के माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमेरनाथ शिंगदेवा जी का सिंहासनाभिषेक का। वहीं जगद्गुरु स्वामी गोपेश्वर देव जी महाराज के साथ करपात्री जी महाराज ,वंश शिरोमणि आचार्य राजेश ओझा जी की गरिमामयी उपस्थिति रही। इतना ही नही सिंहासनाभिषेक के बाद श्री अमेरनाथ शिंगदेवा जी ने मीडिया से मुखातिब होते ही श्लोक से प्रेसवार्ता की शुरूआत की।

 कहा कि  भारत की भूमि से संस्कार और संस्कृति विलुप्त होने लगी ,तब मठ मंदिर समन्वय समिति की परिकल्पना हुई है । पत्रकारों के सवाल पर राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमेरनाथ शिंगदेवा जी ने बताया कि आज के युग में भारतीय मठ एवं मंदिर में समन्वय की आवश्यकता क्यों आन पड़ी…? बहुत ही सोचनीय है। कहा कि अखिल भारतीय मठ मंदिर समन्वय समिति की परिकल्पना आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा की गई थी, जो आज से लगभग 2300 वर्ष पूर्व की बात है। जानते हो क्यों…?  सनातन धर्म की सुषुप्तावस्था ही कारण रही ।

यह एक मार्मिक विषय है, सनातन सुषुप्तावस्था में क्यों गया…? जब धर्म - सम्प्रदायों के रूप में विखंडित होने लगा।भारत की भूमि से संस्कार और संस्कृति विलुप्त होने लगी।तब से मठ मंदिर समन्वय समिति की परिकल्पना हुई।श्री अमेरनाथ ने कहा कि मंदिर क्या है?यह धर्म का दुर्ग है।

मठ क्या है? यह कालांतर का गुरुकुल था, जहाँ ऋषियों एवं संतों द्वारा संस्कार और संस्कृति का पाठ पढ़ाया जाता था।





 वर्तमान परिवेश में संस्कार और संस्कृति है मृतप्राय

 श्री अमेरनाथ जी महाराज ने प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि आज के परिवेश में  संस्कार और संस्कृति मृतप्राय हो गई हैं। हम पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से प्रभावित होकर वृद्ध माता-पिता का पड़ाव स्थल वृद्धाश्रम बना दिये हैं । जबकि कालांतर में हम अपने माता-पिता के निर्देशों पर वनवासी तक हो जाते थे,हम अपने माता-पिता को बहंगी पर बिठाकर तीर्थयात्रा के लिये निकला करते थे।

    साम्प्रदायिक शक्तियां सनातन धर्म को विखंडित करने में लगी है 

श्री अमेरनाथ जी यहीं तक नही रुके। उन्होंने कहा कि आज सांप्रदायिक शक्तियाँ हमारे सनातन धर्म को विखंडित कर रही हैं, इसके लिये हमें इसके खिलाफ युद्ध करना होगा। कहा कि कालांतर में भी युद्ध हुआ करते थे और वह युद्ध देव और दानवों के बीच हुआ करता था।किन्तु आज दानवी प्रवृत्ति वाले आतंकवादी और साम्प्रदायिक तत्वों के विरुद्ध हमें खड़ा होना होगा।

अपनी खोई हुई संस्कृति और संस्कारों की रखवाली के लिए धर्म के दुर्ग को मजबूत बनाना होगा, मठ मंदिरों के बीच समन्वय स्थापित करना होगा। सुषुप्तावस्था में पड़े सनातन धर्म को जगाना होगा। तभी यह सनातन भारत विश्वगुरु के रूप में कीर्तिमान स्थापित कर पायेगा।अर्थात भारत को विश्वगुरु बनाने के लिये मठ-मंदिरों के बीच समन्वय स्थापित करना होगा।