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लोग अपनो को खो रहे है और लाशें गिन रहा सिस्टम : सुशील पांडेय



बलिया ।।

 लोग अपनों को खो रहे हैं।  'सिस्टम' लाशें गिन रहा है। 'सिस्टम' के लिए ये लाशें महज आंकड़ा हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि धृतराष्ट्रों को कभी माफी नहीं मिली।

     कोरोना की दूसरी लहर इतनी क्रूर है की हर घर पर हमलावर है। इसका कहर जिस पर टूट रहा है, उसने अपनी सुरक्षा की चिंता करने के लिए संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सरकार चुनी है। पर अफसोस कि आज सभी सरकारें आंखों पर 'मास्क' लगाकर अंधी बानी हुई हैं। माना कि कोरोना महामारी है। ... तो क्या सरकार को अपनी ओर से पहल नहीं करनी चाहिए ? पांच राज्यों के चुनाव में वर्चुअल रैलियां नहीं हो सकती थीं ? पंचायत चुनाव स्थगित नहीं किया परंतु मतगणना तो स्थगित की जा सकती थी। ऐसा कुछ 'सिस्टम' जी ने नहीं किया जो लोगों की जान बचा सके। सरकार किस लचर तरीके से काम करती है। इसका एक नमूना 18 वर्ष से अधिक आयु वालों के टीकाकरण में दिख रहा है। टीके का बिना समुचित प्रबंध किए इमेज ब्रांडिंग के लिए एक मई से वैक्सिनेशन की घोषणा कर दी गई। यही तेजी कोरोना के प्रसार को रोकने में नहीं दिखाई गई। मित्रों... अब भी वक्त है। अपनी आवाज उठाइए। एहसास कराइए कि सरकार को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। किसी भी सूरत में लोगों को अपने हाल पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए।