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प्रशासन का फरमान : कोरोना से बचो,चाहे घर मे बिना खाये मरो














मधुसूदन सिंह

बलिया ।। कोरोना की दूसरी लहर लोगों की जिंदगी पर दो तरफ से हमलावर है । एक तरफ इसके संक्रमण से जान जा रही है तो दूसरी तरफ प्रशासनिक अधिकारियों की सख्ती गरीब लोगों को घरों में भूख से मरने के लिये बाध्य करते दिख रही है । उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सब्जी दूध किराने दवा की दुकानों को खोलने की छूट दे रखी है लेकिन बलिया का प्रशासनिक अमला लोगो के घरों में सब्जी पहुंचे इसमे सबसे बड़ा बाधक बन रहा है । 5 किग्रा 10 किग्रा सब्जी लेकर फुटपाथ पर बैठे सब्जी विक्रेताओं के साथ ऐसा बर्ताव कर रही है,मानो वो देश के लिये घातक आतंकवादी हो । थोड़ी सी रोज सब्जी बेचकर अपने बच्चों का पेट पालने वाले इन सब्जी बिक्रेताओं को गाली तो मुफ्त में मिल रही है, साथ मे इनके तराजुओ को जबरिया पुलिस वाले उठाकर अपनी गाड़ी में लेकर चले गये । अब इन गरीबों के घर दो जून की रोटी कैसे बनेगी,इसका हल बलिया की जिलाधिकारी समेत अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को निकालना तो पड़ेगा ही । ऐसा हल नही निकला तो कोरोना से तो बच जाएंगे लेकिन भूख से कौन बचायेगा, यह सोचनीय प्रश्न है । बलिया जिला प्रशासन को जन साधारण को पहले यह बताना पड़ेगा कि सड़कों पर सब्जी बेचना प्रतिबंधित है । यह भी बताना पड़ेगा कि लोगो के घर सब्जी कहां से पहुंचेगी ? पिछले कोरोना काल मे जो पुलिस गरीबो को खोज खोज कर भोजन कराती थी आखिर आज क्या हो गया है कि वह गरीबो को भूखों मारने का प्रयोजन कर रही है ।




हमारी सरकार की अधिकारियों को राजनेताओ के ऊपर तरजीह देने का ही परिणाम है कि इनके द्वारा लागू की जा रही नीतियों में जन सरोकार एकदम से गायब दिख रहा है । अधिकारियों को एसी कमरों और दफ्तरों की आदत है,इनकी सोच कभी गरीबो तक निवाला पहुंचाने की होती ही नही है । अगर वास्तव में कोरोना को मात भी देनी है और लोगो के रोजगार के साथ सबकी जान भी बचानी है तो सांसदों विधायको मंत्रियों की समितियां बनानी होगी जो लोगो के दुख दर्द के अनुरूप नियम बना सके । माननीय मुख्यमंत्री जी टीम 9 को आदेश देने वाला नही ,आदेश का पालन करने वाला बनाइये और हर जिले में अपने नेताओं की टीम बनाकर यह निगरानी कराइये कि आपके आदेश का अधिकारी कितना पालन कर रहे है, अन्यथा अधिकारियों की ज्यादती भाजपा को आमजन से दूर कर सकती है ।



पिछले कोरोना काल मे गांव गांव निगरानी समितियां बनी थी,स्थानीय स्तर पर ही लोगो को रोजगार उपलब्ध कराने के लिये अधिकारियों की टीम बनी थी,महिलाओं के समूहों से मास्क बनवाकर प्रशासन द्वारा की गई खरीदारी जहां लोगो तक मास्क को पहुंचायी थी तो दूसरी तरफ महिलाओं को इसके बदले मिले रुपये घर खर्च चलाने में सहयोगी सिद्ध हुआ । लोगो को जागरूक करने के लिये भी समितियां बनी थी जो इस बार नदारद है । लोगो को दैनिक उपयोग की चीजों की दिक्कत न हो और उनको घरों तक पहुंच जाय, इसके लिये अधिकारियों की टीम प्रयासरत थी जो इस बार कही सो रही जान पड़ती है ।पिछली बार स्वास्थ्य विभाग की तरफ से भी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये लोगो को परेशानी न हो, इसकी व्यवस्था की गई थी, जो इस बार जब कोरोना बेहद खतरनाक है,राम भरोसे है ।

प्रशासनिक अधिकारियों को ठेले वालो,खोमचे वालो,फुटपाथ पर बैठकर सब्जी बेचने वालों के सामानों को नष्ट करने से पहले यह सोचना चाहिये कि इनको 40 हजार 80 हजार मासिक वेतन नही मिलता है,इनके द्वारा जो सब्जी आदि बेचकर 200 -300 कमाया जाता है उसी से इनके बाल बच्चो का पालन पोषण होता है,इनके सामानों को उठाकर जब्त कर लेना या सड़क पर फेंक देने से हो सकता है कि इनके बच्चो को खाना भी नसीब न हो ।


यूपी के बलिया में भी बेशक शासन-प्रशासन ने लॉक डाउन और लॉक डाउन में कोविड-19 के तहत व्यापार करने के नियमों को जनता तक पहुंचाने का प्रयास किया है। शासन के आदेश पत्र में ये साफ तौर पर लिखा है कि जरूरी सामानों पर प्रतिबंध नही है बशर्ते कोविड नियामो के तहत ही जरूरी सामानों को बेचना है। जनाब बलिया पुलिस को कौन बताये कि सड़क किनारे बैठे सब्जी दुकानदार किसी एयर कंडीशनर ऑफिस में बैठ कर दुकानदारी नही करते है।सड़क पर लॉक डाउन का पालन कराने निकली बलिया पुलिस का यह भारी भरकम फोर्स मानो किसी बड़े अपराधी को  धर-दबोचने के मकसद से निकले है पर ऐसा तब होते नही दिखा जब पुलिस कर्मी सड़क किनारे बैठे सब्जी बेचने वालों के तराजू ले कर चलते बने।यही नही बलिया सदर कोतवाल बाल मुकन्द मिश्रा बाकायदा एनाउंस करते हुए आदेश देते नज़र आए कि तराजू इक्कठा करो तराजू । फिर क्या था आदेश मिलते ही सड़क पर लॉक डाउन का पालन कराने वाली पुलिस कई मासूम सब्जी विक्रेताओं के तराजू उठायी और पुलिस की गाड़ी में रख दिया। यही नही कुछ सब्जी विक्रेताओं के दुकान के पास तराजू ऐसे ढूंढते नजर आए मानो वहा कोई अपराधी छुपा है। आप खुद देखिए एक सब्जी दुकान के पास कई पुलिस कर्मी ऐसे घेरे खड़े है मानो वहां जरूरी सामान नही बल्कि कोई अपराधी बैठा है। अब इन्हें कौन बताये की हरी सब्जियां न केवल नाजुक होती है बल्कि जरूरी खाद्य समान के अंतर्गत है। अब न जाने इक्कठा कर ले गए तराजुओ पर कौन सा चालान करेंगे और किस जेल की काल कोठरी में रखेंगे। इस प्रकार से लॉक डाउन का पालन कराने वाली पुलिस का तो भगवान ही मालिक है लेकिन उनका क्या होगा जो रोज ईमानदारी से छोटे-मोटे काम कर अपनी जीविका चलाते है। कोरोना की दूसरे लहर में मानो सभी ने हाथ खड़े कर दियो हो। अब तो न कोई लंगर चलाते दिख रहा है न कोई पुलिस वाला जरूरत मन्दो को राशन पहुंचा रहा है। इसका कारण अभी कुछ दिन पहले अखबारों और टीवी पर सब ने जरूर देखा होगा। जी हां सही समझा आप ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का वो दौर जिसके कारण कई कर्मियों की मौत हो गयी। चुनाव को हवा देने वाली सत्ता बेशर्म बने तमाशबीन बनी रही। पुलिस का क्या है  वो आदेशो के आगे बेवस और लाचार है। जो नज़ारा पुलिस का सड़को पर देख रहे है अगर यही नजारा चुनाव के दौरान देखने को मिलता तो शायद तस्वीर कुछ और ही होती। कोरोना काल मे लोगो की मदद करने वाले सफेद पोश माननीय सत्ताधारीयो का कही अता  पता नही। छोड़िए साहब किसी ने मानो न बोलने की कसम खा रखी है। चुनाव के दौरान यही सफेद पोश नेता अपनी अपनी पार्टी का वर्चस्व कायम करने के लिए जी जान लगाते नजर आए। चुनाव खत्म होते ही जनता से मानो बोल रहे है ,तुम कौन हो भाई ,इस देश के हो तो अपनी कोरोना की जांच करवा लो,नही करवाया तो जान से हाथ धोने के लिए तैयार रहो । चाहे आप भूख से मारो या कोरोना नामक ट्रेन के नीचे अपनी जान दे दो । हम सत्ता में है जल्द ही आप को राशन,पानी के साथ ऑक्सीजन भी मिल जाएगा, जिसका नज़ारा आज बलिया के सड़को पर पुलिस के द्वारा देखने को मिला।