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समाज का दर्पण है मीडिया :पत्रकारिता का उद्देश्य ही राष्ट्र का निर्माण- मुनेश्वर मिश्रा



 पत्रकारों का उत्पीड़न कत्तई बर्दाश्त नहीं - भगवान प्रसाद


रमाकांत त्रिपाठी   

 प्रयागराज ।।  प्रेस या अखबार और इलैक्ट्रानिक मीडिया प्रजातंत्रीय शासन के तहत आजादी से अपना काम करते हैं, लेकिन सवाल ये उठता है कि, क्या प्रेस पूरी तरह से आजाद हो सकती है?इसका जवाब शायद देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों से पूछा जाये तो वह  भी बगलें झांकने लगेंगे और  अपनी  निष्पक्ष  राय देने में हिचकिचायेंगे जरूर, उनके मुंह से न तो हां निकलेगी और न ही वो नहीं कर पायेंगे। कहने को तो सोचने-विचार करने और चिंतन करने के लिए सब स्वतंत्र हैं, लेकिन उन विचारों को  अभिव्यक्त  करने की आजादी निश्चित रूप से कुछ सीमाओं के दायरे में बंधी हुई है। उक्त बातें भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुनेश्वर मिश्र ने एक विशेष वार्ता के दौरान कही।

 श्री मिश्र ने बताया कि प्रेस की आजादी एक प्रकार से विशेषाधिकार है। इसका सही तरह से इस्तेमाल करने के लिए बहुत ही विवेक और धैर्य के साथ साथ  व्यवहार कुशलता की भी  जरूरत होती है। प्रेस आयोग ने भारत में प्रेस की आजादी और उनकी हिफाजत के साथ पत्रकारों में ऊंचे विचारों को कायम करने के मकसद से प्रेस परिषद की कल्पना की थी, और जुलाई 1966 में परिषद की स्थापना की गई, फिर 16 नवम्बर 1966 से परिषद ने विधिमान्य तरीके से अपना विधिवत काम करना शुरू कर दिया था।

भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ भगवान प्रसाद उपाध्याय ने कहा कि आज पत्रकारिता का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है। पत्रकारिता ही एक ऐसी विधा है, तो शिक्षाप्रद, सूचनात्मक और मनोरंजन से भरपूर  पठनीय सामग्री आम जनता तक पहुंचाने में एक सेतु का काम करती है। हम आप सभी जानते हैं कि, समाचार  विचारों की जननी है। जिसका अभिवादन जरूर होना चाहिए, लेकिन विचारों पर आधारित समाचार एक अभिशाप की तरह है। मैंने सुना-पढ़ा है कि, समतल, उत्तल और अवतल भी कुछ होता है, इसको मैं सीधे और सरल तरीके से आपके सामने रखता हूँ। महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक  डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय  ने  आगे  कहा कि मीडिया समाज का दर्पण है, और दर्पण का काम समतल दर्पण की तरह काम करना होता है, जिससे वो समाज की सच्ची बातों को उजागर कर समाज के सामने लाने में अपनी भूमिका निभाता है, लेकिन अक्सर देखा गया है कि, अपने निहित स्वार्थों के चलते  कभी कभी मीडिया उत्तल या अवतल दर्पण की तरह काम करने लगती है। उन्होंने कहा कि इधर कुछ दिनों से पत्रकारों का  अनेक माध्यमों से उत्पीड़न बढ़ा है जिसे भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ कत्तई  बर्दाश्त नहीं करेगा और वह पूरे देश में इसके खिलाफ आवाज उठाएगा। पत्रकार उत्पीड़न के विरोध में पूर्व में भी महासंघ संघर्ष करता रहा है और आगे भी करता रहेगा । अगर पत्रकारों का उत्पीड़न नहीं रुका तो इसे लेकर बड़ा आंदोलन किया जाएगा  इसके लिए भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ ने राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकार उत्पीड़न निवारण प्रकोष्ठ भी गठित किया है जो समय समय पर उत्पीड़ित पत्रकारों की समस्याओं के समाधान के लिए अपनी सार्थक भूमिका निभाता है  ।

डॉ उपाध्याय ने पत्रकारों को भी सलाह दी कि वे कहीं भी किसी स्तर से कोई पक्षकार ना बने केवल पत्रकार ही रहे और उनकी पत्रकारिता लोक कल्याण के लिए होनी चाहिए ना कि स्व अथवा  व्यक्ति विशेष के लिए ।

जब हम समाज में सकारात्मक पत्रकारिता की ओर कदम बढ़ाएंगे तो हमारा उत्पीड़न नहीं होगा जब हम इसके विपरीत जाएंगे तभी किसी न किसी पक्ष द्वारा हमें कमजोर करने की साजिश की जाएगी जिससे हमें सावधान रहना है और पत्रकारिता के मानदंडों पर खरा उतरने का सदैव प्रयास करना है ।