पक्ष विपक्ष की चक्की में पिसती हाथरस की दिवंगत बिटिया
इंसाफ देने या दिलाने के चक्कर मे कठपुतली बना पीड़ित परिवार
मधुसूदन सिंह
बलिया ।। 14 सितंबर 2020 को बुरी तरह से घायल खेत मे मिली हाथरस की बिटिया प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही कहे या उदासीनता के चलते,समय से इलाज न मिलने के कारण अंतिम समय मे सफदरजंग अस्पताल पहुंचने के बावजूद 29 सितंबर को जीवन का जंग हार जाती है । 29 सितंबर तक यह बिटिया देश की बिटिया थी,लेकिन धन्य है हिंदुस्तान की राजनीति जिसने इस बिटिया को मरने के बाद हिंदुस्तान की जगह मात्र दलित की बेटी बनाकर यूपी ही नही हिंदुस्तान के आवाम में जातीयता का जहर घोलना शुरू कर दिया है । यह जातीयता का जहर राजनेताओ ने इस कदर फैला दिया है कि एक अतिवादी युवक ने तो सीएम योगी से लेकर पूरे क्षत्रिय समाज को फेसबुक पर गालियों की बौझार कर दी । यह अलग बात है कि इसके खिलाफ मऊ में एफआईआर दर्ज हो चुकी है और सोमवार को बलिया में भी दर्ज होने जा रही है । अब आलम यह है कि पीड़िता के साथ अगर दरिंदगी हुई है तो उसके अपराधियो को कठोरतम सजा दिलाने की जगह अपनी अपनी राजनैतिक गोटी सेंकने में सभी दल लगे हुए है जो देश की समरसता के लिये शुभ संकेत नही है । हिंसा से हिंसा को नही मिटाया जा सकता बल्कि एकजुट होकर कानून से मिटाया जा सकता है ।
बेटी किसी की भी हो सिर्फ बेटी है
उत्तर प्रदेश में निश्चित तौर पर महिलाओ के प्रति होने वाले अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हुई है ,इससे कोई इनकार नही कर सकता है । हाथरस की बिटिया के साथ हुई घटना के बाद ही बलरामपुर, आजमगढ़, भदोही में रेप के बाद हत्या और अन्य जगहों पर रेप की घटनाएं घटित हुई है जो शासन के अपराधमुक्त दावों की खिल्ली उड़ाने के लिये काफी है । ये जितनी भी घटनाएं हुई है उसमें कही न कही पुलिस प्रशासन त्वरित कार्यवाही करने में असफल रहा है जिसका ठीकरा योगी सरकार के सिर फूटा है । स्थानीय प्रशासन व गृह विभाग की लापरवाही कहे, उदासीनता कहे ,या तानाशाही ,जिसके चलते आज हाथरस की बेटी, देश की बेटी की जगह दलित की बेटी के नाम से जानी जाने लगी है । जबकि अगर समय रहते डीएम हाथरस व एसपी हाथरस कार्यवाही कर दिये होते तो आज प्रदेश का जातीय सौहार्द इस कदर बिगड़ नही पाता ।
एसपी पर कार्यवाही पर डीएम पर मेहरबानी क्यो ?
देश मे सरकार के अलावा अगर किसी का शासन चलता है तो वो है आईएएस संवर्ग । अगर इस घटना से पहले नजर अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी जी की कार्यशैली पर डाले तो मुख्यमंत्री जी के खास होने के कारण और सूचना का अतिरिक्त चार्ज पाते ही पहले ये मीडिया वालों को ही दुरुस्त करने में साहब लग गये ,नतीजन जो मीडिया इनके कृत्यों की खिलाफत कर रहा था, वह सरकार के खिलाफ ,प्रशासन के खिलाफ हाथरस में जमकर मोर्चा खोल दिया । परिणाम श्री अवस्थी को मीडिया के विरोध के कारण अपर मुख्य सचिव सूचना के पद से सीएम योगी को हटाकर नवनीत सहगल को देना पड़ा । यही नही सरकार को पुलिस अधीक्षक,सीओ समेत 5 पुलिस कर्मियों को निलंबित करने का आदेश भी देना पड़ा । यही नही सरकार द्वारा गठित एसआईटी को भी अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में प्रशासनिक चूक दिखाई दी,जिसको जानने के बाद योगी जी ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी ।
वही आईपीएस एसोसिएशन ने लिखित तौर पर हाथरस के एसपी विक्रान्तवीर के निलंबन और डीएम के खिलाफ कोई कार्यवाही न होने पर गंभीर सवाल खड़ा किया है । इन लोगो ने साफ कहा है कि जब डीएम के निर्देश पर ही हाथरस में सारी कार्यवाही हुई तो इसके लिये सिर्फ एसपी ही जिम्मेदार क्यो ? यही नही अब प्रदेश के डीजीपी के भी हटाने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है लेकिन किसी ने डीएम हाथरस और अपर मुख्य सचिव गृह को जिम्मेदार ठहराने की दबे स्वर से भी चर्चा नही कर रहा है क्यो ? जब ऊपर से नीचे तक सिस्टम फेल हुआ तभी तो जांच कराने के लिये सरकार को मजबूरन सीबीआई जांच के लिये संस्तुति करनी पड़ी ।
पहले इलाज कराने में देर, फिर शव को परिजनों को न देना सबसे बड़ी चूक
जब 14 सितंबर को पीड़िता बुरी तरह से घायलावस्था में पायी गयी थी तो प्रशासन को चाहिये था कि तुरंत उसको उच्च चिकित्सकीय सुविधायुक्त चिकित्सालय में भर्ती कराकर इलाज कराना शुरू कराता लेकिन जिला प्रशासन ने ऐसा नही किया और जब स्थिति गंभीर हो गयी तो 28 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां 29 सितंबर को पीड़िता की मौत हो गयी । यही नही पीड़िता द्वारा गैंगरेप का बयान देने के बावजूद बलात्कार की पुष्टि के लिये 7 दिन बाद टेस्ट कराया गया , आखिर क्यों ? मौत के बाद सबसे बड़ा अमानवीय घटना क्रम तब हुआ जब पीड़िता की मां अपनी बच्ची का शव आंगन में ले जाकर हल्दी लगाने के लिये आंचल फैलाकर रोती रही लेकिन डीएम का दिल नही पिघला और रात के अंधेरे में संगीनों के साये में बिन परिजनो के चिता पर पीड़िता को पेट्रोल से जलाकर सम्मान से मरने के अधिकार को भी डीएम ने छीन लिया । पहले हवस के भेड़ियों ने इज्जत लूटी,और अंत मे प्रशासन ने अंतिम क्रियाकर्म रीतिरिवाज के साथ हो, उसको छीन लिया । यही नही डीएम साहब मृतिका के पिता को धमकाते हुए वायरल वीडियो में साफ देखे व सुने जा सकते है जिसमे कहते है मीडिया वाले एक दो दिन में चले जायेंगे, हम ही यहां रहेंगे । आप लोगो से भी गलतियां हुई है मान लीजिये । यह असाधारण घटना क्रम है इसलिये शव का रात में ही अंतिम संस्कार कर दीजिये । जब परिजन नही माने तो प्रशासन से स्वयं ही दाह संस्कार कर दिया ।
रात में अंतिम संस्कार कराने की क्या थी हड़बड़ी
29 सितंबर 2020 को पीड़िता की मौत होती है उसी दिन देर रात संगीनों के साये में अंतिम संस्कार प्रशासन द्वारा स्वयं कर दिया जाता है जो लोगो को आक्रोशित करने में कारक बना । जिस बिटिया की अस्मत लूटी गई,बेरहमी से मारपीट कर अधमरा कर दिया गया ,जो 16 दिन तक जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ती हुई 29 सितंबर को मरती है,उसके पार्थिव शरीर को इतनी हड़बड़ी में क्यो जलाया गया ? जिस क्वारी बेटी को रस्म के अनुसार मां हल्दी लगाकर अंतिम बिदाई देती,जिसको भाई पिता डोली में तो नही कम से कम अर्थी को कंधा देकर विदा करते, अपनी लाडली को विधि विधान मंत्रोचार के साथ अंतिम संस्कार करते ,उस अभागी बिटिया के संग जिला प्रशासन ने ऐसा क्यों किया ,आज लोग जानना चाह रहे है । आखिर किसने रिपोर्ट दी थी कि अगर शव को रात में न जलाया गया तो दिन में बवाल हो सकता है ? मेरा ऐसी रिपोर्ट देने वाले अधिकारी की काबिलियत पर ही सवाल है क्योंकि उसने यह क्यो नही सोचा कि शव को रात में जबरदस्ती जलाने पर और बड़ा बवाल हो सकता है । एक सवाल सभी पूंछ रहे है कि शव को रात में ही जलाने का आदेश अकेले डीएम का नही हो सकता है , निश्चित ही ऐसा आदेश लखनऊ से किसी उच्चाधिकारी ने दिया है, आखिर वो अधिकारी है कौन ? ऐसे अधिकारी व जिलाधिकारी पर कार्यवाही होने में देर से लोगो को सरकार पर उंगली उठाने का भरपूर मौका मिल रहा है ।
राहुल प्रियंका गांधी के हाथरस आने और राजस्थान पर चुप्पी पर भी उठ रहे है सवाल
विपक्ष का यह लोकतांत्रिक अधिकार है कि जहां भी किसी पीड़ित के साथ अन्याय हो रहा हो, शासक दल या सरकार की तरफ से न्यायोचित सहयोग न मिल रहा हो तो वह पीड़ित की ढाल बन कर खड़ा हो जाय और उसे इंसाफ दिलाये । हाथरस की बिटिया के प्रकरण में चाहे कांग्रेस पार्टी हो, चाहे समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी हो, सबने आंदोलन करके विपक्षी धर्म का निर्वहन किया है । क्योंकि इसके पहले सरकार भी दूसरी घटनाओं पर विपक्ष की चुप्पी पर चुटकी लेते हुए अक्सर पूंछती रहती थी कि विपक्ष कहां है ? इस प्रकरण में जब विपक्ष सड़क पर निकला तो सरकार को रोकने में पसीने छूट गये । लेकिन इस जंग में विपक्ष ने भी जातीयता भरी राजनीति को हवा देकर हाथरस की बिटिया को एक जाति विशेष की बेटी तक सीमित कर दिया । जो राहुल गांधी प्रियंका गांधी यूपी में बेटियों के प्रति हो रहे अत्याचार के प्रति योगी सरकार के प्रति इतने आक्रामक है उनको अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्य राजस्थान के मुख्यमंत्री से भी बेटियों के प्रति होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिये इसी तेवर में बात करनी चाहिये थी,जो नही कर रहे है ।
यहां सवाल यह उठ रहा है कि कांग्रेस के लिये यूपी की बेटियों की क्या इस लिये ज्यादे फिक्र है क्योंकि वो बीजेपी शासित राज्य है जबकि राजस्थान की बेटियां मरे, तड़पे, लेकिन उनके प्रति कोई जबाबदेही नही है क्योंकि वह कांग्रेस शासित राज्य है ।
रही बात बहुजन समाज पार्टी की तो इनकी मुखिया तभी आवाज बुलंद करती है जब इनको पता चलता है कि अमुक घटना दलित के साथ घटित हुई है । इनको आजतक दलित राजनीति के अलावा कुछ और दिखता ही नही है ।
वही समाजवादियों द्वारा विपक्षी भूमिका में हमेशा ही हिंसक ही सही आंदोलन किया जाना यह दर्शाता है कि आमजन के लिये कोई विपक्षी दल है । इस दल पर भी जाति विशेष के लिये काम करने का आरोप लगता रहता है ।
वही हाथरस में आरोपियों के समर्थन में भी लामबंदी तेज हो गयी है और वीडियो वायरल कर बलात्कार की घटना को जहां झूठी बतायी जा रही है तो वही पीड़िता की हत्या के लिये पीड़िता की मां और भाई को ही जिम्मेदार ठहराते हुए अपना और पीड़िता के परिजनों की नार्को टेस्ट की मांग की जा रही है ।
हाथरस प्रकरण में एक तरफ जहां सरकार और इसके खुफिया तंत्र इसकी गंभीरता को भांपने में असफल रही है जिससे यह जातीय उन्माद की तरफ बढ़ रहा है । वही विपक्ष इसको जातीय रंग देकर अपनी राजनीति चमकाने के लिये जी जान से जुटा हुआ है । अब देखना यह है कि सीएम योगी कितनी जल्दी इस प्रकरण को शांत करा पाते है, संभावना यह भी जतायी जा रही है कि सीएम योगी को पद से हटाने के लिये इस कांड के सहारे जन उन्माद फैलाकर उपद्रव कराया जा सकता है ।