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हिन्दी, भोजपुरी के सशक्त हस्ताक्षर डॉ रामसेवक विकल जी की घर पर ही मनायी गयी जयंती



राजीव कुमार चतुर्वेदी

बलिया ।। इसारी सलेमपुर निवासी डॉ आदित्य कुमार अंशु ने अपने घर पर ही अपने पिता डॉ रामसेवक 'विकल' जी की जयंती अपने परिवार के लोगों के साथ ही मनाने को मजबूर हो गए कारण लॉक डॉउन और शोसल डिस्टेंसिंग को धयान में रखते हुए इस कार्य को किया गया विकल जी ने गीता का भोजपुरी में अनुवाद कर एक मिशाल कायम कर चुके है।

बताते चले कि स्वर्गीय डॉ० रामसेवक विकल का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इसारी सलेमपुर गांव में 1 जुलाई सन 1939 को एक साधारण परिवार में हुआ था. प्राथमिक शिक्षा गांव से ही प्राप्त कर श्रीनाथ हाई स्कूल गढ़मलपुर से मैट्रिक और रतसर इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर बलिया सतीश चंद्र की डिग्री कॉलेज से बीए की उपाधि प्राप्त की. 1958 मे बी.ए.पास करने के पश्चात 1958-59 सत्र में विधि के छात्र बने किंतु परिवार की आर्थिक दशा में पढ़ाई छोड़ कर लौह नगरी जमशेदपुर की ओर जाने को मजबूर किया जहां पहले से ही बड़े भाई श्री राम किंकर जी भी रहते थे. कुछ समय बाद हल्दीपोखर के गिरी भारती स्कूल में शिक्षक पद पर कार्य शुरू किए.
साथ में रांची विश्वविद्यालय से एम.ए. एवं तत्पश्चात रांची विश्वविद्यालय से ही हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ राजनारायण मंडल के निर्देशन में "जयशंकर प्रसाद और  द्विजेंद्र लाल राय के नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन" विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की.

छोटी उम्र से ही साहित्य में रुचि होने के कारण 'विकल' उपनाम से साहित्य सृजन में जुटे स्वर्गीय डॉ० विकल ने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, उड़िया एवं भोजपुरी में अपनी सेवा द्वारा साहित्य को समृद्ध किया. जीवन के झंझावातों को झेलते हुए उबड़ खाबड़ मार्ग पर अपने शुभम रास्ते की तलाश में चलते हुए उन्होंने अनेक नाटकों, कहानियों, आलोचनाओं तथा बांग्ला, उड़िया, संस्कृत की रचनाओं का अनुवाद कर गिरी भारती के सुंदरम रंगमंच पर नाटकों का सफल मंचन भी कराया. गिरी भारती में कार्य करते हुए डॉ विकल ने छोटानागपुर कॉलेज हल्दीपोखर नामक संध्याकालीन महाविद्यालय की स्थापना की. जो आज हल्दीपोखर के लोगों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है. इनकी रचनाओं में कर्मवीर,  कमलाकांत, डूबे हुए भाई-बहन, जादूगर, (नाटक) सर्वोदय सुमन, आशाकिरण, फूल और कलियां (संपादित कविता संग्रह) प्रेमचंद्र की कहानियां  (छात्रोंपयोगी आलोचना) संस्कृत अनुवादिका (बंगला में अनुवाद) मेरी साहित्य साधना (पांच भाग) भोजपुरी में भोजपुरी गीता (श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद किया जिसकी भूमिका तत्कालीन शंकराचार्य ने लिखी थी). नवरत्न, देव पुरुष, मनपांखी, गीतांजलि, उघटा-पुरान जीवन के पथ पर आदि अनेक प्रकाशित एवं अप्रकाशित रचनाएं हैं इसके अतिरिक्त कई अन्य रचनाएं प्रकाशित हुई.जिसमें 'जगन्नाथ प्रभु महिमा' भी काफी लोकप्रिय हुई इसका उड़िया में भी अनुवाद हो चुका है.

सन 1999 में सरकारी सेवा से मुक्त होकर कुछ दिन तक जमशेदपुर के बागबेड़ा कॉलोनी में ही रहकर साहित्य सेवा का कार्य करते रहे. बाद में अपने गृह जनपद बलिया में अपने पैतृक गांव में आकर रहने लगे और साहित्य सेवा का कार्य करते रहे. इस बीच  जगन्नाथ पुराण (चारभाग) तेजी से कार्य कर रहे थे और उसको गद्य रूप देकर उसका पद्यानुवाद कर रहे थे. तीन खंड पूरा हो चुका था 'पुराण पुरुष' पर भी कार्य कर रहे थे. जिसमें महाभारत काल के अंतर्गत कार्य किए थे जिसको आधुनिक काल तक करने की इच्छा थी. किंतु काल गति ने ऐसी करवट बदली की लंबे समय से मधुमेह से ग्रसित डॉ० विकल 11 नवंबर सन 2002 को छठ पूजा के दिन इस दुनिया से विदा हो गए. साहित्य सेवा में तन्मयता से जुटे और सरस्वती का नित्य उपासक जीवटता का प्रतीक विषम परिस्थितियों में भी अपने को संतुलित और सिपाही की भांति लड़ने वाला यह कलम का मजदूर सबसे दूर लोग का वाशिंदा बन गया. जिनका साहित्य सेवा जगत और समाज के लिए अमूल्य धरोहर है।