बलिया : कुपोषण के खिलाफ जंग मे एनआरसी बनी अहम कड़ी
कुपोषण के खिलाफ जंग मे एनआरसी बनी अहम कड़ी
बलिया, 18 फरवरी 2019 ।। जन्म के महज कुछ महीनों के अंदर ही पन्दह ब्लॉक के अंतर्गत पन्दह गावँ के ही रहने वाले रंजीत सिंह की बेटी चुलबुल कुपोषण के चपेट में आ जाने से अति कुपोषित की श्रेणी में आ गयी थी| जब प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, पन्दह के मेडीकल ऑफिसर की नजर चुलबुल पर पड़ी तो उसके पिता को जिला चिकित्सालय में स्थापित एनआरसी वार्ड के बारे में जानकारी दी| लेकिन चुलबुल के पिता उसको एनआरसी में भर्ती करने के लिए तैयार नहीं हुए| इसके बाद मेडीकल ऑफिसर ने चुलबुल को एनआरसी में भर्ती कराने के लिए उसके घर वालों के समक्ष बेहद प्रयास किये| मेडीकल ऑफिसर ने चुलबुल की दादी और उसकी बड़ी बहन को किसी तरह समझाकर एम्बुलेंस द्वारा जिला चिकित्सालय स्थित एनआरसी में भर्ती कराया| जब उसको भर्ती कराया गया तब उसका वजन 3.4 किलोग्राम था, जबकि 14 दिन के उपचार, रख-रखाव और खान-पान की वजह से उसका वजन 4.6 किलोग्राम हो चुका था| इसके पश्चात चुलबुल को एनआरसी से छुट्टी कर घर भेज दिया गया और अब उसका लगातार फॉलो अप किया जाता है|
पोषण पुनर्वास केन्द्र एक ऐसी सुविधा हैं जहां पांच वर्ष से कम एवं गम्भीर रूप से कुपोषित बच्चे जिनमे चिकित्सकीय जटिलतायें होती है, चिकित्सकीय एवं पोषण सुविधाएं मुफ्त में प्रदान की जाती हैं| इसके अलावा बच्चों की माताओं को बच्चों के समग्र विकास हेतु आवश्यक देखभाल तथा खान-पान सम्बन्धित कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है|
जिला चिकित्सालय में अक्टूबर 2016 में एनआरसी वार्ड की स्थापना हुई थी| अब तक इस वार्ड में 301 कुपोषित बच्चो की नई जिंदगी दी जा चुकी है|
इसी तरह ब्लॉक बेरुआरबारी के करम्मर गाँव के रहने वाले कृष्ण कुमार राजभर की पुत्री एक वर्ष चार माह की रागिनी कुपोषण की चपेट में आ गयी| इस दौरान गावँ की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की नजर इस बच्ची पर गयी तो आंगनबाड़ी ने रागिनी की माँ को जिला चिकित्सालय स्थित एनआरसी वार्ड के बारे में जानकारी दी| जहां उसे बेहतर देखभाल और पौष्टिक भोजन की सुविधा मुहैया करायी जाती है| इसके बाद रागिनी की माँ ने उसको एनआरसी में भर्ती करवाया| भर्ती होने के समय रागिनी का वजन 5.2 किलोग्राम था| 14वे दिन जब रागिनी को छुट्टी मिली तो उसका वजन 6.2 किलोग्राम हो चुका था| रागिनी माँ ने कहां कि घर की स्थिति अच्छी न होने के कारण खानपान और इलाज कराने में सक्षम नहीं थी| लेकिन यहाँ आकर अच्छी तरह से देखभाल हुयी और रागिनी ठीक भी हो गयी|
डायट्रीशियन रेनू तिवारी ने बताया कि इस वार्ड में कुपोषित बच्चो को कम से कम 15 दिन के भर्ती किया जाता है तथा अधिकतम 28 दिन तक भर्ती करके उपचार किया जाता है| इस दौरान बच्चों के खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाता है| जैसे दूध से बना हुआ आहार, खिचड़ी, दलिया, हलुआ इत्यादि पौष्टिक आहार दिया जाता है| साथ में दवाईया एवं पोषक तत्व जैसे आयरन, विटामिन-A, जिंक, मल्टी विटामिंस इत्यादि भी दिया जाता है ।
सीएमएस डॉ. एस. प्रसाद का कहना है कि वार्ड में आधुनिक सुविधायें हैं| बच्चों के खेलने के लिए खिलौने, मनोरंजन के लिए टेलीवीजन भी है| गर्मियों में पंखे और सर्दियों में रुम हीटर की व्यवस्था है| अति कुपोषित एवं कुपोषित बच्चो की पहचान कर आरबीएसके की टीम, आशा, आंगनबाड़ी एनआरसी में भर्ती करा रहें हैं|
बलिया, 18 फरवरी 2019 ।। जन्म के महज कुछ महीनों के अंदर ही पन्दह ब्लॉक के अंतर्गत पन्दह गावँ के ही रहने वाले रंजीत सिंह की बेटी चुलबुल कुपोषण के चपेट में आ जाने से अति कुपोषित की श्रेणी में आ गयी थी| जब प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, पन्दह के मेडीकल ऑफिसर की नजर चुलबुल पर पड़ी तो उसके पिता को जिला चिकित्सालय में स्थापित एनआरसी वार्ड के बारे में जानकारी दी| लेकिन चुलबुल के पिता उसको एनआरसी में भर्ती करने के लिए तैयार नहीं हुए| इसके बाद मेडीकल ऑफिसर ने चुलबुल को एनआरसी में भर्ती कराने के लिए उसके घर वालों के समक्ष बेहद प्रयास किये| मेडीकल ऑफिसर ने चुलबुल की दादी और उसकी बड़ी बहन को किसी तरह समझाकर एम्बुलेंस द्वारा जिला चिकित्सालय स्थित एनआरसी में भर्ती कराया| जब उसको भर्ती कराया गया तब उसका वजन 3.4 किलोग्राम था, जबकि 14 दिन के उपचार, रख-रखाव और खान-पान की वजह से उसका वजन 4.6 किलोग्राम हो चुका था| इसके पश्चात चुलबुल को एनआरसी से छुट्टी कर घर भेज दिया गया और अब उसका लगातार फॉलो अप किया जाता है|
पोषण पुनर्वास केन्द्र एक ऐसी सुविधा हैं जहां पांच वर्ष से कम एवं गम्भीर रूप से कुपोषित बच्चे जिनमे चिकित्सकीय जटिलतायें होती है, चिकित्सकीय एवं पोषण सुविधाएं मुफ्त में प्रदान की जाती हैं| इसके अलावा बच्चों की माताओं को बच्चों के समग्र विकास हेतु आवश्यक देखभाल तथा खान-पान सम्बन्धित कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है|
जिला चिकित्सालय में अक्टूबर 2016 में एनआरसी वार्ड की स्थापना हुई थी| अब तक इस वार्ड में 301 कुपोषित बच्चो की नई जिंदगी दी जा चुकी है|
इसी तरह ब्लॉक बेरुआरबारी के करम्मर गाँव के रहने वाले कृष्ण कुमार राजभर की पुत्री एक वर्ष चार माह की रागिनी कुपोषण की चपेट में आ गयी| इस दौरान गावँ की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की नजर इस बच्ची पर गयी तो आंगनबाड़ी ने रागिनी की माँ को जिला चिकित्सालय स्थित एनआरसी वार्ड के बारे में जानकारी दी| जहां उसे बेहतर देखभाल और पौष्टिक भोजन की सुविधा मुहैया करायी जाती है| इसके बाद रागिनी की माँ ने उसको एनआरसी में भर्ती करवाया| भर्ती होने के समय रागिनी का वजन 5.2 किलोग्राम था| 14वे दिन जब रागिनी को छुट्टी मिली तो उसका वजन 6.2 किलोग्राम हो चुका था| रागिनी माँ ने कहां कि घर की स्थिति अच्छी न होने के कारण खानपान और इलाज कराने में सक्षम नहीं थी| लेकिन यहाँ आकर अच्छी तरह से देखभाल हुयी और रागिनी ठीक भी हो गयी|
डायट्रीशियन रेनू तिवारी ने बताया कि इस वार्ड में कुपोषित बच्चो को कम से कम 15 दिन के भर्ती किया जाता है तथा अधिकतम 28 दिन तक भर्ती करके उपचार किया जाता है| इस दौरान बच्चों के खानपान पर विशेष ध्यान दिया जाता है| जैसे दूध से बना हुआ आहार, खिचड़ी, दलिया, हलुआ इत्यादि पौष्टिक आहार दिया जाता है| साथ में दवाईया एवं पोषक तत्व जैसे आयरन, विटामिन-A, जिंक, मल्टी विटामिंस इत्यादि भी दिया जाता है ।
सीएमएस डॉ. एस. प्रसाद का कहना है कि वार्ड में आधुनिक सुविधायें हैं| बच्चों के खेलने के लिए खिलौने, मनोरंजन के लिए टेलीवीजन भी है| गर्मियों में पंखे और सर्दियों में रुम हीटर की व्यवस्था है| अति कुपोषित एवं कुपोषित बच्चो की पहचान कर आरबीएसके की टीम, आशा, आंगनबाड़ी एनआरसी में भर्ती करा रहें हैं|