जाने पिछले तीन सालों में कितनी घट गई है नौकरियां ?
15 जनवरी 2019 ।।
(अंकित फ्रांसिस)
सरकारी नौकरियों और शिक्षा में सामान्य वर्ग के गरीबो को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की शुरुआत हो चुकी है और गुजरात ने सबसे पहले इस दिशा में काम करना शुरू भी कर दिया है. इससे पहले शिक्षा और नौकरियों में अनुसूचित जातियों को 15%, अनुसूचित जनजातियों को 7.5% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 28% आरक्षण मिला हुआ है. हालांकि सच ये है कि भारत में फिलहाल 3.75% लोग ही सरकारी नौकरी करते हैं और सरकारी एजेंसियों का डेटा बताता है कि UPSC, SSC, बैंकिंग और सेन्ट्रल पब्लिक सेक्टर में बीते तीन सालों में लगातार नौकरियां कम हो रही हैं.
सरकारी नौकरियां हो रहीं हैं कम
सरकारी नौकरियां हो रहीं हैं कम
बता दें कि भारत में अब भी बस 3.54% लोग ही ऑर्गनाइज्ड प्राइवेट सेक्टर में जॉब करते हैं, जबकि 42% जनसंख्या अभी भी कृषि और उससे जुड़े अन्य क्षेत्रों पर ही निर्भर हैं. देश में मौजूद ऑर्गनाइज्ड और अन-ऑर्गनाइज़्ड सेक्टर में मौजूद नौकरियों में से 2.7% ही सरकारी नौकरियां हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन कार्मिक और प्रशिक्षण मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 से 2017 के बीच नौकरियों के अवसर लगातार कम हुए हैं.

साल 2015 में जहां सरकारी नौकरियों की संख्या 1,13,524 थीं, जो 2017 में 1,00,933 रह गईं. कार्मिक मंत्रालय ने यह आंकड़ा यूपीएससी, एसएससी और रेलवे भर्ती बोर्ड के जरिये एकत्र किया है. इसी तरह, भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय के अलग-अलग आंकड़ों से पता चलता है कि 2012 में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (सीपीएसई) में कर्मचारियों की संख्या 16.91 लाख से घटकर 2017 में 15.23 लाख रह गयीं.

वहीं, कॉन्ट्रैक्चुअल और अनौपचारिक श्रमिकों की संख्या को बाहर रखा जाये, तो 2017 में सीपीएसई द्वारा कार्यरत लोगों की संख्या 11.31 लाख थी, जो 2016 में 11.85 रह गयीं. इस तरह अधिकारी पद पर नौकरी लेने वालों की संख्या में 4.5 फीसदी और क्लर्क एवं इससे नीचे के पदों पर नौकरियों की संख्या में आठ फीसदी की गिरावट देखने को मिली है.
हालांकि, इस रिपोर्ट में राज्य सरकार, मंत्रालय व विभाग, वित्तीय संस्थान और केंद्र व राज्यों के आधीन विश्वविद्यालयों को शामिल नहीं किया गया है. यही हाल बैंकिंग क्षेत्र में भी देखने को मिला है. आरबीआइ के मुताबिक, सरकारी बैंकों में भी अधिकारी के पद पर तो नौकरियों के अवसर बढ़े हैं, लेकिन क्लर्क व इससे नीचे नौकरियां घटी हैं. साल 2015 में 1,13,524 नियुक्तियां हुईं, जो 2017 में घटकर 1,00,933 रह गयीं।
क्या कह रही है सरकार?
सेन्ट्रल पब्लिक सेक्टर से जुड़ी नौकरियों में गिरावट के बारे में उद्योग मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि सीपीएसई में मैनपॉवर प्लानिंग और तैनाती (यानी नौकरियां) सेक्टर के व्यापार योजना के उद्देश्यों और लक्ष्यों, व्यावसायिक परिस्थितियों, आवश्यकताओं और अन्य चीजें जैसे कि संचालन, विस्तार और निवेश योजना आदि से जुड़ी होती हैं. नौकरियों की संख्या में जो बदलाव देखने को मिल रहा है उसके पीछे रिटायरमेंट, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना और स्वैच्छिक अलगाव जैसे कारण भी शामिल हैं.

बता दें कि सरकार इसका आंकड़ा नहीं रखती है कि कितनी नौकरियां पैदा की गई हैं या कितने लोग सेवानिवृत हो गए हैं. वहीं बैंकों के मामले में, आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि कुल रोजगार में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन बढ़ोतरी अधिकारियों के काम पर रखने के कारण हुई है. दो अन्य नौकरी श्रेणियों- क्लर्क और अधीनस्थ कर्मचारियों (सबऑर्डिनेट स्टाफ) में भर्ती वित्त वर्ष 2015 और वित्त वर्ष 2017 के बीच लगभग 8 प्रतिशत नीचे चला गया है.
नौकरियां घट रही हैं
श्रम मंत्रालय के 2016 के आखिरी सर्वे में बताया गया है कि 2013 में केंद्र की सीधी भर्तियों में 1,54,841 लोगों को नौकरी मिली थी, जबकि 2014 में ये संख्या घटकर 1,26,261 रह गई. 2015 में यह संख्या और भी घटी और महज़ 15,877 लोग ही केंद्र की सीधी भर्तियों में नौकरी पा सके. 2013 के मुकाबले 2015 तक अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों को दी जाने वाली नौकरियों में 90% तक कमी देखी गई.
इसी सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 2013 में इस वर्ग के 92,928 लोगों को केंद्र सरकार ने सीधी भर्तियों में नौकरी दी, जबकि 2014 में ये घटकर 72,077 रह गए और 2015 में सिर्फ 8,436. रेलवे की बात करें तो बीते साल सिर्फ 90 हज़ार नौकरियों के लिए इंडियन रेलवे को 1.5 करोड़ आवेदन मिले. इन 90 हज़ार पदों में से 63 हज़ार ग्रुप D के थे.

सिर्फ भारत में ही हालात ख़राब नहीं
बता दें कि बढ़ती बेरोज़गारी सिर्फ भारत की ही समस्या नहीं. चीन में भी साल 2017 में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 3 करोड़ 76 लाख तक पहुंच गई है. एशिया पैसेफिक रीजन पर नज़र डालें तो साल 2017 में बेरोजगारों की संख्या जहां 8 करोड़ 29 लाख थी जो कि 2018 में बढ़कर 8 करोड़ 46 लाख हो गई है. दुनिया में भी हालत कुछ ठीक नहीं हैं. 2017 में दुनिया भर में 19.23 करोड़ बेरोजगार थे जो साल 2018 के शुरुआती तीन महीनों तक बढ़कर 19.27 करोड़ हो गए हैं.
(साभार न्यूज18)

साल 2015 में जहां सरकारी नौकरियों की संख्या 1,13,524 थीं, जो 2017 में 1,00,933 रह गईं. कार्मिक मंत्रालय ने यह आंकड़ा यूपीएससी, एसएससी और रेलवे भर्ती बोर्ड के जरिये एकत्र किया है. इसी तरह, भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय के अलग-अलग आंकड़ों से पता चलता है कि 2012 में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (सीपीएसई) में कर्मचारियों की संख्या 16.91 लाख से घटकर 2017 में 15.23 लाख रह गयीं.

वहीं, कॉन्ट्रैक्चुअल और अनौपचारिक श्रमिकों की संख्या को बाहर रखा जाये, तो 2017 में सीपीएसई द्वारा कार्यरत लोगों की संख्या 11.31 लाख थी, जो 2016 में 11.85 रह गयीं. इस तरह अधिकारी पद पर नौकरी लेने वालों की संख्या में 4.5 फीसदी और क्लर्क एवं इससे नीचे के पदों पर नौकरियों की संख्या में आठ फीसदी की गिरावट देखने को मिली है.
हालांकि, इस रिपोर्ट में राज्य सरकार, मंत्रालय व विभाग, वित्तीय संस्थान और केंद्र व राज्यों के आधीन विश्वविद्यालयों को शामिल नहीं किया गया है. यही हाल बैंकिंग क्षेत्र में भी देखने को मिला है. आरबीआइ के मुताबिक, सरकारी बैंकों में भी अधिकारी के पद पर तो नौकरियों के अवसर बढ़े हैं, लेकिन क्लर्क व इससे नीचे नौकरियां घटी हैं. साल 2015 में 1,13,524 नियुक्तियां हुईं, जो 2017 में घटकर 1,00,933 रह गयीं।
क्या कह रही है सरकार?
सेन्ट्रल पब्लिक सेक्टर से जुड़ी नौकरियों में गिरावट के बारे में उद्योग मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि सीपीएसई में मैनपॉवर प्लानिंग और तैनाती (यानी नौकरियां) सेक्टर के व्यापार योजना के उद्देश्यों और लक्ष्यों, व्यावसायिक परिस्थितियों, आवश्यकताओं और अन्य चीजें जैसे कि संचालन, विस्तार और निवेश योजना आदि से जुड़ी होती हैं. नौकरियों की संख्या में जो बदलाव देखने को मिल रहा है उसके पीछे रिटायरमेंट, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना और स्वैच्छिक अलगाव जैसे कारण भी शामिल हैं.

बता दें कि सरकार इसका आंकड़ा नहीं रखती है कि कितनी नौकरियां पैदा की गई हैं या कितने लोग सेवानिवृत हो गए हैं. वहीं बैंकों के मामले में, आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि कुल रोजगार में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन बढ़ोतरी अधिकारियों के काम पर रखने के कारण हुई है. दो अन्य नौकरी श्रेणियों- क्लर्क और अधीनस्थ कर्मचारियों (सबऑर्डिनेट स्टाफ) में भर्ती वित्त वर्ष 2015 और वित्त वर्ष 2017 के बीच लगभग 8 प्रतिशत नीचे चला गया है.
नौकरियां घट रही हैं
श्रम मंत्रालय के 2016 के आखिरी सर्वे में बताया गया है कि 2013 में केंद्र की सीधी भर्तियों में 1,54,841 लोगों को नौकरी मिली थी, जबकि 2014 में ये संख्या घटकर 1,26,261 रह गई. 2015 में यह संख्या और भी घटी और महज़ 15,877 लोग ही केंद्र की सीधी भर्तियों में नौकरी पा सके. 2013 के मुकाबले 2015 तक अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों को दी जाने वाली नौकरियों में 90% तक कमी देखी गई.
इसी सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 2013 में इस वर्ग के 92,928 लोगों को केंद्र सरकार ने सीधी भर्तियों में नौकरी दी, जबकि 2014 में ये घटकर 72,077 रह गए और 2015 में सिर्फ 8,436. रेलवे की बात करें तो बीते साल सिर्फ 90 हज़ार नौकरियों के लिए इंडियन रेलवे को 1.5 करोड़ आवेदन मिले. इन 90 हज़ार पदों में से 63 हज़ार ग्रुप D के थे.

सिर्फ भारत में ही हालात ख़राब नहीं
बता दें कि बढ़ती बेरोज़गारी सिर्फ भारत की ही समस्या नहीं. चीन में भी साल 2017 में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 3 करोड़ 76 लाख तक पहुंच गई है. एशिया पैसेफिक रीजन पर नज़र डालें तो साल 2017 में बेरोजगारों की संख्या जहां 8 करोड़ 29 लाख थी जो कि 2018 में बढ़कर 8 करोड़ 46 लाख हो गई है. दुनिया में भी हालत कुछ ठीक नहीं हैं. 2017 में दुनिया भर में 19.23 करोड़ बेरोजगार थे जो साल 2018 के शुरुआती तीन महीनों तक बढ़कर 19.27 करोड़ हो गए हैं.
(साभार न्यूज18)
जाने पिछले तीन सालों में कितनी घट गई है नौकरियां ?
Reviewed by बलिया एक्सप्रेस
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January 15, 2019
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