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बलिया : छठ व्रत जिसको भगवान राम सीता से लेकर प्रथम मनु प्रियव्रत और मालिनी ने करके पाया मनोवांछित फल

बलिया : छठ व्रत जिसको भगवान राम सीता से लेकर प्रथम मनु प्रियव्रत और मालिनी ने करके पाया मनोवांछित फल
मधुसूदन सिंह द्वारा
बलिया एक्सप्रेस की तरफ से 13 नवम्बर 2018 को छठ पर्व पर छठ व्रतियों के लिये सादर अनुपम भेंट


हमारे देश मे कई पर्व बड़े धूमधाम से मनाये जाते है ।साल के प्रत्येक माह में कोई न कोई पर्व जरूर मनाया जाता है ।दीपावली के छह दिन बाद कार्तिक मास की षष्टी को मनाये जाने वाला छठ व्रत जहां बिहार राज्य का प्रमुख त्यौहार है तो वही यह पर्व अब बिहार के अतिरिक्त यूपी , बंगाल, छत्तीसगढ़ , मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र , दिल्ली में भी खूब धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा ।
बिहार की शादीशुदा बेटियाँ देश में जहां कहीं भी रहती हैं, वह इस पर्व को वहीं पर मनाने लगती हैं। इस तरह यह पर्व पटना के गंगा घाट से लेकर दिल्ली के यमुना घाट तक मनाया जाने लगा हैं। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व नियम धर्म का पालन कर मनाया जाता हैं। इसमें हठ योग की तरह शरीर और मन को साधना पड़ता हैं।
यह परंपरा मध्यकाल से ज्यादा प्रचलन में आई हैं। चूँकि सूर्य पूरे विश्व के लिए शक्ति और ऊर्जा का स्रोत हैं इसलिए उनकी पूजा के पीछे एक वैज्ञानिक आधार हैं। माना जाता हैं कि छठ माता सूर्य देव की बहन हैं और उन्हें खुश करने के लिए सूर्य देव की आराधना की जाती हैं। इसके लिए सुबह के समय पानी में खड़े होकर उगते सूर्य को जल चढ़ाते हैं और इससे एक दिन पहले संध्या समय में अस्ताचल गामी (डूबते) सूर्य को जल अर्पित करते हैं।


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इस पर्व से चलन से जुड़ी लग – अलग मान्यताएँ: 

 वनवास के उपरांत भगवान राम और सीता ने अयोध्या लौटने पर अपने कुल देवता सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए षष्ठी तिथि का व्रत रखा था और सरयू नदी में डूबते सूर्य को एवं सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को फल, मिठाई के साथ अर्घ्य दिया था। इसके बाद राजभार संभाला था। इसके बाद आम जन भी सूर्य षष्ठी का पर्व मनाने लगे।

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 अंग राज कर्ण पांडवों की माता कुंती और सूर्य देव की संतान थे। वह नियम पूर्वक पानी में खड़े होकर अपने आराध्य देव सूर्य की आराधना करते थे और जरूरतमंदों को दान भी देते थे। माना जाता हैं कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी और सप्तमी के दिन कर्ण सूर्य देव की विशेष पूजा किया करता था।
कहते है कि महारानी कुंती सरस्वती नदी में सूर्य देव की उपासना करती थी । सूर्य देव की कृपा से ही पुत्रवती हुई । इसी लिये यह व्रत पुत्र कामना का प्रमुख व्रत माना जाता है । यह मान्यता है कि सूर्यदेव के प्रसन्न हो जाने पर पुत्र की प्राप्ति हो जाती है ।
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 इसी प्रकार द्रौपदी ने अपने पतियों के स्वास्थ्य और राजपाट पुनः पाने के लिए सूर्य देव की पूजा की थी। इस तरह सास कुंती और बहू द्रौपदी का इस पर्व को शुरू करने में बड़ा योगदान हैं।
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 पुराण की एक कथा के अनुसार प्रथम मनु प्रियव्रत और मालिनी की कोई संतान नहीं थी। पुत्रेष्ठि यग करने के बाद एक पुत्र का जन्म हुआ लेकिन वह मृत पैदा हुआ जिसे ब्रह्मा की मानुस पुत्री छठी मैया ने उसे जीवित कर दिया।
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धर्म आस्था और विश्वास से ओत – प्रोत यह छठ पर्व पूरी श्रद्धा –
भक्ति से मनाया जाता हैं। घरों, रास्तों एवं घाटों की सफाई की जाती हैं और खूब सजावट की जाती हैं। इसमें खासकर ठेकुआ, केला और गन्ना आदि मुख्य फल प्रसाद होते हैं। लोगों में सहयोग और उदारता देखते ही बनती हैं। गीत गाती महिलाएँ जन सैलाब के साथ अपने घरों से निकलकर जब घाटों की तरफ जाती हैं तो यह दृश्य बड़ा ही भव्य लगता हैं।


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