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छत्तीसगढ़ चुनाव: ऐसा इत्तेफाक, जिसमें पिता कभी जीता नहीं और बेटा कभी हारा नहीं





                   18 नवम्बर 2018 ।।
अवधेश मिश्रा
छत्तीसगढ़ में सियासी पारा अपने चरम पर है. सियासी गुणा-भाग ,जोड़-तोड़ नित नए समीकरण को जन्म दे रहे हैं. इसी बीच हम आपको एक राजनीतिक रिकार्ड से रूबरू कराते हैं, जिसमें पिता कभी जीता नहीं और बेटा कभी हारा नहीं. छत्तीसगढ़ में भाजपा के 'पितृ पुरुष' कहे जाने वाले लखीराम अग्रवाल को राजनीति से जुड़ा हर व्यक्ति बड़े सम्मान से याद करता है.


लखीराम अग्रवाल अपने एकरूप मन-कर्म और वचन के लिए लोगों के बीच जाने जाते थे. उन्होंने कई सामान्य व्यक्तियों को राजनेता और जननेता तक बनाया, मगर क्या आप जानते हैं कि लखीराम अग्रवाल खुद कभी चुनाव जीत नहीं पाए. ऐसा नहीं हैं कि वे केवल एक या दो बार चुनाव लड़े हों. लखीराम अग्रवाल पूरे चार बार चुनावी मैदान में उतरे, जहां उन्हें चारों बार मुंह की खानी पड़ी. इसके उलट उनके पुत्र अमर अग्रवाल ऐसे नेता हैं, जो अब तक कोई भी चुनाव नहीं हारे हैं.

पहली बार के चुनाव में तो लखीराम चौथे नंबर पर रहे थे. लखीराम अग्रवाल पहली बार साल 1962 में धरमजयगढ़ सीट से चुनावी मैदान में उतरे. कांग्रेस के किशोरी मोहन त्रिपाठी से मुंह की खानी पड़ी. लखीराम को महज 2962 वोट ही मिले और चौथे क्रम से संतोष करना पड़ा. वे उस हार से व्यथित नहीं हुए और दोबारा धरमजयगढ़ से चुनावी मैदान में उतरे, जहां उन्हें कांग्रेस के चंद्रचूड़ प्रताप सिंह ने 5563 के मुकाबले 18081 वोट से करारी शिकस्त दी.

लखीराम तीसरी बार साल 1977 में सरिया सीट से चुनावी मैदान में उतरे. यहां कांग्रेस के कमलादेवी नरेश चंद्र से बुरी तरह से पराजित हुए, सरिया सीट से उनको 27803 के मुकाबले महज 10294 वोट ही मिले. लखीराम ने चौथी बार साल 1990 में खरसिया से किस्मत आजमाई. यहां भी कांग्रेस के नंदकुमार पटेल ने 3893 वोटों से मात दी.

लखीराम अग्रवाल छत्तीसगढ़ बीजेपी के  पितृ पुरुष रहते हुए भी चार-चार चुनाव हारे. जबकि उनके बेटे अमर अग्रवाल बिलासपुर सीट से बीते चार चुनावों से लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं. आज तक एक भी चुनाव वे हारे नहीं हैं. अमर अग्रवाल ने साल 1998 में पहली बार कृष्णकुमार यादव को हराया. फिर दूसरी बार साल 2003 में कांग्रेस से अनिल टाह को 5843 वोटों से हराकर विधायक और मंत्री बने. तीसरी बार 2008 में फिर कांग्रेस से अनिल टाह को ही 9376 वोटों से हाराया. चौथी बार साल 2013 में तात्कालिक महापौर वाणी राव को 15599 वोटों के बड़े अंतर से हाराया.

इन आकड़ों को देखें तो सच में हैरानी होती है. पितृ पुरुष कभी जीता नहीं और बेटा चुनाव दर चुनाव जीत के आकड़ों को बढ़ाता चला गया. इन तमाम हलहल के बीच खास बात यह  है कि अमर अग्रवाल पांचवी बार चुनावी मैदान में हैं. 20 नवंबर को उनके भाग्य का फैसला हो जाएगा. फिर 11 दिसंबर को पता चलेगा कि अमर अग्रवाल पांचवी बार जीत का स्वाद चखते हैं या फिर उनकी सनसनीखेज हार होती है.

(साभार न्यूज18)