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पढ़े : ‘अब मेरा बेटा अपराधी नहीं है:’ हर माता-पिता को पढ़नी चाहिए दिल छूने वाली यह कहानी
पढ़े : ‘अब मेरा बेटा अपराधी नहीं है:’ हर माता-पिता को पढ़नी चाहिए दिल छूने वाली यह कहानी
‘अब मेरा बेटा अपराधी नहीं है:’ हर माता-पिता को पढ़नी चाहिए दिल छूने वाली यह कहानी
- 7 सितंबर 2018 ।।
(पार्थ शर्मा)
‘गे राइट्स’ (पढ़ें: ह्यूमन राइट्स) का बचाव करते हुए हजारों तर्कों के जवाब में तर्क मिलता है, “तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें पाल-पोसकर इसलिए बड़ा किया कि तुम गे बन जाओ? जब तुम उनके सामने जाओगे तो उनका दिल टूट जाएगा.”।
‘गे राइट्स’ (पढ़ें: ह्यूमन राइट्स) का बचाव करते हुए हजारों तर्कों के जवाब में तर्क मिलता है, “तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें पाल-पोसकर इसलिए बड़ा किया कि तुम गे बन जाओ? जब तुम उनके सामने जाओगे तो उनका दिल टूट जाएगा.”।
और सच है, अपने माता-पिता के सामने अपनी लैंगिकताके बारे में बात करना सबसे कठिन काम है ।किसी क्वीयर व्यक्ति की जिंदगी में यह यह सबसे आलोचनीय, सबसे निजी और जीवन बदलने वाला क्षण है. वो चाहते हैं कि उनके माता-पिता को उनके बारे में सच्चाई का पता चल जाए लेकिन वे परिणाम से डरते हैं. क्या होगा अगर माता-पिता हमें नहीं समझ पाए? क्या होगा अगर माता-पिता ने मुझे और मेरे अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया? सभी को न सही लेकिन LGBTQ समुदाय के ज्यादातर लोगों को ऐसे विचार खुद में बंद रखने के लिए मजबूर करते हैं. वे पहचान उजागर होने के परिणामों से डरकर ऐसे व्यक्ति होने का नाटक करते हैं जो वे नहीं हैं ।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर कर LGBTQ समुदाय के लिए उम्मीद की एक किरण दी है. जैसा कि उम्मीद थी कुछ LGBT पहले ही अपने माता-पिता, दोस्तों और सोशल मीडिया पर अपने बारे में बताना शुरू कर चुके हैं. एक वायरल फेसबुक पोस्ट में मुंबई के अर्नब नंदी ने अपनी दिल छूने वाली कहानी शेयर की है जहां उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि अब उन्हें अपराधी के तौर पर नहीं देखा जाएगा ।
अपनी पोस्ट में अर्नब नंदी ने कहा, “लैंकिगता आपकी पहचान का हिस्सा है न कि आपकी पहचान. हर कोई खुद को स्वीकार करने में वक्त लेता है, इसके बाद यह आत्म-जागरूकता और अपने व्यक्तित्व को जीने की यात्रा है.”
दो साल पहले तक अर्नब पिंजरे में कैद एक पक्षी की तरह जीवन जीते थे क्योंकि उन्हें खुद नहीं पता था कि वह कौन हैं? वह लिखते हैं, “फिर मैंने समुदाय के लोगों के साथ मेलजोल बढ़ाकर आत्म-विश्लेषण की यात्रा शुरू की और उनके जीवन-मूल्यों और अनुभवों ने मुझे मेरे दिमाग में चल रही लड़ाई से निपटने में मदद की. ।
अर्नब ने जब सबसे पहले अपने बेस्ट फ्रेंड को अपने बारे में बताया तो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई तितली कोकून से निकली हो. लेकिन अपने माता-पिता को इस बारे में बताना इतना आसान नहीं था. अर्नब का कहना था कि आसपास का माहौल रूढ़िवादी था और मैं नहीं चाहता था कि लोग उन्हें मेरी लैंगिकता के कारण चोट पहुंचाए या तंग करें.।
अर्नब का कहना है कि अपनी जिंदगी से जुड़ी इतनी महत्वपूर्ण बात माता-पिता से छिपाना उन्हें अच्छा नहीं लगा लेकिन उन्होंने सही वक्त का इंतजार किया और जब सही वक्त आया तो उन्हें अपने माता-पिता के सामने अपनी पहचान उजागर की. शुक्र है उनकी प्रतिक्रिया नकारात्मक नहीं थी और अर्नब के लिए यह विशेषाधिकार की तरह था. लेकिन उनके माता-पिता को वक्त चाहिए था, इसलिए अर्णब ने निर्णय लिया कि वह अपनी पहचान को सार्वजनिक नहीं करेंगे ।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद जब अर्नब घर पहुंचा तो उसके माता-पिता ने कसकर गले लगाकर उसका स्वागत किया. अर्नब की आंखों में खुशी के आंसू थे, बाद में पता चला कि उसकी मां आस-पास के लोगों को समझा रही थी और पिता ने बताया कि यह कानून उन्हें उसके लिए लड़ने से रोक रहा था ।
अर्नब के माता-पिता खुश हैं और चाहते हैं कि अर्नब अपनी पहचान सार्वजनिक करे. वह खुशी से कहते हैं, “अच्छा है अब कोई शादी का प्रस्ताव लेकर नहीं आएगा.” निश्चित तौर पर अर्णब को अपने माता-पिता पर गर्व है जिन्होंने इस यात्रा मे अबतक उनका साथ दिया. जो LGBT के बारे में कुछ नहीं जानते हैं लेकिन अर्नब के माता-पिता होने के नाते पूरे समुदाय की भावनाओं को समझते हैं ।
अपने माता-पिता के साथ बैठे अर्नब ने हाथ पर प्लेकार्ड थामे एक तस्वीरे शेयर की है. जिसमें लिखा है, “मेरा बेटा अब अपराधी नहीं है.”।
अपनी पोस्ट में अर्नब नंदी ने कहा, “लैंकिगता आपकी पहचान का हिस्सा है न कि आपकी पहचान. हर कोई खुद को स्वीकार करने में वक्त लेता है, इसके बाद यह आत्म-जागरूकता और अपने व्यक्तित्व को जीने की यात्रा है.”
दो साल पहले तक अर्नब पिंजरे में कैद एक पक्षी की तरह जीवन जीते थे क्योंकि उन्हें खुद नहीं पता था कि वह कौन हैं? वह लिखते हैं, “फिर मैंने समुदाय के लोगों के साथ मेलजोल बढ़ाकर आत्म-विश्लेषण की यात्रा शुरू की और उनके जीवन-मूल्यों और अनुभवों ने मुझे मेरे दिमाग में चल रही लड़ाई से निपटने में मदद की. ।
अर्नब ने जब सबसे पहले अपने बेस्ट फ्रेंड को अपने बारे में बताया तो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई तितली कोकून से निकली हो. लेकिन अपने माता-पिता को इस बारे में बताना इतना आसान नहीं था. अर्नब का कहना था कि आसपास का माहौल रूढ़िवादी था और मैं नहीं चाहता था कि लोग उन्हें मेरी लैंगिकता के कारण चोट पहुंचाए या तंग करें.।
अर्नब का कहना है कि अपनी जिंदगी से जुड़ी इतनी महत्वपूर्ण बात माता-पिता से छिपाना उन्हें अच्छा नहीं लगा लेकिन उन्होंने सही वक्त का इंतजार किया और जब सही वक्त आया तो उन्हें अपने माता-पिता के सामने अपनी पहचान उजागर की. शुक्र है उनकी प्रतिक्रिया नकारात्मक नहीं थी और अर्नब के लिए यह विशेषाधिकार की तरह था. लेकिन उनके माता-पिता को वक्त चाहिए था, इसलिए अर्णब ने निर्णय लिया कि वह अपनी पहचान को सार्वजनिक नहीं करेंगे ।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद जब अर्नब घर पहुंचा तो उसके माता-पिता ने कसकर गले लगाकर उसका स्वागत किया. अर्नब की आंखों में खुशी के आंसू थे, बाद में पता चला कि उसकी मां आस-पास के लोगों को समझा रही थी और पिता ने बताया कि यह कानून उन्हें उसके लिए लड़ने से रोक रहा था ।
अर्नब के माता-पिता खुश हैं और चाहते हैं कि अर्नब अपनी पहचान सार्वजनिक करे. वह खुशी से कहते हैं, “अच्छा है अब कोई शादी का प्रस्ताव लेकर नहीं आएगा.” निश्चित तौर पर अर्णब को अपने माता-पिता पर गर्व है जिन्होंने इस यात्रा मे अबतक उनका साथ दिया. जो LGBT के बारे में कुछ नहीं जानते हैं लेकिन अर्नब के माता-पिता होने के नाते पूरे समुदाय की भावनाओं को समझते हैं ।
अपने माता-पिता के साथ बैठे अर्नब ने हाथ पर प्लेकार्ड थामे एक तस्वीरे शेयर की है. जिसमें लिखा है, “मेरा बेटा अब अपराधी नहीं है.”।
ऐसे वक्त में जब कोई भी किसी से भी प्यार कर सकता है तब माता-पिता को अपने बच्चों को स्वीकार करना सीखना चाहिए. हालांकि यह समझ में आता है कि लोग क्या कहेंगे कि धारणा माता-पिता को परेशान कर देती है क्योंकि माता-पिता हमेशा अपने बच्चों के लिए अच्छा चाहते हैं और वे नहीं चाहते उनके बच्चे लोगों के क्रूर तानों का सामना करें
बच्चों को केवल उनके सपोर्ट और स्वीकृति की आवश्यकता होती है । यदि माता-पिता साथ दें तो बच्चे समाज के साथ अपनी हर लड़ाई को जीत सकते हैं. लेकिन अगर माता-पिता अपनी अज्ञानता और कट्टरता में डूब गए तो फिर मुश्किल हो जाएगी. मैरी ग्रिफिथ का प्रसिद्ध कोट है, “इससे पहले कि आप अपने घर या पूजा के स्थान पर ‘आमीन’ दोहराते हैं, सोचें और याद रखें.... कि एक बच्चा सुन रहा हैं.”।
बच्चों को केवल उनके सपोर्ट और स्वीकृति की आवश्यकता होती है । यदि माता-पिता साथ दें तो बच्चे समाज के साथ अपनी हर लड़ाई को जीत सकते हैं. लेकिन अगर माता-पिता अपनी अज्ञानता और कट्टरता में डूब गए तो फिर मुश्किल हो जाएगी. मैरी ग्रिफिथ का प्रसिद्ध कोट है, “इससे पहले कि आप अपने घर या पूजा के स्थान पर ‘आमीन’ दोहराते हैं, सोचें और याद रखें.... कि एक बच्चा सुन रहा हैं.”।
(साभार न्यूज18)
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Reviewed by बलिया एक्सप्रेस
on
September 07, 2018
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