खून के रिश्ते भी अब हो रहे है बेमानी :कलियुगी बेटों के लिये शादी की रौनक में मां की लाश बेगानी,अकेले पति ने गांव मे किया दफन
गोरखपुर की घटना ने रिश्तों की संवेदनहीनता पर सवाल खड़े किए”
मधुसूदन सिंह
गोरखपुर।। कलियुगी बेटों द्वारा शादी की शहनाइयों के बीच मां की लाश को अपशकुन होना कह कर घर के अंदर ही नही आने देना, खुनी रिश्ते की भी संवेदनशीलता के तार तार होने को दर्शाने के लिये काफ़ी है।यह संवेदनहीन घटना गोरखपुर से आयी। यह घटना रिश्तों की उस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है, जो दिखने में तो मजबूत लगते हैं, लेकिन समय आने पर बेहद निष्ठुर साबित होते हैं।
आर्थिक युग मे रिश्ते बन रहें है बोझ, पति पत्नी अपनी संपत्ति को करें एक दूसरे के लिये वसीयत
कलियुग के आधुनिक आर्थिक युग मे रिश्ते अब बोझ बनते जा रहे है। जो माता पिता अपना पेट काट काट कर अपने बच्चों को ऊंची शिक्षा दिलाने के साथ बड़ा खूबसूरत घर और ढेर सारी प्रॉपर्टी बनाने मे लगे हुए है, उनके लिये यह घटना आंख खोलने वाली है। बलिया एक्सप्रेस सभी माता पिता से आग्रह करता है कि अगर उनको वृद्धाश्रम मे नही जाना है, अपने ही घर मे बेगाना नही बनना है, अपने जीते जी घर से बाहर नही निकाले जाना है तो अपना घर अपनी प्रॉपर्टी को दोनों लोग (माता पिता ) एक दूसरे के लिये 100 प्रतिशत वसीयत कर ले, नही तो गोरखपुर की शोभा देवी की तरह ही मरने के बाद घर का चौखट भी नसीब नही होगा। जिस तरह से आधुनिकता की दौड़ मे बच्चे माता पिता को बोझ समझने लगे है, उसका मात्र यही उपाय है। साथ ही वसीयत मे एक और शर्त जोड़ दे कि अगर बच्चे अच्छे से ख्याल नही रखते है तो सारी संपत्ति सरकार को दान मे चली जाय।
बता दे कि कैंपियरगंज क्षेत्र की रहने वाली 65 वर्षीय शोभा देवी जौनपुर के एक वृद्धाश्रम में रह रही थीं, जहाँ बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गई। आश्रम के लोगों ने जब यह दुखद खबर उनके बड़े बेटे को दी, तो उसका जवाब सुनकर सभी स्तब्ध रह गए। उसने कहा कि घर में शादी है, ऐसे समय शव आ गया तो माहौल खराब होगा, इसलिए मां की लाश को चार दिन के लिए फ्रीजर में रख दिया जाए। शादी समाप्त होने के बाद वह आकर दाह-संस्कार कर देगा।
पत्नी की अंतिम इच्छा पूरी करने शव को गांव लेकर पहुंचा वृद्ध पति, घर का दरवाजा हुआ बन्द
जिस घर को भुआल गुप्ता और शोभा देवी ने बड़े ही अरमानों के साथ बनाया था, उसका दरवाजा भी निष्ठुर बेटों और गांव वालों ने नही खोला और शादी के 4 दिन बाद संस्कार करने की बात कही।बता दे कि शोभा देवी के पति भुआल गुप्ता, जो अपनी पत्नी के साथ ही वृद्धाश्रम मे रहते थे, बेटे के इस जवाब से टूट गए, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी की आखिरी इच्छा पूरी करने की ठानी। वह चाहते थे कि उनकी पत्नी के शव का संस्कार उनके ही गांव में हो। वह किसी तरह शव को लेकर गांव पहुँचे, मगर वहाँ पहुंचकर उनकी उम्मीदें भी बुझने लगीं। घर के दरवाज़े बंद थे, रिश्तेदार दूर खड़े थे और किसी ने भी शव को आंगन में रखने तक की अनुमति नहीं दी। गांववालों का कहना था कि शादी के बाद मिट्टी निकालकर अंतिम संस्कार कर देंगे। यह सुनकर बूढ़े भुआल गुप्ता का दिल भर आया। उन्होंने कहा कि चार दिन में शव गल जाएगा, फिर कौन-सा संस्कार बचेगा?
हालात ऐसे बने कि पत्नी का दाह-संस्कार तक संभव नहीं हो सका और उन्हें मजबूरी में शव को गांव के पास घाट किनारे दफन करना पड़ा। वह हर कदम पर टूटते गए, लेकिन किसी भी रिश्तेदार ने न कंधा दिया, न सांत्वना।
तीन बेटा व तीन बेटियां: बेटे ने घर से निकाला, मरने के बाद किसी ने भी मां को नही दी अंतिम बिदाई
लोग शादी के बाद पूजा पाठ करते है, ईश्वर से प्रार्थना करते है कि उनके वंश की बढ़ोत्तरी के लिये संतान दे। यही प्रार्थना शोभा देवी और भुआल गुप्ता ने भी की थी। ईश्वर ने इनकी प्रार्थना सुनी भी और तीन पुत्र व तीन बेटियां आशीर्वाद के रूप मे दे दिये। इस दम्पति ने ख़ुशी ख़ुशी अपने बच्चों की शादियां भी कर दी और सोचने लगे कि बुढ़ापा चैन से कट जायेगा। लेकिन उनको क्या पता था कि इसके बाद उनके जीवन मे वो काली स्याह रात आने वाली है जिसका सवेरा होना ही नही है।
तीन बेटों और तीन बेटियों के माता-पिता भुआल और शोभा देवी को करीब एक साल पहले ही उनके बड़े बेटे ने यह कहते हुए घर से निकाल दिया था कि वे अब परिवार पर भार हो चुके हैं। घर छोड़ने के बाद दोनों ने भटकते-भटकते अयोध्या और मथुरा में शरण ढूंढी, लेकिन कहीं ठिकाना नहीं मिला। अंततः जौनपुर के एक वृद्धाश्रम ने उन्हें सहारा दिया और वहीं दोनों जीवन के आख़िरी दिनों का सहारा बनकर रहे।
सामाजिक संवेदना मरने का उदाहरण
शोभा देवी के निधन के बाद जिस असंवेदनशीलता का सामना उनके पति को करना पड़ा, वह सवाल खड़ा करती है कि आधुनिकता की बात करने वाला समाज क्या वास्तव में मानवीय संवेदनाओं से दूर होता जा रहा है?पहले गांव मे अकेले जीवन जीने वालों की मौत पर गांव के लोग न सिर्फ दाह संस्कार करते थे बल्कि ब्रह्मभोज का भी आयोजन आपसी सहयोग से करते थे। लेकिन इस मामले मे तो भरा पूरा परिवार होने के बाद भी एक बुजुर्ग को दाह संस्कार से भी वंचित होना पड़ा। निश्चित रूप से यह गांव संवेदनहीन लोगों की बस्ती है, यहाँ का ग्राम प्रधान भी शायद लूट कर घर भरने वाला हो, तभी तो उसकी भी अंतरात्मा नही जागी। इस गांव के लोग भी गांठ बांध ले, जैसा संस्कार गांव मे पनपा है, उससे उनके घर भी अछूते नही रहेंगे।
एक मां, जिसने उम्रभर अपने बच्चों को पालने के लिए हर कठिनाई झेली, अंत में अपने ही घर की चौखट तक नहीं पहुँच सकी। शादी की धुनों के बीच एक बुज़ुर्ग पति की चीखें दब गईं और रिश्तों का असली चेहरा सामने आ गया—जहाँ उत्सव की चमक, इंसानियत की रोशनी पर भारी पड़ती दिखी।


