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संघर्षपथ की विजय गाथा है- डॉ. धर्मेन्द्र प्रताप श्रीवास्तव की सम्मानजनक वापसी-- डा घनश्याम

 




डा सुनील कुमार ओझा

आजमगढ़।।

 वह पथ क्या, पथिक तपस्या क्या ,जिस पथ पर बिखरे शूल न हों।

नाविक की धैर्य परीक्षा क्या,जब धाराएं प्रतिकूल न हो।


डॉ धर्मेंद्र प्रताप श्रीवास्तव ने अक्षरशः इस कथन को  सत्य  साबित किया।   एक दौर ऐसा भी आया जब सबकी लड़ाई लड़ने वाले धर्मेंद्र जी अकेले पड़े, दरी पर साथ बैठकर न्याय हेतु संघर्ष का शंखनाद करने वाले शिक्षक साथियों ने मुंह मोड़ लिया। संघ/ संगठन के लोगों ने कुलपति को प्रत्यावेदन देकर उसका फॉलो अप करना भी जरूरी नहीं समझा लेकिन उन्होंने ,धैर्य, विनय, अधिकार और कर्तव्य, समस्या की बारीक समझ रखते हुए अकेले  इस लड़ाई को जारी रखा यह बात डॉ घनश्याम दुबे (संगठन मंत्री)अनुदानित महाविद्यालय स्ववित्तपोषित शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश ने बलिया एक्सप्रेस से पत्रकार वार्ता में कही।




बताते चले कभी भुड़कुड़ा कालेज स्ववित्तपोषित शिक्षकों के लिए रोल मॉडल हुआ करता था। नीति,नियम उद्देश्य उसके पाक साफ थे। किंतु कुछ तानाशाही प्रवृत्तियों के उदय ने शिक्षक गरिमा के साथ खिलवाड़ शुरू किया, शिक्षको को आपस में लडाना  उनके वेतन का संकाय वार बंटवारा कर वेतन घटा देना जिससे शिक्षक अपने से छोड़ दे, क्या नहीं किया गया, शिक्षक प्रताड़ना के सारे उपक्रम अपनाये गए। रसातल में मिलाने की धमकी दी गई ,सभी शिक्षक संगठन को मैनेज किया गया, सत्ता की हनक दिखाकर विश्वविद्यालय के अधिकारियों को  सेट किया गया यहाँ तक कि विश्वविद्यालय को एक सप्ताह के अंदर ही शिक्षक हित में दिए गए निर्णय को बदलकर प्रबन्धक के पाले में खड़ा होना पड़ा। फिर भी भाई धर्मेन्द्र ने धैर्य नहीं खोया। विनम्रता के साथ अपनी न्याय की लड़ाई लड़ते रहे। उनकी सम्मानजनक वापसी ने साबित किया है कि *सत्य परेशान हो सकता है पराजित नही*। साथ ही यह भी कि यदि शिक्षक शिक्षण के अपने मूल दायित्व के प्रति ईमानदार है तो उसको अपमानित करने का कोई भी षड्यंत्र सफल नहीं होगा। 


महाविद्यालय के मातृसंस्था के साधारण सभा के सदस्य गण जिन्होंने शिक्षक हित मे सर्वसम्मत प्रस्ताव पास किया, अध्यक्ष जिन्होंने निर्णय को तत्काल क्रियान्वित किया और प्राचार्य ने जिस अपनापन और सम्मान के भाव के साथ कार्यभार ग्रहण कराया सब कुछ शिक्षक सम्मान के लिए आदर्श बना रहेगा।


   हम पुनः भाई धर्मेन्द्र के धैर्य, समर्पण, तथा संघर्षशीलता को प्रणाम करते हुए सभी को हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद ज्ञापित करते हैं जिन्होंने रंचमात्र भी इस संघर्षपथ पर भाई धर्मेन्द्र के प्रति सहवेदना व्यक्त की।