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"बच्चों के मन मस्तिष्क पर सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव" पर आयोजित हुई परिचर्चा, वक्ताओ ने बताया समस्या गंभीर, नही चेते तो हो जायेगी देर






बलिया।। समय रहते अगर नहीं चेता गया तो आने वाली पीढ़ी शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार तो होगी ही,साथ ही  समाज से मानवीय संवेदनाएं भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी।  उक्त बातें बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ए के  उपाध्याय ने "बच्चों के मन मस्तिष्क पर सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव" विषय पर आयोजित परिचर्चा में कही।  उन्होंने कहा कि किसी भी हालत में अब बच्चों से मोबाइल एकदम से दूर नहीं किया जा सकता है लेकिन उसके प्रयोग को कम जरूर किया जा सकता है।‌ जरूरत है बच्चों को रचनात्मक बनाने की,उन्हें रंगमंच , संगीत , नृत्य , चित्रकला, खेलकूद जैसी विभिन्न कलाओं   से  जोड़ने की ।‌ ऐसा करने से बच्चे मोबाइल से दूर तो रहेंगे ही साथ ही  उनके अंदर सृजनशीलता और सामाजिकता भी आएगी।

बता दे कि भारत ग्रामोदय सेवा आश्रम समिति  व संकल्प साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था बलिया के संयुक्त तत्वाधान में 18 मई की देर शाम ऑफीसर्स क्लब में परिचर्चा का आयोजन किया गया।  विषय था "बच्चों के मन मस्तिष्क पर सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव" परिचर्चा में भाग लेते हुए सतीश स्नातकोत्तर महाविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.  अवनीश चंद्र पांडे ने कहा कि आवश्यकता है बच्चों के साथ समय बिताने की ।‌ अफ़सोस इस बात का है कि अभिभावक खुद सोशल मीडिया के गिरफ्त में आ चुके हैं,जिसका असर बच्चों पर पड़ रहा है।  हम बच्चों के साथ समय बिताकर उन्हें अन्य रचनात्मक कार्यों में लगाकर इस समस्या से कुछ हद तक निजात पा सकते हैं ।‌





त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर आरबिन अंसारी ने कहा के बच्चों द्वारा मोबाइल के अधिक प्रयोग से उससे होने वाले रेडिएशन का दुष्प्रभाव बच्चों के त्वचा के ऊपर पढ़ रहा है और यह खतरनाक स्थिति तक बढ़ रहा है । डॉ अभिषेक मिश्र ने कहा कि सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव तो है लेकिन यह हमारे लिए एक जरूर चीज भी बन गया है । बच्चे मोबाइल का प्रयोग कैसे करें, कितना करे,इसको बताने की जरूरत है ।



लोकपाल बलिया धनंजय राय ने कहा कि कहीं ना कहीं हम लोग भी इसके लिए जिम्मेदार हैं । अभिभावकों को अपने आप में भी परिवर्तन लाने की जरूरत है। कहा कि आज दादा दादी के कहानियों का दौर खत्म हो गया है, जिससे बच्चों को सामाजिकता की सीख मिलती थी, तो वही बच्चों का अपने बुजुर्गों के प्रति आत्मिक लगाव बढ़ता था । बच्चों को पुनः सामाजिकता और परिवार से जोड़ने की जरूरत है ।

 डॉ कदंबिनी सिंह ने कहा कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखने और उन्हें सृजनशील बनाने के लिए जरूरी है बच्चों को लाइब्रेरी में समय बिताने के लिए प्रेरित किया जाए। अगर बच्चों को किताबों से प्रेम हो जाए तो बच्चों में गुणात्मक परिवर्तन आ सकता है। डॉक्टर शिवाजी पाठक ने बताया बच्चों द्वारा मोबाइल के अधिक प्रयोग करने से बच्चे एकाकी होते जा रहे हैं।कम उम्र में डिप्रेशन की शिकायतें बढ़ गई है।

इस अवसर पर डाक्टर निधि पाठक डाक्टर अनीता सिन्हा, विनय जी असिस्टेंट प्रोफेसर जेएनसीयू , डाक्टर राहुल ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किए। परिचर्चा में सपना पाठक, सुनीता श्रीवास्तव, कृति सिंह, सोनी सिंह, स्वेता श्रीवास्तव, अतुल पाठक, मधुसूदन सिंह अनुपम पाण्डेय, राहुल चौरसिया, सुनील, इत्यादि सैकड़ों लोग उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी आशीष त्रिवेदी ने जबकि आभार व्यक्त  समाज सेविका नन्दिनी तिवारी ने किया ।

इस समस्या से निजात के लिये बलिया एक्सप्रेस के निम्नलिखित सुझाव

1- घर में सभी लोगों को एक साथ खाना खाने की अनिवार्यता लागू की जाय।

2- खाना खाते समय मोबाइल के प्रयोग पर सख़्ती के साथ पाबंदी लगायी जाय।

3- बच्चों को शारीरिक रूप से चुस्त दुरुस्त बनाने के लिये आउटडोर गेम्स में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित किया जाय। खेलने जाते समय मोबाइल को घर पर रख कर जाने का नियम लागू किया जाय।

4- जो बच्चा मोबाइल फोन के इस्तेमाल में कमी नही ला रहा हो तो उससे कम से कम 4 पन्ना रोज लिखवाया जाय।

5- प्रेरक कहानियों व महापुरुषों के जीवन पर आधारित कहानियों वाली किताबों को लाकर एक पाठ प्रतिदिन पढ़ना अनिवार्य किया जाय।

6-बच्चा मोबाइल में क्या देखता है, उसपर नजर रखने के लिये सर्च हिस्ट्री को समय समय पर जरूर देंखे। 

आज मोबाइल एक जरुरी चीज हो गया है, इसके कई फायदे है लेकिन इसके द्वारा नुकसान भी कम नही किया जा रहा है। आज यह सूचना क्रांति का ऐसा महासागर बन गया है जिसके मंथन से अमृत व जहर दोनों निकल रहे है।अब आपको देखना है कि आपके बच्चे का मंथन किस दिशा में है - अमृत तलाशने में या जहर पीने में।