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सुदखोरों की दस साल की आमदनी की हो जांच, मिलेगी करोड़ों की अवैध संपत्ति




मधुसूदन सिंह

बलिया।। बुधवार को आर्म्स विक्रेता नन्दलाल गुप्ता की सुदखोरों से परेशान होकर फेसबुक पर लाइव आत्महत्या ने सभी को झकझोड़ कर रख दिया है। सुदखोरों के खिलाफ एक जनाक्रोश भड़कता हुआ दिख रहा है। बलिया के सुदखोरों की तुलना स्थानीय भाषा में कहे जाने वाले चिक से की जा रही है। चिक उनको कहते है जो गांव गांव घूमकर बकरों की खरीदारी करते है। लोग इन चिकों को तब तक अपने बकरों को छूने नहीं देते है ज़ब तक सौदा तय न हो जाय। लोगों में यह मान्यता है कि चिक जिस जानवर के शरीर पर हाथ रख देते है, उनका विकास रुक जाता है। बलिया के सुदखोर भी इन्ही चिकों जैसे है। इन्होने जिस व्यापारी को कर्ज दिया, उस व्यापारी का डूब जाना तय है। क्योंकि ये लोग 10 से 15 प्रतिशत तक माहवारी सूद लेते है।








टैक्स चोरी के बड़े हब है सुदखोर

मृतक व्यवसायी नन्दलाल गुप्त का बयान जिसमे कहा गया कि मूलधन से ज्यादे देने के वावजूद पैसा देने का दबाव न सिर्फ बनाया गया बल्कि मकान को भी रजिस्ट्री करा ली गयी है (बलिया एक्सप्रेस ने ज़ब इसकी पड़ताल की तो रजिस्ट्री की जगह रजिस्टर्ड मुहायदा होना पाया गया है )। इतने हाई रेट पर सुदखोरी से प्राप्त आय को इन लोगों द्वारा सरकार को बताया ही नहीं जाता है और लाखों रूपये की टैक्स चोरी एक वर्ष में की जाती है। जिस मकान को मात्र 24 लाख में मुहायदा कराया गया है उसकी बाजारू क़ीमत करोड़ों में बतायी जा रही है। अगर प्रशासन वास्तविक रूप से जांच करना चाहता है तो बलिया के सभी बड़े सुदखोरों की 10 साल से हैसियत में हुई बढ़ोत्तरी को जांचना शुरू कर दे, करोड़ों रूपये की टैक्स चोरी सामने आएगी। अगर प्रशासन इनकी आमदनी को जांच कर इनके ऊपर भी अगर माफियाओ जैसी ध्वस्तीकरण की कार्यवाही होती है तो इस प्रवृति पर अंकुश लगेगा। नन्दलाल गुप्त को कर्ज देने वालों में दो शराब व्यवसायियों का भी नाम चर्चा में आ रहा है।