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जेएनसीयू बलिया में हुई अर्थनीति का भारतीयकरण विषयक ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी

 







डॉ सुनील कुमार ओझा 

बलिया ।। जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय के पंडित दीन दयाल उपाध्याय शोध पीठ की ओर से शनिवार को अर्थनीति का भारतीयकरण : पं. दीन दयाल उपाध्याय की दृष्टि विषयक एक ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी कुलपति प्रो कल्पलता पाण्डेय के कुशल मार्गदर्शन में सम्पन्न हुई । इस गोष्ठी की अध्यक्षता चन्द्रशेखर शोध पीठ एवं अध्ययन केंद्र के निदेशक एवं कुँवर सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अशोक कुमार सिंह ने की । इसमें मुख्य वक्ताओं में पूर्व कुलपति केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मणिपुर प्रो. आद्या प्रसाद पाण्डेय, अध्यक्ष स्कूल ऑफ़ सोशल साइंस, पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला प्रो. डी. के. मदान एवं सदस्य , आई सी ए आई डॉ. डी. आर. अग्रवाल ने अपने विचारों से समृद्ध किया ।

कार्यक्रम की औपचारिक शुरूआत संचालक एवं संयोजक डॉ. राम कृष्ण उपाध्याय द्वारा माँ सरस्वती की आराधना से हुआ ।  इस क्रम में स्वागत भाषण मुख्य कुलानुशासक, जननायक विश्वविद्यालय, डॉ. अरविन्द नेत्र पाण्डेय ने प्रस्तुत किया । 


प्रो आद्या प्रसाद पाण्डेय ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय की 105वीं जयंती के अवसर पर अपने महत्वपूर्ण व्याख्यान में कहा कि-वर्तमान समय में आर्थिक संवृद्धि के लिए किसानों का हित सर्वोपरि है । व्यक्ति का कल्याण समग्र विकास पर आधारित हो सकता है । पण्डित दीन दयाल उपाध्याय इस अर्थ में सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक चिंतक थे । वे सनातनी चिंतन को जारी रखने में पूर्णतः सफल रहे । वास्तव में वे मानव चिंतन के कुशल चितेरे थे ।

आत्मनिर्भर भारत विषय पर केंद्रित अपने वक्तव्य में डॉ. डी के मदान ने उनके दर्शन पर विशद प्रकाश डालते हुए कहा कि-उन्होंने अपने एकात्म जीवन दर्शन के माध्यम से भारत को एक प्रगतिशील विचार प्रदान किया । वर्तमान समय में भारत के समृद्ध आर्थिक स्थिति का आकलन उनके सैद्धांतिक विचारों के माध्यम से करते हुए पूर्णतः प्रासंगिक बनाया जा सकता है । अर्थशास्त्र को कठिन विषय माना जाता है । परन्तु उस विषय को सहज तरीके से प्रस्तुत करते हुए आर्थिक विशेषज्ञ एवं बहुभाषाविद डॉ. डी आर अग्रवाल ने अपने स्वदेशी एवं स्वालंबन विषय को वर्तमान संदर्भ में प्रामाणिक आंकड़ों के साथ प्रस्तुत किया ।

उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को उदाहरणस्वरूप व्यक्त करते हुए कहा कि-हमें अपने व्यावहारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनायी जाने वाली आत्मीयता को ग्रहण करना चाहिए । आज शरीर को आहार की, मन को प्यार की, बुद्धि को विचार की तथा आत्मा को साक्षात्कार की जरूरत है । इसके अभाव में भारत आर्थिक दृष्टि से काँप रहा है । यह चिंता का विषय है । उन्होंने भारत की प्रति व्यक्ति आय, मानव विकास सूचकांक तथा सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर मानव संसाधनों की उपादेयता सिद्ध की और विकास के लिए पुनः छः सूत्री मानदण्डों का उल्लेख किया-यथा-गरीब, ग्राम, रोजगार केंद्रित, विकेंद्रीकरण की व्यवस्था पर आधारित, पर्यावरण आधृत बताता धर्म-संस्कृति आधारित । 

ऑनलाइन संगोष्ठी में अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. अशोक सिंह ने कहा कि-यदि हम उन विचारों को आत्मसात करेंगे तो निःसंदेह सशक्त एवं स्वावलंबी भारत के सपनों को साकार करने में समर्थ होंगे ।

कार्यक्रम का सफल संचालन शोध पीठ के  संयोजक डॉ रामकृष्ण उपाध्याय, आतिथ्य परिचय सह संयोजक डॉ. अजय बिहारी पाठक, डॉ. हरिशंकर सिंह, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पटेल एवं आभार सह संयोजक डॉ मनजीत सिंह ने प्रस्तुत किया ।

 उस अवसर डॉ गणेश पाठक, बाबा राघव मैथ डिग्री कालेज, बरहज से डॉ अरविंद पाण्डेय, गुजरात केंद्रीय विश्विद्यालय से प्रो. शिरीष तिवारी, अयोध्या से डॉ. रेखा सिंह, डॉ. अमित कुमार सिंह, डॉ निशा राघव, डॉ. सत्यप्रकाश सिंह, डॉ. फूलबदन सिंह, डॉ. अशोक सिंह, डॉ. संजय, सच्चिदानन्द, डॉ. दिव्या मिश्रा, डॉ. धीरेंद्र सिंह, डॉ. अवनीश जगन्नाथ, अनुज पाण्डेय,  डॉ. संतोष कुमार सिंह, डॉ. अर्चना श्रीवात्व, डॉ. चन्द्रशेखर पाण्डेय, डॉ.मान सिंह, डॉ. शैलेश पाण्डेय, आनन्द सिंह, मनोज, विकास कुमार, रजिंदर सहित प्राध्यापक, कर्मचारी एवं छात्र-छात्राएँ उपस्थित थे ।