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स्वास्थ्य सेवाओं में कब तक बीमार रहेगा ग्रामीण भारत, विषयक आनलाइन गोष्ठी का हुआ आयोजन

 




डॉ सुनील कुमार ओझा

बलिया ।। बलिया एक्सप्रेस राष्ट्रीय हिंदी साप्ताहिक  की तरफ से आयोजित साप्ताहिक परिचर्चा में इस बार का मुख्य बिंदु स्वास्थ्य सेवाओं में कब तक बीमार रहेगा ग्रामीण भारत का "आओ चर्चा करे" पटल पर आन लाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के कई राज्यों से विद्वानों ने प्रतिभाग किया ।  रायपुर से मनोज उपाध्याय 'मतिहीन' जी ने कहा कि स्वस्थ्य सेवाओं की उपेक्षा के कारण बीमार गांवों का देश बन गया है भारत ...,

भारत में कुल ग्रामों की संख्या 5,93,731 है । कुल जनसंख्या का 72.2 प्रतिशत भाग इन्हीं ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। लेकिन राज्य सरकारें और जिले के प्रशासनिक  उदासीनता गांवों को बीमार बना दिया है। संक्रमण के अलावा सामान्य दिनों में भी गांवों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर चिकित्सकीय सुविधा ना के बराबर ही रहती है! इसके अलावा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर कार्यरत   चिकित्सक व कर्मचारी भी इसके लिए कही हद तक जिम्मेदार है। क्योंकि ये लोग भी अपने स्वास्थ्य केंद्रों पर समसामयिक आवश्यक चिकित्सकीय सुविधाओं के प्रति सक्रिय नही है! सिर्फ वेतनभोगी है! अव्यवस्थाओं का रोना- रोते रहते है लेकिन उसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों से मांगपत्र आदि जरूरी कार्यवाही नहीं करते।ताकि चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव के बहाने आराम फरमा सके।इतना ही नही शासन से वेतन लेने के बावजूद, अस्पताल में आए गरीब मरीजों से पैसा वसूलने के भी तरीके इस्तेमाल करते है! कई चिकित्सक तो मेडिकल स्टोर्स पर कमीशन  तय कर रखा है।मरीजों को दवा की पर्ची थमा कर मेडिकल स्टोर्स भेज देते है। बहाना रहता है कि अस्पताल में जरूरी दवाएं उपलब्ध नहीं है! स्वस्थ्य अधिकारियों की समय- समय पर चिकित्सक व कर्मियों की या चिकित्सालय की व्यवस्था की जाँच न करना भी ग्रामीणों को अच्छी चिकित्सा व्यवस्था नहीं मिलने का एक बड़ा कारण है।जब तक इस पर राज्य सरकारे गंभीरता नहीं दिखायेगी और जिले के जिम्मेदार अधिकारी अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह रहेंगे तब तक तो ग्रामीण भारत बीमार ही रहेगा।

भीम प्रजापति देवरिया ने कहा कि भारत में आबादी के अनुसार स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत ही नगण्य है।कारण कि जितने भी पैथी है, उनमें कुछ पैथियों पर ही सरकार ने ध्यान दिया है।जिस पैथी पर ध्यान दिया उस पर विदेशों के उपर निर्भर रहना पड़ता है। इतना मंहगा इलाज है कि जनमानस कोसों दूर रह जाते हैं। सही ढंग से इलाज नहीं हो पाता है। हमारे देश में  लगभग 90%जनता गरीब है,जो अपने नमक- तेल में ही परेशान हैं तो भला इलाज कैसे करा पायेंगे। आजकल कोई भी आम आदमी किसी हास्पीटल में चले जाय तो टेस्ट के नाम पर हजारों रुपये देने पड़ते और दवा अलग से। कभी-कभी तो परिवार जन अपनी पुस्तैनी जमीन भी बेच देते, फिर भी कोई गारंटी नहीं कि मरीज ठीक होकर घर लौटे।

     भारत सरकार को चाहिए कि हमारे देश की पद्धति आयुर्वेद, होम्योपैथिक को भी उतना ही  प्रोत्साहन,सिस्टम दे कि आदमी को इलाज के लिए और विकल्प खुल सके या मिल सके। जिससे डाक्टरी लाईन में कॉम्पिटिशन शुरू हो और सस्ते इलाज का रास्ता बन सके। बर्ना आप सभी देख भी रहे हैं और अपने सगे-संबंधियों से सुने भी होंगे कि आजकल स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोग क्या-क्या कर रहे हैं? मानवता कहां गायब हो गई है पता नहीं?

आजकल डाक्टर बनने में लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं।एक एम बी बी एस डाक्टर बनने में काफी फीस भरनी पड़ रही है।सरकारी में तो पांच- सात लाख में डाक्टर बन रहे हैं, लेकिन वह भी बहुत तेज तर्रार रहने पर।   जब कोई करोड़ रुपए खर्च कर डाक्टर बनेगा तो वह कैसे सस्ता इलाज करेगा।वह अपना रुपया निकालने की कोशिश करेगा जो लाजिमी भी है। लेकिन इसी तरह व्यवस्था रही तो आम जनमानस का स्वास्थ्य कैसे ठीक रह सकता है।यह तो  सरकार की नाकामी है कि 70 वर्षो से स्वतंत्र होने के बावजूद भी हम और हमारी व्यवस्था  स्वास्थ्य , चिकित्सा के प्रति वैसी की वैसी ही है।

आचार्य सुनील कुमार द्विवेदी बलिया ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा बीमार रहने का तीन प्रमुख कारण है।पहला 90 प्रतिशत चिकित्सकों में सेवा भावना कोसों दूर है,सिर्फ व सिर्फ कमाई ही चिकित्सक बनने का मुख्य उद्देश्य है।दूसरा चिकित्सक देश के गंदी राजनीति के शिकार होने के  कारण भ्रष्टाचार में लिप्त हो जा रहे हैं। भले ही चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया जाता है लेकिन इसमें आरक्षण रुपी राक्षस के चलते 90℅ अंक पाने वाले फेल व 30℅ अंक प्राप्त कर पास होने वाले जो चिकित्सक बनेगा तो उससे हम कितना स्वस्थ्य होगें,यह भगवान ही जाने।

तीसरा ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अंधविश्वास बहुत है,पढ़ें लिखे लोग भी इसकी गिरफ्त में है।अपने अधिकार को नहीं समझते है,बल्कि चिकित्सकों के साथ अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हैं।यही कारण है कि अच्छा डाक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में काम करना नहीं चाहता है।इतना ही नहीं उसके स्वयं के लिए भी विभिन्न सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्रों में मुहैया नहीं होती है।

पंडित अशोक कुमार मिश्र आसनसोल

ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज के परिचर्चा के लिए पटल पर रखे गये विषय " स्वास्थ्य सेवाओं में कब तक बीमार रहेगा ग्रामीण भारत" की चर्चा की शुरुआत करना तपती रेत पर चलने के समान है। क्योंकि कुछ कहना सरल होता है। परन्तु सिद्ध करना सिद्धांतों की कसौटी पर जटिल है।

  किसी भी समस्याओं की शुरुआत, स्वयं तक सीमित होने से ही होती है।" जब सोच परिष्कृत भावनाओं के साथ परिभाषित होने लगता है तो बिकृतियां स्वतः समीप नहीं आती है।" परन्तु जब ऐसा नहीं होता है तो सम्भलना अत्यंत कठिन हो जाता है। कुछ ऐसी ही सूरतों का शिकार हमारा ग्रामीण अंचल हो गया है।

 आज समाज में कहने वालों की संख्या अधिक हो गयी है, करने वालों की अपेक्षा। उस चिन्तन का अभाव हो गया है जो कभी हमारी पहचान रही है। यही बिसंगति इस स्थिति को पैदा कर रहा है। अन्यथा ऐसी सूरतें सामने कभी नहीं आती। " जब तक हम, स्वयं अपने कर्तब्य को, समझने की कोशिश नहीं करेंगे तो, कोई भी नशीहतें, हमें कुछ भी नहीं सिखला पायेगी।" सारे कायदे कानून धरे के धरे रह जायेंगे। हर क्रिया- कलाप गौड़ हो जायेगा। 

   इस समस्या का समाधान तभी सम्भव होगा। जब हम अनुशासित होकर, इमानदारी पूर्वक, अपने फर्ज को करने के लिए इच्छुक होंगे। अन्यथा कभी कुछ भी नहीं सुधर पायेगा। यही कारण है कि आज ऐसी स्थितियों को देखना हमारी मजबूरी बन गयी है।

 कार्यक्रम  डॉ. मान सिंह , डॉ. संतोष कुमार एवं डॉ आदित्य कुमार अंशु और बलियाएक्सप्रेस टीम के देख रेख में सम्पन्न हुआ।