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ओलंपिक गाथा: ईश्वरीय मिथक से मानवीय मिथक तक' किताब का विमोचन ,भारतीय हॉकी की दुर्दशा पर खुलकर बात

 



नईदिल्ली ।। ओलिंपिक महाकुंभ के बीच आज यानी रविवार को 'ओलंपिक गाथा: ईश्वरीय मिथक से मानवीय मिथक तक' किताब का विमोचन हुआ. यह किताब डॉ. स्मिता मिश्र, डॉ. सुरेश कुमार लौ और सन्नी कुमार गोंड़ द्वारा लिखी गई है. किताब का विमोचन प्रेस क्लब में हॉकी के ओलिंपिक और विश्व चैंपियन टीम के स्टार खिलाड़ी अशोक कुमार ध्यानचंद (Ashok Dhyanchand) द्वारा किया गया. किताब की पहली प्रति लेखकों द्वारा अशोक कुमार ध्यानचंद को भेंट की गई.

इस कार्यक्रम के दौरान मुख्य अतिथि अशोक कुमार ध्यानचंद ने कहा कि किताब इतिहास को जानने का एक सशक्त माध्यम है और इस किताब के माध्यम से आने वाली पीढ़ी ओलिंपिक, उसकी कहानियां और उसके हिरोज से अवगत होगी और उन्हें प्रेरणा मिलेगी.


अशोक कुमार ध्यानचंद जी ने अपने पिता मेजर ध्यानचंद के समय की कई कहानियों के माध्यम से उस समय के खेल और परिस्थितियों के बारे में चर्चा की. वर्तमान समय में चल रहे ओलिंपिक खेलों पर भी उन्होंने अपनी बात रखी.

पहले जैसे खिलड़ियों के मुकाबले आज के खिलाड़ियों में संकल्प की कमी

अशोक ध्यानचंद ने भारतीय हॉकी की दुर्दशा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके पिता मेजर ध्यानचंद और बाद के खिलाड़ियों जैसा संकल्प आज के खिलाड़ियों में कम ही देखने को मिलता है. यही कारण है कि 45 साल बीत जाने पर भी भारतीय हॉकी अपना गौरव नहीं लौटा पाई है. वे मानते हैं कि आज के खिलाड़ियों को अपेक्षाकृत बेहतर सुविधाएं मिली हुई है, लेकिन कमी कहां हैं, इस तरफ जिम्मेदार लोगों को ध्यान देने की जरूरत है. ओलिंपिक में 200 से ज्यादा देश एक दर्जन से अधिक खेलों में प्रतिभागिता करते हैं. ओलिंपिक में देश का नेतृत्व करना हर खिलाड़ी का सपना होता है.

'ओलंपिक गाथा' किताब तीन लेखकों डॉ. स्मिता मिश्र (एसोसिएट प्रोफेसर श्री गुरू तेग बहादुर खालसा कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं संपादक स्पोर्ट्स क्रीड़ा), डॉ. सुरेश कुमार लौ, (सलाहकार, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर सत्यवती कॉलेज, सांध्य दिल्ली विश्वविद्यालय) और सन्नी कुमार गोंड (पीएचडी शोधार्थी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, सहायक संपादक स्पोर्ट्स क्रीड़ा समाचार-पत्र) द्वारा लिखी गई है.

सही सामग्री को खोजना रहा बेहद मुश्किल

'इंडिया नेटबुक्स' द्वारा प्रकाशित इस किताब में जहां प्राचीन ओलिंपिक से आधुनिक ओलिंपिक तक की यात्रा, ओलंपिक के अंग, ओलिंपिक के महान खिलाड़ी, विशिष्ट रिकॉर्ड, ओलिंपिक में भारत की उपस्थिति को रेखांकित किया है. वहीं, ओलिंपिक और सिनेमा, ओलिंपिक में पहली बार घटने वाली घटनाएं और कोविड के कारण टोक्यो ओलिंपिक स्थगन आदि पर भी दृष्टि डाली गई है.

किताब की लेखिका डॉ. स्मिता मिश्र ने बताया कि इस किताब में साहस, दृढ़ निश्चय और नैतिकता की कई कहानियों को समाहित किया गया है, जो न केवल खिलाड़ियों बल्कि समाज के हर वर्ग को प्रेरणा देती हैं. उन्होंने इस किताब को लिखने में आई चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि ओलिंपिक पर किताब लिखना सागर से मोती निकालने के समान है. इस विषय पर सही सामग्री को खोजना बहुत ही मुश्किल भरा रहा. अलग-अलग माध्यम, अलग-अलग रिकॉर्ड दिखा रहा हैं.

सह-लेखक डॉ. सुरेश कुमार लौ मानते हैं कि ओलिंपिक खेल केवल पदक और यश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्तित्व परिवर्तन का भी माध्यम है. सन्नी कुमार गोंड ने कहा कि यह पुस्तक ओलिंपिक खेल के प्राचीन मिथक से लेकर नए आधुनिक मिथक गढ़ने की यात्रा को रेखांकित करती है, जिससे पाठक ओलिंपिक के विभिन्न पहलुओं से रूबरू होगा. प्रमुख खेल पत्रकार राजेन्द्र सजवान ने धन्यवाद ज्ञापन किया. पेफी इंडिया के महासचिव डॉ. पीयूष जैन ने लेखकों को बधाई देते हुए खेल को जीवन का अनिवार्य अंग बनाने की बात पर बल दिया । (साभार)