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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गृह मंत्रालय ने जारी किया आदेश : अब नही लिखे जाएंगे 66A आईटी एक्ट के मुकदमे

 


ए कुमार

लखनऊ ।।


अब कहीं भी नहीं लिखा जाएगा 66 A आईटी एक्ट के तहत मुकदमा 


केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जारी किया आदेश 


66 आईटी एक्ट में दर्ज सभी मुकदमों को वापस लेने के आदेश


सोशल मीडिया पर अपने विचार लिखने पर पुलिस दर्ज करती थी 66a,आईटी एक्ट में मुकदमा


सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर विचार रखने को बताया विचारों  अभिव्यक्ति का विरोध


 सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों के डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी को भेजे निर्देश


अब नहीं लिखे जाएं किसी भी थाने में 66A it एक्ट में कोई मुकदमा


             धारा 66 ए


धारा 66 ए चर्चा में है. हालांकि इसे सुप्रीम कोर्ट 06 साल पहले ही निरस्त कर चुका था लेकिन इसके बाद भी सूचना प्रौद्योगिकी का ये कानून अब तक देश के 11 राज्यों में प्रभाव में था. पुलिस लगातार इसके तहत मामले दर्ज कर रही थी. कुछ समय पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर तीखी टिप्पणी की थी. इसके बाद मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़े तरीके से सरकारों को लताड़ा. सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के बाद ये धारा चर्चा में है.


आखिर क्या है धारा 66 ए और क्यों सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त किया था ।तब ऐसा कौन सा मामला सामने आया था, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला किया था. वर्ष 2015 में जब ये धारा निरस्त हुई थी तब इस धारा के तहत 11 राज्यों में 229 मामले लंबित थे. अब पिछले कुछ सालों में इन्हीं राज्यों में 1307 मामले दर्ज किए गए हैं.



            क्या थी धारा 66 ए

दरअसल हाल के कुछ बरसों में सोशल मीडिया पर कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट करने पर जिस धारा में प्रशासन और पुलिस लोगों पर मुकदमा दर्ज कर रही थी, वो धारा 66 ए ही था.इसमें सोशल मीडिया और आनलाइन पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी करना कानून के दायरे में आता था, लेकिन इसकी परिभाषा गोलमोल थी, जिससे इसका दायरा इतना बढ़ा हुआ था कि अगर पुलिस-प्रशासन चाहे तो हर आनलाइन पोस्ट पर गिरफ्तारी हो सकती थी या एफआईआर हो सकती थी. ये धारा सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत आती थी.


          क्यों सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त किया था

वर्ष 2015 में जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त किया तो उसका मानना था कि ये धारा संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) यानि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है. कोर्ट ने तब धारा को शून्य करार दिया था. इससे पहले धारा 66 ए के तहत आनलाइन तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर 03 साल की सजा का प्रावधान था.


धारा 66 ए का कई बार तब पुलिस प्रशासन द्वारा दुरुपयोग भी किया गया, जब इसकी पोस्ट को कथित तौर पर आपत्तिजनक बताकर गिरफ्तारी कर ली गई.



   ये धारा तब पुलिस को क्या अधिकार देती थी

धारा 66 ए तब पुलिस को अधिकार देती थी कि वो कथित तौर पर आपत्तिजनक कंटेंट सोशल साइट या नेट पर डालने वालों को गिरफ्तार कर सकती थी. लेकिन अब पुलिस ऐसा नहीं कर सकती.


        सुप्रीम कोर्ट ने इसे क्यों निरस्त किया था

तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस कानून की परिभाषा स्पष्ट नहीं है. एक कंटेंट जो किसी एक के लिए आपत्तिजनक होगा तो दूसरे के लिए नहीं. अदालत ने कहा था कि धारा 66 ए से लोगों के जानने का अधिकार सीधे तौर पर प्रभावित होता है.

तब तत्कालीन जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस रॉहिंटन नारिमन की बेंच ने कहा था कि ये प्रावधान साफ तौर पर संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है.

तब शीर्ष अदालत ने ये भी कहा था कि 66 ए का जो मौजूदा दायरा है, वो काफी व्यापक है. ऐसे में कोई भी शख्स नेट पर कुछ पोस्ट करने से डरेगा. ये विचार अभिव्यक्ति के अधिकार को अपसेट करता है. ऐसे में 66ए को हम गैर संवैधानिक करार देते हैं.




सुप्रीम कोर्ट ने जब वर्ष 2015 में धारा 66 ए को निरस्त किया था तो साफ कहा था कि ये विचार अभिव्यक्ति के अधिकार को अपसेट करता है. ऐसे में 66ए को हम गैर संवैधानिक करार देते हैं.




     किसने इस धारा को कोर्ट में चुनौती दी थी

शिवसेना चीफ रहे बाल ठाकरे की मौत के बाद मुंबई की लाइफ अस्त-व्यस्त होने पर फेसबुक पर टिप्पणी की गई थी. घटना के बाद टिप्पणी करने वालों की गिरफ्तारी हुई. इसके बाद इस मामले में लॉ स्टूडेंट श्रेया सिंघल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई. याचिका में आईटी एक्ट की धारा-66 ए को खत्म करने की गुहार लगाई गई. सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ऐतिहासक फैसले में इसे निरस्त कर दिया.

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या टिप्पणी की थी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ समय पहले इस पर तीखी टिप्पणी करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस को कठघरे में खड़ा किया था. उसने ऐसी रिपोर्ट को रद्द कर दिया था. इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस अफसरों पर भी कड़ी टिप्पणी की थी कि वो इस धारा के निरस्त होने के बाद भी इसके तहत प्राथमिकी कैसे दर्ज कर रहे हैं.


     कब ये धारा अस्तित्व में आयी

आईटी एक्ट में धारा 66 ए को वर्ष 2009 में संशोधित अधिनियम के तहत जोड़ा गया था. उक्त प्रावधान ये कहता था कि कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण के माध्यम से संदेश भेजने वाले उन व्यक्तियों को दंडित किया जा सकता है,जो-

(1) कोई भी ऐसी जानकारी भेजते हैं जो मोटे तौर पर आपत्तिजनक है या धमकाने वाली है.

या (2) ऐसी कोई भी जानकारी जिसे वह झूठी मानता है, लेकिन इस तरह के कंप्यूटर संसाधन या संचार उपकरण का उपयोग करके झुंझलाहट, असुविधा, खतरा, बाधा, अपमान, चोट, आपराधिक धमकी, दुश्मनी, घृणा या बीमार इच्छाशक्ति पैदा करने के उद्देश्य से भेजता है.

या (3) किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मेल या इलेक्ट्रॉनिक मेल संदेश को झुंझलाहट या असुविधा या धोखा देने या प्राप्तकर्ता को इस तरह के संदेशों की उत्पत्ति के बारे में भ्रमित करने के उद्देश्य से उपयोग करना.

इस अपराध के लिए तीन साल तक के कारावास की सजा हो सकती थी. साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता था.


    संसद में उठ चुका है मामला


लोकसभा में 2013 में प्राइवेट बिल किया गया. इसमें 66 ए के औचित्य और क्रियान्वयन पर सवाल उठाया गया. ये कहा गया कि जब भारतीय दंड संहिता, 1860 में इसे पहले ही कवर किया जा रहा है तो इसके लिए दोहरा कानून लाने का क्या मतलब है. दोनों कानूनों में कहीं ना कहीं अस्पष्टता भी थी. इस पर इसके बाद फिर प्राइवेट लाया गया, जिसमें इसमें सुधार की मांग की गई.