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विश्व पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल पर विशेष :सावधानः नहीं चेते तो हम अपना विनाश अपने ही हाथों करने के होंगे दोषी : डा० गणेश पाठक बलिया

विश्व पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल पर  विशेष :सावधानः नहीं चेते तो हम अपना विनाश अपने ही हाथों करने के होंगे दोषी : डा० गणेश पाठक बलिया
डॉ सुनील ओझा





बलिया 22 अप्रैल 2020 ।। बलिया एक्सप्रेस के उपसम्पादक डॉ सुनील कुमार ओझा से दूरभाष पर पृथ्वी दिवस के अवसर पर समग्र विकास एवं शोध संस्थान बलिया के सचिव पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक का कहना है कि पृथ्वी हमारी गतिविधियों के कारण आज विनाश के कगार पर खड़ी है। पृथ्वी को बचाने में कहीं देर न हो जाए, अन्यथा पृथ्वी के सम्पूर्ण विनाश को रोकना किसी के बस की बात नहीं रह जायेगी।
कहा कि प्राकतिक रूप से धरती को बचाने की बात है तो कोरोना ने विश्व की गतिविधियों को जिस तरह से रोक दिया है ,उससे पर्यावरण के कारकों में काफी सुधारात्मक लक्षण देखने को मिल रहे हैं । इससे इस बात की तो पुष्टि की जा रही है कि हम पर्यावरण के कारको से जितना ही कम छेड़ - छाड़ करेंगे, पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। यदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो हमारी संस्कृति में ही माता 'भूमिः पुत्रोअहम् पृथ्विव्याः' की अवधारणा निहित है जिसके तहत हम पृथ्वी को अपनी माता मानते हैं और अपने को पृथ्वी माता का पुत्र। इस संकल्पना तहत हम पृथ्वी पर विद्यमान पर्यावरण के तत्वों की रक्षा करते हैं। यदि हम भारतीय संस्कृति में निहित अवधारणाओं को देखें तो प्रकृति के सभी कारकों की रक्षा एवं सुरक्षा की अलग- अलग संकल्पना हमारे प्राचीन ग्रंथों में भरी पड़ी है।हम तो प्रारम्भ से ही प्रकृति पूजक रहे हैं , इसी लिए अभी प्रकृति के अधिकांश अवयव हमारे यहाँ सुरक्षित हैं।हम भगवान की पूजा करते हैं और भगवान मतलब - भ= भूमि, ग= गगन, व= वायु, अ= अग्नि एवं न= नीर होता है। अर्थात् प्रकृति के पाँच मूलभूत तत्वों की पूजा ही हम भगवान के रूप में करते हैं।
      किन्तु कष्ट इस बात का है कि हम पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंगते हुए अपनी मूल अवधारणा को भूलते गए और अंधाधुन्ध विकास हेतु प्रकृति के संसाधनों का अतिशय दोहन एवं शोषण करते गए, जिससे समारे देश में भी प्राकृतिक संतुलन अव्यवस्थित होता जा रहा है और हमारे यहाँ भी संकट के बादल मँडराने लगे हैं। आज आवश्यकयता इस बात की है कि हम अपनी सनातन भारतीय संस्कृति की अवधारणा को अपनाते हुए विकास की दिशा सुनिश्चित करें, जिससे विकास भी हो और पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी को सुरक्षित एवं संतुलित यहे। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब हमारा भी विनाश अवश्यम्भावी हो जायेगा और हम अपना विनाश अपने ही हाथों कर डालेंगे ।

        पृथ्वी दिवस सन् 1970 से लगातार प्रत्येक वर्ष विश्व स्तर पर 195 से भी अधिक देशों द्वारा 22 अप्रैल को प्रति वर्ष अलग- अलग उद्देश्यों का निर्धारण कर मनाया जाता रहा है। इस वर्ष यानी 2020 की मुख्य थीम है - जलवायु कारवाई( Climate Action)। वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग के चलते जलवायु में इतना अधिक परिवर्तन हो रहा है कि दुनिया में उथल- पुथल मचा हुआ है।धरती के तापमान में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।  हिमानियाँ निरन्तर पिघलती जा रही हैं एवं समुद्र का जल स्तर बढ़ता जा रहा है।जिससे समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों के डुबने का खतरा बढ़ता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन से पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। जिसका प्रभाव मानव के प्रत्येक कार्यों पर पड़ रहा है। प्रकृति में असंतुलन बढ़ने के कारण प्राकृतिक आपदाएँ निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। इन सबको देखते हुए ही इस वर्ष की थीम - जलवायु कारवाई अपने आप में विशेष महत्वपूर्ण है।
          किन्तु पृथ्वी को प्राकृतिक रूप से बचाने की बात सोचने से पहले हमें वर्तमान समय में व्याप्त विश्व व्यापी महामारी कोरोना से निजात पाना भी आवश्यक है। क्योंकि जान है तो जहान है। भारत जैसे विकासशील देश जहाँ स्वास्थ्य एवं चिकित्सकीय सुविधाएं आवश्यकता की तुलना में बहुत कम हैं, हमें यह भी सोचना एवं ध्यान देना होगा कि आखिर हम इस महामारी कैसे अपने बचें एवं  अपनी 'बसुधैव कुटुम्बकम्' की अवधारणा के आधार पर विश्व को भी कैसे बचाएँ। हमारी यह भी अवधारणा रही है कि सर्वे भवन्तु सुखिनः । इस अवधारणा पर भी हमें खरा उतरना होगा एवं अपने को कोरोना से बचाते हुए स्वस्थ्य रहकर विश्व कै भी बचाना होगा। इस संदर्भ में जहाँ तक अपनी बात है तो हमारी भारतीय संस्कृति में निहित अवधारणाएं इतनी इतनी उपयोगी एवं सबल हैंकि उनका पालन कर हम कोरोना का सामना करने में सक्षम हैं और कर भी रहे हैं। हमारी संस्कृति, सभ्यता, आचार, विचार , व्यवहार, परम्पराएँ, रीति- रिवाज , हमारी दिनचर्या ऐसी है कि अगर हम उसके अनुसार रहें तो निश्चित ही कोरोना को भगाने में सफलता मिलेगी। किन्तु इसके साथ ही साथ हमें आधुनिक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा प्रणाली पर भी ध्यान देना होगा। दोनों का समन्वय स्थापित कर न केवल हम अपने देश के लोगों का जीवन सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि विश्व के लोगों के जीवन की भी सुरक्षा करने में समर्थ हो सकते हैं।
   अंत में यही कहना है-  जब तक करेंगे प्रकृति का शोषण, नहीं मिलेगा किसी को पोषण।







बलिया जिला प्रशासन की लोगो से अपील

कोरोना के प्रति जागरूक करता भोजपुरी गीत




यह हिंदी गाना भी आपको कोरोना के सम्बंध में बता रहा है

डॉ विश्राम यादव वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी अपनी कविता का पाठ करते हुए











एक अपील 
जनपद में यदि कोई बच्चा कोरोना  लॉक डाउन के कारण भूँख या अन्य किसी कारण से संकट में है तो हमारे चाइल्ड हेल्प लाइन नंबर 1098 पर 24x7 फोन करें। हमारी चाइल्डलाइन परिवार के साथी संकट की इस घड़ी में भोजन, दवा आदि से बच्चों की हर संभव मदद के लिए कृत संकल्प हैं। 
निदेशक, चाइल्ड लाइन-1098