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आज ही के दिन (13 दिसम्बर 2001) को आतंकियों ने किया था संसद पर हमला , जाने उस दिन की पूरी कहानी ..




13 दिसम्बर 2018 ।।

कहते हैं कुछ तारीखें अपने साथ इतिहास लेकर आती हैं. 13 दिसम्बर 2001 की तारीख भी इतिहास में दर्ज हो जाने के लिए आई.  भारतीय लोकतंत्र को थर्रा देने के लिए आई. पूरा देश सन्न था कि आखिर संसद पर हमला कैसे हो सकता है.

गोलियों की आवाज, हाथों में एके-47 लेकर संसद परिसर में दौड़ते आतंकी, बदहवास सुरक्षा कर्मी इधर से उधर भागते लोग, कुछ ऐसा ही नजारा था संसद भवन का. जो हो रहा था उस पर यकीन करना मुश्किल हो रहा था. लेकिन ये भारतीय लोकतंत्र की बदकिस्मती थी कि हर तस्वीर सच थी.

सुबह 11 बजकर 20 मिनट
उस रोज उस वक्त, लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही ताबूत घोटाले पर मचे बवाल के चलते स्थगित हो चुकी थीं. वक्त था 11 बजकर 20 मिनट. इसके बाद तमाम सांसद संसद भवन से बाहर निकल गए. कुछ ऐसे थे जो सेंट्रल हॉल में बातचीत में मशगूल हो गए. कुछ लाइब्रेरी की तरफ बढ़ गए, कुल मिलाकर सियासी तनाव से अलग माहौल खुशनुमा ही था.

किसी को अंदाजा नहीं था कि आगे क्या होने जा रहा है. उधर दूर एक सफेद रंग की एंबैसेडर कार संसद मार्ग पर दौड़ी चली जा रही थी. घनघनाती हुई लाल बत्ती और सायरन की आवाज. किसी को शक की गुंजाइश ही नहीं थी. ये कार विजय चौक से बाएं घूमकर संसद की तरफ बढ़ने लगी. इस बीच संसद परिसर में मौजूद सुरक्षा कर्मियों के वायरलेस सेट पर एक आवाज गूंजी. उप राष्ट्रपति कृष्णकांत घर के लिए निकलने वाले थे, इसलिए उनकी कारों के काफिले को आदेश दिया गया कि तय जगह पर खड़ी हो जाएं. ये जगह थी संसद भवन के गेट नंबर 11 के सामने.


चंद ही सेकेंड में सारी गाड़ियां करीने से आकर गेट नंबर 11 के सामने लग गईं. उप राष्ट्रपति किसी भी वक्त बाहर आने वाले थे. तब तक सफेद एंबेसडर कार लोहे के दरवाजों को पार करते हुए गेट नंबर 12 तक पहुंच चुकी थी. इसी गेट से राज्यसभा के भीतर के लिए रास्ता जाता है. कार इस दरवाजे से उधर की ओर आगे बढ़ गई जहां उप-राष्ट्रपति की कारों का काफिला खड़ा था.

11 बजकर 35 मिनटदिल्ली पुलिस के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर जीतराम उप राष्ट्रपति के काफिले में एस्कॉर्ट वन कार पर तैनात थे. जीतराम को सामने से आती हुई सफेद एंबेसडर दिखाई दी. सेकेंडों में ये कार जीतराम के पास तक आ गई. उसकी कार के चलते रास्ता थोड़ा संकरा हो गया था. एंबेसेडर की रफ्तार धीमी होने के बजाय और तेज हो गई. वो कार की तरफ देखता रहा, अचानक ये कार बाईं ओर मुड़ गई.

जीतराम को कार के ड्राइवर की ये हरकत थोड़ी अजीब लगी जब कार पर लाल बत्ती है. गृह मंत्रालय का स्टीकर है तो फिर वो उससे बचकर क्यों भागी. जीतराम ने जोर से चिल्ला कर उस कार को रुकने को कहा. एएसआई की आवाज सुनकर वो कार आगे जाकर ठिठक गई. लेकिन वहीं इंतजार करने के बजाय उसके ड्राइवर ने कार पीछे करनी शुरू कर दी. अब जीतराम तेजी से उसकी तरफ भागा. इसी हड़बड़ी में वो कार उप राष्ट्रपति के काफिले की मुख्य कार से टकरा गई.

सेना की वर्दी पहनकर आए थे आतंकीजब गाड़ी खड़ी थी तभी आतंकियों की गाड़ी ने उनकी कार में टक्कर मारी. इसके बाद विजेंदर सिंह ने गाड़ी में बैठे आतंकी का कॉलर पकड़ा और कहा कि दिखाई नहीं दे रहा, तुमने उपराष्ट्रपति की गाड़ी को टक्कर मार दी.

सुरक्षाकर्मियों के हल्ला मचाने के बावजूद कार में बैठे आतंकी रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. जीतराम समेत बाकी लोग उस पर चिल्लाए कि तुम देखकर गाड़ी क्यों नहीं चला रहे हो. इस पर गाड़ी में बैठे ड्राइवर ने उसे धमकी दी कि पीछे हट जाओ वर्ना तुम्हें जान से मार देंगे. अब जीतराम को यकीन हो गया कि कार में बैठे लोगों ने भले सेना की वर्दी पहन रखी है, लेकिन वो सेना में नहीं हैं. उसने तुरंत अपनी रिवॉल्वर निकाल ली. जीतराम को रिवॉल्वर निकालता देख संसद के वॉच एंड वार्ड स्टाफ का जेपी यादव गेट नंबर 11 की तरफ भागा. एक ऐसे काम के लिए जिसके शुक्रगुजार हमारे सांसद आज भी हैं.

कार चला रहे आतंकी ने अब कार गेट नंबर 9 की तरफ मोड़ दी. इसी गेट का इस्तेमाल प्रधानमंत्री राज्यसभा में जाने के लिए करते हैं. कार चंद मीटर बढ़ी लेकिन आतंकी उस पर काबू नहीं रख पाए, कार सड़क किनारे लगे पत्थरों से टकरा कर थम गई. तब तक जीतराम भी दौड़ता हुआ कार तक पहुंच गया. उसके हाथ में रिवॉल्वर देख पांचों आतंकी तेजी से बाहर निकल आए. उतरते ही उन्होंने कार के बाहर तार बिछाना और उससे विस्फोटकों को जो़ड़ना शुरू कर दिया.

लेकिन तब तक जीतराम को यकीन हो गया कि ये आतंकवादी हैं. उसने बिना देर किए एक पर गोली दाग दी जो उसके पैर पर लगी. जवाब में उस आतंकी ने भी जीतराम पर फायर कर दिया. गोली उसके पैर में जाकर धंस गई और वो वहीं गिर गया. इस वक्त तक सरकार में ऊपर से लेकर नीचे तक किसी को अंदाजा नहीं था कि संसद की सुरक्षा में कितनी बड़ी सेंध लग चुकी है.

आतंकियों ने की ताबड़तोड़ फायरिंगउधर, कार में धमाका कर पाने में नाकाम आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. गेट नंबर 11 पर तैनात सीआरपीएफ की कॉन्सटेबल कमलेश कुमारी भी दौ़ड़ते हुए वहां आ पहुंची. संसद के दरवाजे बंद करवाने का अलर्ट देकर जेपी यादव वहां आ गया. दोनों ने आतंकियों को रोकने की कोशिश की, लेकिन आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग करते हुए उन्हें वहीं ढेर कर दिया.
आजाद देश के सबसे बड़े आतंकी हमले की शुरुआत करने के बाद अब आतंकी गोलियां चलाते और हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए गेट नंबर 9 की तरफ भागे.

संसद परिसर में ताबड़तोड़ गोलियां की आवाज ने सुरक्षाकर्मियों में हड़कंप मचा दिया. उस वक्त सौ से ज्यादा सांसद मेन बिल्डिंग में ही मौजूद थे. पहली फायरिंग के बाद कई सांसदों को इस बात पर हैरत थी कि आखिर कोई कैसे संसद भवन परिसर के नजदीक पटाखे फोड़ सकता है. वो इस बात से पूरी तरह बेखबर थे कि संसद पर आतंकी हमला हुआ है.

लेकिन तब तक संसद की सुरक्षा में लगे लोग पूरी तरह हरकत में आ चुके थे. गहरे नीले रंग के सूट पहने हुए ये सुरक्षाकर्मी परिसर के भीतर और बाहर फैल गए. वो सांसदों और मीडिया के लोगों को लगातार अपनी जान बचाने के लिए चिल्ला रहे थे. उस वक्त तक ये भी तय नहीं था कि आतंकी सदन के भीतर तक पहुंच गए हैं या नहीं. इसलिए तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और कैबिनेट के दिग्गज मंत्रियों को संसद भवन में ही एक खुफिया ठिकाने पर ले जाया गया.

वहीं जो सांसद परिसर से बाहर निकल रहे थे उन्होंने देखा कि हर तरफ अफरातफरी मच गई है. पुलिस की वर्दी पहने हुए लोग इधर से उधर भाग रहे हैं. हर तरफ से गोलियों और हेंड ग्रैनेड दागे जाने की आवाज आ रही थीं. ये वो वक्त था जब पहली बार सही मायने में लोगों को एहसास हुआ कि दरअसल हुआ क्या है. फिर तो इसके बाद गोलियों की तड़तड़ाहट में एक और आवाज गूंज उठी, आतंकवादी, आतंकवादी.

संसद परिसर में मची अफरातफरीसंसद में फायरिंग और बम धमाके की कान फाड़ देने वाली आवाज के बीच शुरुआती मिनटों में पूरे परिसर में जबरदस्त अफरातफरी मची रही. कई सांसदों को संसद के वॉच एंड वार्ड स्टाफ के लोग सुरक्षित बाहर निकालकर ले गए. संसद के भीतर मचे हड़कंप के बीच पांचों आतंकवादी अंधाधुंध गोलियां दागते हुए गेट नंबर 9 की तरफ भागे जा रहे थे. गेट नंबर 9 और उनके बीच की दूरी कुछ ही मीटर की थी, लेकिन तब तक गोलियों की आवाज सुनकर गेट नंबर 9 को बंद कर दिया गया था.

आतंकियों पर जबरदस्त जवाबी फायरिंग भी जारी थी. सुरक्षाबलों की गोली से तीन आतंकी जख्मी थे, लेकिन वो लगातार आगे बढ़ते जा रहे थे. उन्होंने एक छोटी सी दीवार फांदी और गेट नंबर 9 तक पहुंच ही गए. लेकिन वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि उसे बंद किया जा चुका है. इसके बाद वो दौड़ते हुए, बंदूकें लहराते हुए आगे बढ़ने लगे. तभी पहली मंजिल पर मौजूद एक पुलिस अफसर अपने साथियों पर चिल्लाया कि एक-एक इंच पर नजर रखो. कोई आतंकी सदन के भीतर ना पहुंचने पाए कोई आतंकी यहां से भाग ना पाए. तुरंत ही सुरक्षाकर्मियों ने उन नेताओं और पत्रकारों को संसद के भीतर धकेलना शुरू कर दिया जो इतनी फायरिंग और हैंड ग्रेनेड के धमाकों के बाद भी दरवाजों के आसपास खड़े थे.

हमला होते ही काटे गए फोननेताओं को सेंट्रल हॉल तक ले जाने के बाद सुरक्षाकर्मी तमाम संवाददाताओं को उस कमरे में ले गए जहां से अहम सरकारी दस्तावेज बांटे जाते थे. इस कमरे का दरवाजा बंद कर दिया गया और कमरे में पहुंचते ही संवाददाता वहां के फोन की तरफ भागे. लेकिन कमरे में लगे सभी फोन ने काम करना बंद कर दिया था. ये फोन हमला शुरू होने के तुरंत बाद ही काट दिए गए थे. मकसद ये कि कोई आतंकी संसद भवन के संचार तंत्र पर कब्जा ना कर ले.

संसद के भीतर की इस हलचल के बीच आतंकी गेट नंबर 9 से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे. 4 आतंकी गेट नंबर 5 की तरफ लपके भी, लेकिन उन 4 में से 3 को गेट नंबर 9 के पास ही मार गिराया गया. हालांकि एक आतंकवादी गेट नंबर 5 तक पहुंचने में कामयाब रहा. ये आतंकी लगातार हैंड ग्रेनेड भी फेंक रहा था. इस आतंकी को गेट नंबर पांच पर कॉन्टेबल संभीर सिंह ने गोली मारी. गोली लगते ही चौथा आतंकी भी वहीं गिर पड़ा.

पांचवां आतंकी मचाता रहा कोहरामचार आतंकियों को मार गिराने की कार्रवाई के बीच एक आतंकी गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ गया. ये आतंकी फायरिंग करते हुए गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ता जा रहा था. गेट नंबर 1 से ही तमाम मंत्री, सांसद और पत्रकार संसद भवन के भीतर जाते हैं. ये आतंकी भी वहां तक पहुंच गया. फायरिंग और धमाके की आवाज सुनने के तुरंत बाद इस गेट को भी बंद कर दिया गया था. इसलिए पांचवां आतंकी गेट नंबर 1 के पास पहुंचकर रुक गया. तभी उसकी पीठ पर एक गोली आकर धंस गई. ये गोली इस आत्मघाती हमलावर की बेल्ट से टकराई. इसी बेल्ट के सहारे उसने विस्फोटक बांध रखे थे. गोली लगने के बाद पलक झपकते ही विस्फोटकों में धमाका हो गया. उस आतंकी के शरीर के निचले हिस्से की धज्जियां उड़ गईं. खून और मांस के टुकड़े संसद भवन के पोर्च की दीवारों पर चिपक गए. जले हुए बारूद और इंसानी शरीर की गंध हर तरफ फैल गई.

पांचों आतंकियों के ढेर होने के बावजूद इस वक्त तक ना तो सुरक्षाकर्मियों की पता था और ना ही मीडिया को कि आखिर संसद पर हमला कितने आतंकियों ने किया है. अफरातफरी के बीच ये अफवाह पूरे जोरों पर थी कि एक आतंकी संसद के भीतर घुस गया है. इसकी एक वजह ये भी थी कि मारे गए पांचों आतंकियों ने जो हैंड ग्रेनेड चारों तरफ फेंके थे, उनके में कुछ आतंकियों को मारे जाने के बाद फटे.

संसद के भीतर और बाहर मचे घमासान के बीच सुरक्षाकर्मियों को कुछ वक्त लगा ये तय करने में कि क्या खतरा वाकई टल गया है. आधे घंटे के भीतर सभी आतंकियों के मारे जाने के बावजूद वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे. तब तक सुरक्षाबल के जवान संसद और आसपास के इलाके को बाहर से भी घेर चुके थे. गोलियों की आवाज, हैंड ग्रेनेड के धमाके की जगह अब एंबुलेंस के सायरन ने ले ली थी.।
(साभार न्यूज18)