कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस को मिला GI टैग, लंबी लड़ाई के बाद मिली पहचान

- 3 अगस्त 2018 ।।
- देश की जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री ने मध्यप्रदेश के झाबुआ की पारंपरिक प्रजाति के कड़कनाथ मुर्गे को लेकर सूबे के दावे पर मंजूरी की मुहर लगा दी है. करीब साढ़े छह साल की लम्बी जद्दोजहद के बाद झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस के नाम को भौगोलिक पहचान (जीआई) का चिन्ह रजिस्टर्ड किया गया है ।
इस निशान के लिए सहकारी सोसाइटी कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) के स्थापित संगठन ग्रामीण विकास ट्रस्ट के झाबुआ स्थित केंद्र ने आवेदन किया था ।
जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, ‘मांस उत्पाद और पोल्ट्री एवं पोल्ट्री मीट की श्रेणी’ में किये गये इस आवेदन को 30 जुलाई को मंजूर कर लिया गया है. यानी झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस का नाम जीआई टैग के लिए रजिस्टर्ड हो गया है. यह जीआई रजिस्ट्रेशन सात फरवरी 2022 तक वैध रहेगा ।
ग्रामीण विकास ट्रस्ट के क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक महेंद्र सिंह राठौर ने इसकी पुष्टि की. उन्होंने बताया, ‘हमारी अर्जी पर झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस के नाम को जीआई चिन्ह का रजिस्ट्रेशन हो गया है. हमें इसकी औपचारिक सूचना मिल चुकी है.’
क्या होता है जीआई रजिस्ट्रेशन
जीआई रजिस्ट्रेशन का चिन्ह विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले ऐसे उत्पादों को प्रदान किया जाता है जो अनूठी खासियत रखते हैं. जीआई चिन्ह के कारण कड़कनाथ चिकन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबारी पहचान हासिल होगी, जिससे इसके निर्यात के रास्ते खुल सकते हैं. इस चिन्ह के कारण झाबुआ के कड़कनाथ चिकन के ग्राहकों को इस मांस की गुणवत्ता का भरोसा मिलेगा. इस मांस के उत्पादकों को नक्कालों के खिलाफ पुख्ता कानूनी संरक्षण भी हासिल होगा.
कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय लोग कहते हैं ‘कालामासी’
झाबुआ मूल के कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय जुबान में 'कालामासी' कहा जाता है. इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है. कड़कनाथ के मांस में दूसरी प्रजातियों के चिकन के मुकाबले चर्बी और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है. झाबुआवंशी मुर्गे के गोश्त में प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत ज्यादा होती है. कड़कनाथ चिकन की मांग इसलिए भी बढ़ती जा रही है, क्योंकि इसमें अलग स्वाद के साथ औषधीय गुण भी होते हैं. कड़कनाथ प्रजाति के जीवित पक्षी, इसके अंडे और मांस दूसरी प्रजातियों के मुकाबले काफी महंगी दरों पर बिकते है ।

2012 में जीआई टैग के लिए दी गई थी अर्जी
झाबुआ की गैर सरकारी संस्था ने आठ फरवरी 2012 को कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस को लेकर जीआई प्रमाणपत्र की अर्जी दी थी. लम्बी जद्दोजहद के बाद इस अर्जी पर अंतिम फैसला हो पाता, इससे पहले ही एक निजी कम्पनी यह दावा करते करते हुए जीआई तमगे की जंग में कूद गयी थी कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में मुर्गे की इस प्रजाति को अनोखे ढंग से पालकर संरक्षित किया जा रहा है.
हालांकि, जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स रजिस्ट्री ने झाबुआ के कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस को लेकर मध्यप्रदेश का दावा मार्च में शुरुआती तौर पर मंजूर कर लिया था और अपनी भौगोलिक उपदर्शन पत्रिका में इस बारे में विज्ञापन भी प्रकाशित किया था. इसके बाद पड़ोसी छत्तीसगढ़ ने इस प्रजाति के लजीज मांस को लेकर जीआई प्रमाणपत्र हासिल करने की जंग में कदम पीछे खींच लिये थे ।
कड़कनाथ मुर्गे के काले मांस को मिला GI टैग, लंबी लड़ाई के बाद मिली पहचान
Reviewed by बलिया एक्सप्रेस
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August 03, 2018
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