मां की पुण्यतिथि 20 सितम्बर पर काव्यांजलि द्वारा श्रद्धांजलि : क्योंकि मां को बना कर,खुदा खुद बेरोजगार हो गया
मधुसूदन सिंह
बलिया।।
माँ एक शब्द नही जीवनदायिनी श्वास है,
मां के बिना जीवन जैसे कांटों का हार है,
जीवन में सबकुछ है, पर मां जैसा नही है निःस्वार्थ प्यार,
मां हर जगह आज भी दिखता है तेरा अख्स।
मां पर जितना भी लिखा जाय कम होगा, मां के निःस्वार्थ प्यार की कोई सीमा नही होती है। मां का प्यार आकाश की भी सीमाओं के पार तक होता है, जिसकी कोई सीमा नही होती है। मेरी मां भी ऐसे ही प्यार करने वाली थी। मेरी मां को आज भी मेरे दोस्त भी याद करते है क्योंकि उनको भी मेरें जैसे ही प्यार व दुलार करती थी। आज अपनी मां गोलोकवासी शांति सिंह की पुण्यतिथि 20 सितम्बर पर सभी माताओं के श्री चरणों में मां की महिमा का बखान करने वाली विभिन्न कवियों की कविताएं प्रस्तुत कर रहा हूं ------
घुटनों से रेंगते - रेंगते,
कब पैरों पर खड़ा हुआ,
तेरी ममता की छाँव में,
जाने कब बड़ा हुआ..
काला टीका दूध मलाई आज भी सब कुछ वैसा है,
मैं ही मैं हूँ हर जगह, माँ प्यार ये तेरा कैसा है ?
सीधा-साधा, भोला-भाला, मैं ही सबसे अच्छा हूँ,
कितना भी हो जाऊ बड़ा, "माँ !"
मैं आज भी तेरा बच्चा हूँ..
माँ शब्द है माँ हैअर्थ
माँ के बिना जीवन व्यर्थ,
मां आत्मा माँ परमात्मा,
माँ में बसे पुरे जीवात्मा,
माँ जननी माँ जगदम्बा,
माँ के बिना ये जीवन अचम्भा,
माँ परोपकार का ऐसा बृक्ष है,
जीवन जोत अमृत बृक्ष है।
क्या लिखू तेरे बारे में,
कोई शब्द नहीं तेरे दायरे में,
इस नन्हे से पाँव को तूने सीने से लगाया था,
माँ इस मतलबी जहां में तूने जीने की राह बताया था।
खुदा का काम था मोहब्बत,
वो भी मां करने लगी,
खुदा का काम था इबदात,
वो भी मां करने लगी,
खुदा का काम था हिफाज़त,
वो भी मां करने लगी,
देखते ही देखते खुदा के सामने कोई
और परवरदिगार हो गया,
बहुत रोया, बहुत पछताया,
क्योंकि मां को बना कर
खुदा खुद बेरोजगार हो गया।
माँ चूल्हा, धुँआ, रोटी और हाथों का छाला हैं माँ,
माँ जिन्दगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला हैं माँ।