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नर सेवा नारायण सेवा, को चरितार्थ करता सागर सिंह राहुल, अज्ञात युवक का कराया अंतिम संस्कार



बलिया।। कहते है धरती पर रहने वाले प्राणियों के जीवन और मृत्यु की तारीख भगवान तय करते है। लेकिन जीवन और मृत्यु के बीच की जिंदगी उस प्राणी को स्वयं जीना पड़ता है। जिसमे उसके, कर्म,धर्म,उसका व्यवहार, स्वभाव के साथ ही उसका उद्देश्य भी शामिल होता है। हर प्राणी की अपनी एक छवि है और उसके कर्म से ही उसकी पहचान बनती हैं। कोई पेट के लिए, तो कोई पैसों के लिए, अपने जीवन और मृत्यु के बीच की दूरी को तय करता है। एक दिन ईश्वर द्वारा तय तारीख और समय पर शरीर से आप का प्राण निकल जाता है। 



    ऐसा ही कुछ देखने को मिला एक गरीब और लाचार मां के जीवन में, जब एक मां के सामने पुत्र की अंतिम यात्रा निकाली गयी। उस मां ने अपने बेटे के अंतिम संस्कार को देखने या यूं कहे कि उसको अनंत यात्रा पर जाते हुए देखने कहे या बिदाई करने के लिये अपनी पथराई आँखों से पंचतत्व में विलीन हो रहे अपने जिगर के टुकड़े को आग लपटों में राख बनते हुए और अनंत यात्रा पर जाते हुए देखने के लिये श्मशान घाट पर पहुंच गयीं थी। जिस बेटे ने मां की गोद मे जिंदगी पाई थी वो किसी और की गोद में आंखों के सामने जल रहा था, लेकिन लाचार मां कुछ नही कर पा रही थी,क्योंकि मां की गोद से ताकतवर थी लकड़ियों से बनी आग की गोद,जहां आंखों के सामने मां के कलेज़े का टुकड़ा राख बन रहा था। यह करुण दृश्य देख कर हर किसी का कलेजा छलनी हो रहा था।








इस पूरे वाक्ये की शुरुआत बलिया के जिला अस्पताल से होती है। जीवन और मृत्यु के बीच हर प्राणी के कर्म का विशेष महत्व होता है और आप का क्रम ही आप को दानव या भगवान बना देता है।सागर सिंह राहुल, नाम तो सुना ही होगा, यह बलिया की धरती पर एक ऐसा शख्स है जिसने मदद करते समय कभी पलट कर नही देखा कि तुम किस धर्म, जाति और पार्टी के हो, तुम इंसान हो या जानवर हो । याद रहे कर्म ही आप के भाग्य का फैसला करता है। जीवन और मौत के बीच सिंर्फ आप का कर्म ही याद किया जाता है।

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दरअसल सागर सिंह राहुल को पता चला कि एक लाचार मां पिछले 3 दिनों से बलिया जिला अस्पताल के इर्द गिर्द बैठ अपने जवान बेटे की याद में विलाप कर रही है । सागर के मुताबिक लाचार मां पोस्टमार्टम हाउस से अपने बेटे का शव के निकलने का इंतजार कर रही थी। बहुत कोशिश के बाद भी इनसे कुछ जानकारी नही मिल सकी कि यह कौन है और कहां की रहने वाली है, कैसे इनके बेटे की मौत हुई। सागर की माने तो अंततः यह फैसला लिया गया, क्यों न माता जी के आंखो के सामने इनके पुत्र का अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज द्वारा मां गंगा घाट पर कर दिया जाए,जिससे इनके बेटे की आत्मा को शांति मिले और इस मां को संतुष्टि। 



फिर क्या था सागर सिंह ने एक फिर इंसानियत को शर्मसार होने से बचा लिया। कहते है जिसका कोई नही होता उसका भगवान होता है और भगवान की उपाधि पैसे से नही, कर्म से मिलती है। नही पता किसी सागर की कितनी गहराई है लेकिन सागर के सामने एक बार खड़े हो कर देखिए नीला सागर और नीला आसमान भी आप के आंखों से निकलने वाली रोशनी के अंतिम छोर पर दोनों एक ही नज़र आएंगे।


सागर ने अपने सहयोगी से मिल कर अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस के सामने ही लाचार मां के बेटे के लिए अर्थी सजाई और खुद उस मां का बेटा बन गया। इस तस्वीर ने हर किसी को झकझोर दिया। वहां मौजूद सागर के मित्रो ने इंसान के क्रम को भगवान माना और एक अनजान भाई के लिए चार कंधों ने जन्म ले लिया। जिसका कोई नही था वहां बहुतों ने उस लाचार मां का दर्द अपने कंधों पर ले लिया। मां के सामने जो तस्वीर थी वो अनजान थी। दर्द असहनीय था और बेटे के अंतिम  विदाई में उन अनजान कंधा देने वाले बेटों के बीच मां थी मुक्ति धाम पर दूर बैठ कर देखती रही और वो सामने पंचतत्व में विलीन होता रहा।नही पता आगे क्या होगा लेकिन जितना हुआ उतने ने जिंदगी का सच सबके सामने रखा।