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सच्ची प्रेम कहानी : क्या आप जानते है जवाहरलाल नेहरू की सबसे छोटी बहन का नाम ? , जो प्रेम विवाह करके राजनीति से हो गयी थी दूर !

 नेहरू की वह बहन जिसने पहली नज़र में प्यार होते ही कर ली शादी
(संजय श्रीवास्तव)

19 नवम्बर 2018 ।।

हम लोगों ने नेहरू परिवार में तकरीबन सभी का नाम सुना है और सभी से तकरीबन कुछ ना कुछ जानकारियों के जरिए वाकिफ हैं लेकिन एक नाम के बारे में हमें शायद मालूम हो. वह हैं जवाहर लाल नेहरू की छोटी बहन कृष्णा. वो इस परिवार की अकेली ऐसी सदस्या हैं, जो किसी पद या सक्रिय राजनीति से दूर रहीं. उनकी लव स्टोरी भी कम रोचक नहीं. उन्हें जैन धर्म के एक युवक से मिले महज दस दिन ही हुए थे कि उन्हें महसूस हुआ कि यही उनके जीवन का असली साथी है.



जब वो भारत लौटीं तो पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर नौकरी की. स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में कूदीं. जेल भी गईं. लेकिन शादी के बाद वो आमतौर पर मुख्य धारा से ओझल हो गईं. लेकिन इंदिरा गांधी की सबसे चहेती बुआ वही थीं. इंदिरा ने जब पहले बच्चे के रूप में राजीव को जन्म दिया, तो ये डिलिवरी कृष्णा के मुंबई स्थित घर पर ही हुई.


(फाइल फोटो- कृष्णा)
कृष्णा बेशक राजनीति या किसी पद पर आने की कभी इच्छुक नहीं रहीं लेकिन एक सफल लेखिका के रूप में उन्होंने खूब नाम कमाया. हां, अगर आप उन्हें कृष्णा नेहरू के तौर पर इंटरनेट पर तलाशने की कोशिश करेंगे तो वो शायद ही मिलें, क्योंकि अहमदाबाद के व्यापारी समुदाय के एक जैन युवक से शादी करने के बाद वो कृष्णा हठीसिंग हो गई थीं. खैर अब उनकी प्रेम कहानी और उनके विवाह पर आते हैं.

पहली नजर में दिल दे बैठीं 
ये 1933 की बात है. कृष्णा औऱ विजयलक्ष्मी जेल से रिहा हुईं थीं. दोनों पहले अपनी मां के साथ नेहरू की अस्वस्थ पत्नी कमला को देखने कलकत्ता गईं, जहां वो इलाज करा रही थीं. जवाहर आमतौर पर जेल में ही रहते थे. कलकत्ता से वो फिर पूना चली गईं. उन दिनों इंदिरा वहीं पढ़ रही थीं. पूना में उन्होंने कुछ दिन गुजारे. इसी दौरान उनकी मुलाकात एक जैन युवक राजा गुणोत्तम हठीसिंग से हुई. लंबे कद का पतला लेकिन प्रतिभाशाली युवक. जिसकी बातों और व्यक्तित्व में कुछ ऐसा था कि वो पहली ही मुलाकात में उससे आकर्षित होने लगीं.


(परिवार के साथ कृष्णा)
दस दिनों की मुलाकात में ही शादी तक पहुंची बात 
फिर दस दिनों तक मिलने जुलने के बाद ही दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि उन्हें शादी कर लेना चाहिए. लेकिन सही बात ये भी थी कि इस दस दिनों की मुलाकातों में न तो राजा कृष्णा के बारे में जानते थे और नेहरू परिवार की छोटी बेटी उनके बारे में. मोतीलाल नेहरू का निधन हो चुका था. नेहरू परिवार की जिम्मेदारियां नेहरू पर आ गईं थीं लेकिव वो उस समय दो बरस की सजा काट रहे थे. सजा पूरी होने वाली थी. घर लौटते ही उन्हें विजयलक्ष्मी ने ये बताया कि कृष्णा ने अपने भावी पति का चुनाव कर लिया है. पहले तो कुछ हैरान हुए. फिर सहमति में सिर हिलाया. कृष्णा ने अपनी किताब 'विद नो रिग्रेट' में लिखा, इसके बाद बड़े भाई ने मुझे मिलने बुलाया.

बड़े भाई ने बुलाया तो वो डरी हुई थीं
किताब में वो कहती है, मैं कुछ डरी हुई थी कि भाई ने ना जाने इस बात को किस तरह लिया है. जब मैं पास गईं तो उन्होंने मुस्कुराती हुई आंखों के साथ सवाल किया, डियर सिस्टर मैंने सुना है कि तुम शादी करने की सोच रही हो. क्या तुम उस यंग मैन के बारे में कुछ बता सकती हो. पहले तो मैं सकपका गई लेकिन फिर मैंने कहा कि जरूर बताऊंगी. राजा क्या करते हैं. मैंने कहा-बैरिस्टर हैं और अभी अभी वकालत शुरू की है.

जब जवाहर ने राजा के परिवार के बारे में पूछा तो मुझे कहना पड़ा कि उसके बारे में तो मैं कुछ नहीं जानती. इस पर जवाहर कुछ क्षुब्ध भी हुए. लेकिन वो तुरंत अपने होने वाले बहनोई से मिलने के लिए मुंबई दौड़ गए. लौटकर उन्होंने मंजूरी दे दी.



जैन लड़का औऱ हिंदू ब्राह्मण लड़की की कोर्ट मैरिज 
राजा हठीसिंग और कृष्णा की शादी आनंद भवन इलाहाबाद में 20 अक्टूबर 1933 को हुई. लेकिन ये शादी हिंदू धार्मिक पद्धति से नहीं हो सकी. उसकी वजह थी. राजा जैन थे और कृष्णा हिंदू ब्राह्मण. वो अपनी किताब में लिखती हैं कि मैं ब्राह्मण और वो जैन होने के कारण मैं उनसे हिंदू पद्धति से शादी नहीं कर सकती थी, इसलिए अपने विवाह की कानूनी मान्यता के लिए मुझे सिविल रजिस्ट्रेशन मैरिज करनी पड़ी. शादी की अदालती कार्यवाही और रजिस्ट्री का प्रबंध आनंद भवन के दीवानखाने में किया गया था. उसे फूलों से खूब अच्छी तरह सजाया गया था. शादी मुश्किल से दस मिनट में ही निपट गई.


हठीसिंग हवेली अहमदाबाद
अहमदाबाद का समृद्ध जैन व्यापारी परिवार 
गुणोत्तम अहमदाबाद के जाने माने जैन व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखते थे. इस परिवार की हवेली, मंदिर और शिक्षा संस्थाएं आज भी अहमदाबाद में हैं. उनकी पारंपरिक हवेली आज भी उस शहर की सबसे शानदार, शानोशौकत से भरी सुंदर हवेलियों में गिनी जाती है. 70 के दशक तक राजा हठीसिंग देश के जाने माने एलीट सोशल सर्किल के लोगों में गिने जाते थे.

बाद में पति के हुए नेहरू से मतभेद 
गुणोत्तम आजादी की लड़ाई के दौरान जेल में रहे. वो कांग्रेस में शामिल हुए. लेकिन बाद में 50 के दशक में वो नेहरू के आलोचक बन गए. 1959 में उन्होंने सी राजगोपालाचारी स्वतंत्र पार्टी का समर्थन किया.

कृष्णा और राजा के दो बेटे हुए - हर्ष और अजित. अजित काफी समय तक दिल्ली में अपने मामा नेहरू के साथ रहे और फिर अमेरिका चले गए. अब वो वहां की बहुत बड़ी फाइनैंशियल कंपनी स्थापित की. 81 साल की उम्र में उनका पिछले साल निधन हो गया. कृष्णा 1967 तक जिंदा रहीं. लंदन में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.

अकेली ऐसी नेहरू 
कृष्णा के पति राजा ने उनकी आखिरी किताब इंदिरा गांधी की भूमिका में लिखा कि आजादी के बाद जब मेरी और जवाहर के रास्ते अलग अलग हो गए तो अक्सर कई मौके ऐसे आते थे कि वो धर्मसंकट में पड़ जाती थीं. समूचे नेहरू परिवार में अकेली वही थी जो पद और सत्ता से हमेशा दूर रही.
(साभार न्यूज18)